कौन लगा रहा है गायों के कानों में टैग?
Jamshed Qamar 2 Dec 2016 8:29 PM GMT
बांदा। बांदा की तमाम प्रमुख समस्याओं में से एक प्रमुख समस्या आवारा पशु भी है। दरअसल यहां के लोगों के लिए जब गाय-बैल उपयोग योग्य नहीं रहते (दुधारू नहीं रहते या बूढ़े हो जाते हैं) तो वे उन्हें आवारा छोड़ देते हैं। स्थानीय भाषा में इसे जानवर का अन्ना हो जाना कहते हैं।
धीरे-धीरे बढ़ चुकी है पशुओं की संख्या
पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे ये संख्या बहुत बढ़ गई है और अब हालत ये है कि जहां तक नज़र जाती है, ऐसे आवारा पशु दिखाई देते हैं। ये जानवर लोगों के खेतों में घुस जाते हैं और फसल को नुकसान पहुंचाते हैं या इनसे ट्रैफिक जाम लग जाता है। ऐसे में किसान भी बहुत परेशान होते हैं। ये यहां की तमाम बड़ी समस्याओं में से एक हैं।
तब लगाया जाता है पीले रंग का टैग
सरकार ने ऐसे पशुओं के बधियाकरण के लिए अन्ना प्रथा उन्मूलन योजना लागू की। यह योजना बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर, महोबा, बांदा, जालौन एंव ललितपुर जिलों में लागू की गई है। इसके तहत पहले चरण में तकरीबन पांच हज़ार जानवरों को बधिया किया है ताकि इनकी संख्या पर लगाम लग सके। बधिया हुए जानवरों के कान पर निशानदेही के लिए पीले रंग का टैग लगाया जाता है। मगर यह समस्या आम लोगों के लिए समय के साथ-साथ बड़ी होती जा रही है।
क्या कहते हैं लोग
बांदा के लोगों की मानें तो पशुओं के बधियाकरण तो किया जाता है, मगर वे रास्ते में ही झुंड बनाकर नजर आती हैं। कहीं-कहीं इनकी संख्या इतनी ज्यादा होती है कि यह पशु हर ओर देखे जा सकते हैं। वहीं, लोगों का यह भी कहना है कि दूसरे राज्यों से भी लोग आवारा पशुओं को यहां छोड़ जाते हैं।
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