यहां नारी अदालत में सुलझाए जाते हैं बलात्कार, बाल विवाह जैसे मामले 

Neetu SinghNeetu Singh   17 April 2018 3:05 PM GMT

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यहां नारी अदालत में सुलझाए जाते हैं बलात्कार, बाल विवाह जैसे मामले वर्ष 1998 में जिले के मिश्रिख ब्लॉक में नारी अदालत की शुरुआत की गयी थी। अब तक हजारों झगड़े यहां सुलझ चुके हैं।

मिश्रिख (सीतापुर)। “आंगन में रखी बर्तनों की डलिया चारपाई के नीचे उठाकर नहीं रखी तो मेरे पति में बहुत बुरी तरह से मुझे लात-घूंसे मारे और मेरे ऊपर मिट्टी का तेल डाल दिया। माचिस नहीं मिल पाई नहीं तो मुझे जला देते, मैं जैसे-तैसे वहां से भाग पाई।”

ये कहना है नारी अदालत में शिकायत लेकर आई गंगापुर गाँव की रहने वाली गीता गौतम (25 वर्ष) का। गीता गौतम 25 किलोमीटर दूर गंगापुर गाँव से अपनी तीन साल की बेटी के साथ इस नारी अदालत में आई थी।

गीता गौतम की तरह हजारों झगड़े जैसे घरेलू हिंसा, बलात्कार, अपहरण, बाल-विवाह, दहेज, मजदूर-शोषण नारी अदालत में आते हैं। ये नारी अदालत जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर पश्चिम-दक्षिण में मिश्रिख ब्लॉक में महीने में दो बार लगती हैं। एक नारी अदालत की बैठक में पांच से 10 मामले हर बार आते हैं। वर्ष 1998 में जिले के मिश्रिख ब्लॉक में नारी अदालत की शुरुआत की गयी थी। अब तक हजारों झगड़े यहां सुलझ चुके हैं।

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“शादी के एक साल तक हमारे पति ने हमें सही से अपने साथ रखा। इसके बाद छोटी-छोटी बात पर मारपीट करने लगे। एक दिन उन्होंने मुझे कई झापड़ मारे जिससे मेरी एक आँख की रोशनी चली गई, दूसरी आँख से भी बहुत कम दिखाई देता है। इसके बाद पांच महीने की बेटी के साथ मायके भेज दिया था तबसे चार साल हो गये हैं अभी तक कोई खबर नहीं ली।” गीता गौतम का ये बताते-बताते गला भर आया।

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के वर्ष 2015 में जो मामले दर्ज हुए हैं, उनमें उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है। उत्तर प्रदेश में 35,527, महाराष्ट्र में 31,126, पश्चिम बंगाल में 33,218 मामले दर्ज हुए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले चार वर्षों से 2015 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है जिसमें पीड़ित महिलाओं द्वारा पति और रिश्तेदारों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज हुए।

हम बहुत गरीब परिवार के हैं। कई बार थाने गये जब हमारी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी तब नारी अदालत में आये, आज जब सब बहनों ने मेरी आँखों की इलाज के लिए बात कही तो मुझे बहुत अच्छा लगा।
गीता गौतम

मिश्रिख ब्लॉक में डाक बंगले के चबूतरे पर हर महीने की 15 और 27 तारीख को सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक 12 महिलाएं नारी अदालत लगाती है। महिला सामाख्या द्वारा नारी अदालत का गठन किया गया। इसमें 6 से 14 ग्रामीण महिलाएं निर्णायक की भूमिका में रहती हैं। इन्हें कानून और जेंडर संबंधी सभी विषयों पर प्रशिक्षित किया जाता है। निष्पक्ष रूप से समस्या का समाधान होने के साथ ही समय और पैसे दोनों की बचत होती है।

महिला सामाख्या की जिला समन्यवक अनुपम लता बताती हैं, “नारी अदालत में जो महिलाएं आज निर्णायक की स्थिति में हैं कभी वो भी घरेलू हिंसा की शिकार थी इसलिए महिलाओं की तकलीफें आसानी से समझ पाती हैं और निपटा पाती हैं।“

अनुपम लता का कहना है, “इन महिलाओं को कोई मानदेय नहीं मिलता इसके बावजूद ये 15 से 25 किलोमीटर की दूरी से किराया लगाकर मामले सुलझाने नियमित तौर पर आती हैं, थाने से लेकर आसपास के क्षेत्र में इनकी अच्छी जान पहचान है।“

इस नारी अदालत में आयी 13 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के चेहरे पर पिछले एक साल से उसकी माँ ने हंसी नहीं देखी। पीड़िता की माँ बताती हैं, “मेरी बेटी पिछले साल सर्दियों में शाम के चार बजे शौंच क्रिया करने गयी गयी थी, आड़ की जगह खोजते हुए वो गन्ने के खेत में पहुंच गयी जहाँ गाँव के दो लड़कों ने उसके मुंह में कपड़े भर दिए, एक खेत के बहार देखता रहा दूसरे ने गंदा काम किया।”

पीड़िता की माँ का कहना है, “अगर सीधे थाने जाते पता नहीं मेरी बात सुनी जाती या न सुनी जाती इसलिए अपनी जेठानी के साथ नारी अदालत आये, यहाँ हमारी बात सुनी गयी, दूसरे पक्ष को बुलाया गया इसके बाद दूसरा पक्ष जब हाजिर नहीं हुआ तो नारी अदालत की महिलाएं उसके घर गयी इसके बाद ये बहने ही थाने तक केस ले गयीं आज आरोपी एक साल से बंद है।”

नारी अदालत में पीड़िता की माँ को सिर्फ 100 रुपये रजिस्ट्रेशन की फीस देनी पड़ी इसके बाद पूरे केस में कोई पैसा खर्चा नहीं हुआ।

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