23 दिन भी हालातों में नहीं हुआ सुधार, कैशलैस रहीं अधिकतर बैंक

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23 दिन भी हालातों में नहीं हुआ सुधार, कैशलैस रहीं अधिकतर बैंकबड़े नोट बंद होने से ग्राहकों को काफी दिक्कत हो रही है।

स्वयं डेस्क

इटावा। केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी के निर्णय ने जहां आमजन ही परेशान था, परंतु अब तो वेतनभोगी एवं पेंशनर भी अपनी दिक्कतों के लिए भटक रहे हैं। गुरुवार को माह की पहली तारीख होने के कारण वेतनभोगी कर्मचारी एवं वृद्ध पेंशनर मासिक वेतन लेने पहुंचे तो शहर की अधिकाधिक बैंकों में कैश की कमी सामने आई। घंटों की कवायद के बाद भी बड़ी संख्या में वेतनभोगी कर्मचारियों एवं पेंशनरों को मायूस होकर लौटना पड़ा। बैंक प्रबंध तंत्र अभी तक यह दावा करने की स्थिति में नहीं हैं कि आखिर वे कब तक इस समस्या का निदान करने की स्थिति में होंगे।

बता दें कि विगत आठ नवंबर की मध्य रात से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी पूर्व तैयारियों के ही समूचे देश में काला धन बाहर निकालने की मंशा से अभी तक प्रचलन में चल रहे पांच सौ एवं एक हजार रुपये के नोटों को तात्कालिक बंद करने का ऐलान कर दिया। अभी तक समूचा वर्ग ही इस समस्या से जूझ रहा था। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पर्याप्त नये नोटों की व्यवस्था न करने का ही परिणाम था कि समूचे देश में हा-हाकार मच गया।

नोट बंदी के निर्णय पर राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार के वेतनभोगी कर्मचारियों एवं पेंशनर इस उम्मीद में थे उनके वेतन अथवा पेंशन का जब तक समय आएगा तब तक नोटबंदी की समस्या का सरकार समाधान कर ही लेगी, परंतु गुरुवार को 23 दिन बीत गए मगर सरकार हालात सामान्य नहीं कर सकी। सरकार की नित्य नई बदलती रणनीति भी बैंक उपभोक्ताओं को राहत मुहैया नहीं करा पा रही है। सरकार ने एक दिन सीनियर सिटीजन के लिए आरक्षित भी किया मगर तब तक पेंशनर की पेंशन खातों तक नहीं पहुंच सकी थी।

वेतनभोगी कर्मचारी एवं पेंशनरों को प्रति माह की पहली तारीख का इंतजार रहता है मगर गुरुवार को सिवाय भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा के अतिरेक सभी ब्रांच कैशलैस रहीं है। बैंकों में कैश आने की संभावनाओं के मद्देनजर तमाम बुजुर्ग अलसुबह से ही बैंकों की कतारों में लगे रहे। यदि एटीएम की बात की जाए तो मध्याह्न तक ही एसबीआई का एटीएम साथ निभा सका। एटीएम में कैश जमा कराने वाली विभिन्न कंपनियां भी नये नोटों के अभाव में असहाय नजर आए।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

  

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