गाँवों में काम ठप्प भाग 1: पंचायतों के विकास का पैसा कागज़ी कार्यवाही में उलझा है प्रधान कैसे कराएं काम?

Arvind ShukklaArvind Shukkla   13 Nov 2016 9:31 AM GMT

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गाँवों में काम ठप्प भाग 1: पंचायतों के विकास का पैसा कागज़ी कार्यवाही में उलझा है प्रधान कैसे कराएं काम?बजट ही नहीं, तो भला कैसे हो गाँवों का विकास।

अरविंद शुक्ला/अश्वनी निगम

लखनऊ। अगर आप के गांव में विकास का कोई काम नहीं हुआ है तो सिर्फ प्रधान को दोष मत दीजिए, बहुत हद तक संभव है कि प्रधान के खाते में विकास कार्यों के लिए पैसा ही नहीं आया हो या उन्हें पैसे खर्च करने की अनुमति न मिली हो।

प्रधान ने पंचायती राज विभाग पर फोड़ा ठीकरा

यूपी की 59,162 ग्राम पंचायतों में हजारों प्रधान 14वें वित्त की पहली किस्त का एक भी रुपया खर्च नहीं कर पाए हैं और विकास कार्य ठप पड़े हैं। गोरखपुर के खजनी ब्लॉक में पिछले हफ्ते छठ के महापर्व के दौरान शहरों में रहने वाले लोग सैरो गांव के तालाब पर पहुंचे तो उसकी दुर्दशा देख प्रधान पर भड़क उठे। लोगों ने बड़ी उम्मीद से पिछले वर्ष हुए चुनाव में एक पढ़े लिखे युवक को प्रधान चुना था, लेकिन न नाली बनीं न तालाब दुरुस्त हुआ। इस बारे में बात करने पर यहां के प्रधान धर्मवीर यादव ने इसका ठीकरा पंचायती राज विभाग पर फोड़ा।

कोई न कोई कमी बताकर कर देते हैं खारिज

धर्मवीर यादव बताते हैं, “11 महीने से प्रधान हूं, खाते में लाखों रुपये भी पड़े हैं लेकिन कोई काम नहीं करवा पाया। क्योंकि फंड के इस्तेमाल के लिए सरकार ने जो गाइडलाइंस बनाई हैं, उसमें बहुत सारे पेंच हैं। हम सब जो भी कार्ययोजना बनाकर बीडीओ-डीएम को भेजते हैं वो कोई न कोई कमी बता कर खारिज कर देते हैं।”

तो छह महीने और काम नहीं होगा

गोरखपुर के धर्मवार यादव की तरह बाराबंकी में दौलतपुर ग्राम पंचायत के प्रधान अमित सिंह भी काफी मायूस हैं। अमित ने विभिन्न मदों से अपनी पंचायत में पिछले वर्ष करीब 14 करोड़ के काम करवाए थे, लेकिन इस बार एक रुपया भी नहीं खर्च कर पाए हैं। अमित फोन पर बताते हैं, “14वें वित्त आयोग के तहत हमने 22 लाख की कार्ययोजना बनाकर भेजी। लेकिन एक भी पास नहीं हुई, क्योंकि जिले के अधिकारियों के पास ही सही गाइंड लाइंस नहीं है। गांव के लोगों को लगता है कि प्रधान काम नहीं करवाना चाहता है। विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई तो छह महीने और काम नहीं होगा।”

जब बोले पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव

उत्तर प्रदेश के हजारों गांवों में कमोबेश यही हालात हैं। गांव की आम जनता गांव का विकास नहीं होने के कारण ग्राम प्रधानों को कोस रही तो प्रधान इसके लिए पंचायती राज विभाग को दोषी ठहरा रहे हैं। पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव चंचल तिवारी का कहना है, “ग्राम पंचायतों के विकास का जो फंड है उसे कार्ययोजना बनाकर ही खर्च किया जा सकता है। जो ग्राम पंचायतें ऐसा कर रही हैं उन्हें कोई समस्या नहीं। बाकी अगर कहीं कोई कमियां हैं तो उसे दूर किया जाएगा।”

