गांव कनेक्शन विशेष: चिप और रेडियोएक्टिव इंक नहीं ‘सॉफ्टवेयर’ पकड़ रहा है नई नोटों की खेप
Rishi Mishra 18 Dec 2016 1:04 PM GMT
लखनऊ। नए नोटों की धरपकड़ के बाद लोगों के दिमाग में सवाल कौंध रहा है कि आखिरकार कि नये नोट कैसे पकड़ी जा रही हैं, इसकी जानकारी किस तरह से इनकम टैक्स विभाग को मिल रही है। कोई कह रहा है कि नोट में चिप है, तो कोई बता रहा कि नोट को बनाने के लिए रेडियोएक्टिव इंक का इस्तेमाल किया गया है जिससे ठिकाना का अंदाजा लग रहा है मगर हकीकत इतर है।
बैंकों में जो रुपया जमा कराया जा रहा है, उसको लेकर अनेक बैरियर लगाए गए हैं। इसमें सबसे बड़ी चेकिंग बैंक के सॉफ्टवेयर में ही है। आयकर विभाग के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि नोटबंदी के ठीक पहले बैंकों के सॉफ्टवेयर में बड़े बदलाव किये गये थे। इसके आधार पर नई सीरीज के नोटों का पूरा डेटा उपलब्ध है।
देश के अलग-अलग इलाकों में नोट की सीरीज अलग-अलग है। ऐसे में जैसे ही एक राज्य के नोट दूसरे राज्य के बैंक में जमा होते हैं। इसकी जानकारी इनकम टैक्स और पीएमओ की फाइनेंस इंटेलीजेंस सेल को दी जाती है जिसके बाद में इन नोटों के खातेदारों की जानकारी लेकर छापेमारी की जाती है। फाइनेंशियल इंटेलीजेंस, पुलिस और तकनीक का ही गठजोड़ है।
जिसको लेकर बेहतरीन काम के चलते देश भर में अब तक 300 करोड़ रुपये पकड़े जा चुके हैं। ये आंकड़ा केंद्रीय राजस्व विभाग की ओर से शुक्रवार को जारी किया गया है जिसमें ये सारी बातें सामने निकल कर आ रही हैं।
दवाओं की शीशी पर बैच नंबर की तरह काम रही सीरीज
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और पीएमओ के आफिसरों का एक गठबंधन और नोटबंदी से ठीक पहले बैंकों में बदले गए साफ्टवेयर के चलते ही ये हो रहा है। दवाओं की शीशियों और पैकेट पर बैच नंबर होता है, इसी बैच नंबर के चलते जो भी दवा उपयोग होती है। उसके होलसेल और रिटेल डीलर की जानकारी बहुत आसानी से हो जाती है। ऐसे ही वर्तमान में नोटों की जो सीरीज जारी हुई है, उसके जरिये बहुत आसानी से ये पता चल जाता है कि नोट किस राज्य के कौन से जिले में किस बैंक की कौन सी शाखा से जारी किया गया। अगर बड़ी संख्या में नोट एक बैंक से निकलते हैं तो उसकी पूरी जानकारी हो जाती है।
पीएमओ से हो रहा पल-पल का निरीक्षण
आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि संदिग्ध बैंकों, खातों और लोगों की एक-एक एक्टिविटी पर नजर पीएमओ में बैठ रही फाइनेंस इंटेलीजेंस सेल रख रही है। जहां भी कोई संदिग्ध गतिविधि होती है, वैसे ही आईटी, ईडी, सेंटल एक्साइज, आईबी और पुलिस को जानकारी दी जाती है।
पुलिस का मुखबिर तंत्र भी सक्रिय
यही नहीं पुलिस का मुखबिर तंत्र भी कालाधन पकड़वाने में बड़़ी भूमिका निभा रहा है। जगह-जगह पुलिस भी कालाधन पकड़ रही है। इसमें मुखबिरों की बड़ी भूमिका सामने आ रही है। यही नहीं नोटबंदी के इस दौर में अमीर और गरीबों के बीच में एक अलग तरह की खाई सामने आ गई है जिसमें घर के नौकर और वाहन चालक भी काले धन की सूचना पुलिस तक पहुंचा रहे हैं।
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