एक-दूसरे पर मढ़ रहे आरोप

प्रधानों और पंचायती राज के बीच पेंच 14वें वित्त आयोग की गाइड लाइंस है। केंद्र सरकार ने ग्राम पंचायत का फंड तो कई गुना बढ़ा दिया, लेकिन उसका सही इस्तेमाल हो इसके लिए कड़ी गाइडलाइंस बनाई हैं। विभाग का तर्क है कि प्रधान सही तरीके से योजनाएं नहीं बना रहे हैं तो प्रधानों को कहना है कि उन्हें सही जानकारी नहीं दी गई।

प्रतिनिधियों को नहीं दी गई ट्रेनिंग

पंचायत में सुधार और मजबूती के लिए काम कर रहे मताधिकार संघ के अध्यक्ष पीएन कल्की का कहना है, “पंचायतों को बजट कैसे खर्च करना है इसकी गाइड लाइंस को 28 सितंबर 2015 को जारी कर दी गई थीं, जिसके मुताबिक ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्यों को बैठकर कार्ययोजना बनानी है। योजना को ग्राम प्रधान के अप्रूवल के साथ डीपीआरओ और डीएम से मंजूरी लेना है। लेकिन कार्ययोजना बनाने को लेकर ट्रेनिंग ही पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधियों को नहीं दी गई, जिससे यह समस्या बनी हुई है।

खर्च करना है 40 लाख खर्च हुए मात्र ढाई लाख

गांव के विकास कामों के लिए हर एक ग्राम पंचायत को उसकी आबादी के मुताबिक दो करोड़ रुपए मिलना हैं। यानि सालाना ग्राम पंचायत को 40 लाख रुपए के फंड का इस्तेमाल विकास कामों के लिए करना है। पहले यह फंड 20 लाख होता था, लेकिन केन्द्र की तरफ से 14वें वित्त आयोग से 39.70 करोड़ और राज्य वित्त में तीन किस्तों में 37.36 करोड़ रुपए मिलना है। इसकी पहली किश्त जारी भी हो चुकी है। लेकिन ग्राम पंचायत विकास योजना के अंतगर्त इस फंड को खर्च करने के लिए ग्राम सभा में कार्ययोजना बनानी है। इस कार्ययोजना में वार्ड सदस्यों को शामिल करना है, लेकिन अधिकतर ग्राम पंचायतों में यह काम हुआ ही नहीं है।

14वें वित्त आयोग के तहत हमने 22 लाख की कार्ययोजना बनाकर भेजी। लेकिन एक भी पास नहीं हुई, क्योंकि जिले के अधिकारियों के पास ही सही गाइंड लाइंस नहीं है। गांव के लोगों को लगता है कि प्रधान काम नहीं करवाना चाहता है।
अमित सिंह, प्रधान, दौलतपुर, बाराबंकी

खाते में लाखों रुपये भी पड़े हैं लेकिन कोई काम नहीं करवा पाया। क्योंकि फंड के खर्च की जो गाइडलाइंस बनाई हैं उसमें बहुत सारे पेंच हैं। जो भी कार्ययोजना बनाकर बीडीओ-डीएम को भेजते हैं वो कोई न कोई कमी बता कर खारिज कर देते हैं।
धर्मवीर यादव, प्रधान, सैरो, गोरखपुर

पंचायतों के विकास का जो फंड है उसे कार्ययोजना बनाकर ही खर्च किया जा सकता है, जो ग्राम पंचायतें ऐसा कर रही हैं उन्हें कोई समस्या नहीं। बाकी अगर कहीं कोई कमियां हैं तो उसे दूर किया जाएगा।
चंचल तिवारी, प्रमुख सचिव, पंचायती राज

गाइड लाइन के मुताबिक वार्ड सदस्यों को बैठकर कार्ययोजना बनानी है। योजना को प्रधान के अप्रूवल के साथ डीपीआरओ और डीएम से मंजूरी लेना है। लेकिन कार्ययोजना बनाने को लेकर पंचायत के प्रतिनिधियों को ट्रेनिंग ही नहीं दी गई, इसलिए समस्या खड़ी हुई।
पीएन कल्की, अध्यक्ष, मताधिकार संघ

     

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