Ujjwala न आई रास, चूल्हे से ही आस

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
Ujjwala न आई रास, चूल्हे से ही आसgaonconnection

एटा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उज्ज्वला योजना गरीब परिवारों को रास नहीं आ रही है। गाँवों में आज भी चूल्हे पर खाना पक रहा है। जिले के कई BPL परिवारों ने गैस डिलीवरी और समस्या को देखते हुए अपने सिलेंडर और चूल्हे को बेच दिया है। इससे उज्ज्वला योजना (Ujjwala yojana) का भविष्य उज्जवल होने की बजाय गिरता नजर आ रहा है।

प्रधानमंत्री ने गरीब और BPL परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन देने के लिए एक मई को उज्ज्वला योजना (Ujjwala yojana) की शुरुआत की थी। जिसके तहत गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन के साथ चूल्हा और सिलेंडर भी मुफ्त दिया गया है। लेकिन गैस कंपनियों के अजीबो-गरीब नियमों के चलते योजना को पलीता लग रहा है।

कई BPL परिवारों ने सिलेंडर और चूल्हों को मिलने के बाद बेच दिया। इसकी वजह यह रही कि योजना का लाभ पाने वाले अधिकतर लाभार्थी ग्रामीण परिवेश से संबंध रखते हैं। गैस कंपनियां गाँवों में मुफ्त होम डिलीवरी की सुविधा नहीं देती हैं। इसके अलावा ग्रामीण को गैस सिलेंडर को रिफिल कराने के लिए शहर भागना पड़ता है। सिलेंडर को शहर लाने के लिए किसी प्राइवेट वाहन की जरूरत पड़ती है। साथ ही तुरंत सिलेंडर मिलने न मिलने पर उसे ब्लैक में भरवाना पड़ता है। ऐसे में योजना से गरीबों की जेब पर बोझ बढ़ रहा था। जिसके चलते अधिकांश लाभार्थियों ने चूल्हे की रोटी खाना ही बेहतर समझा। 

गाँव खड़ौआ की ऊषा को भी सिलेंडर और चूल्हा मिला था। लेकिन बार-बार शहर जाकर सिलेंडर भरवाने में दिक्कत होती थी। तो उसने एटा में अपने रिश्तेदार को सिलेंडर बेच दिया। गाँव कुठिला की भगवानदेवी को भी कुछ इसी दिक्कत के चलते चूल्हे पर खाना बनाना पड़ रहा है। उन्होंने भी अपना सिलेंडर और चूल्हा भी अपने एक परिचित को बेच दिया है।

दरअसल, सरकार की योजना से गरीबों को राहत तो न मिली है, लेकिन उनकी मुसीबत बढ़ गई। जिसके चलते लोग योजना से किनारा करते नजर आ रहे हैं। अब तक जिले में 500 से ज्यादा परिवारों को उज्ज्वला योजना का लाभ मिल चुका है। लेकिन गैस कंपनियों की मनमानी के चलते योजना को पलीता लगता नजर आ रहा है।

बचा-बचाकर खर्च कर रहे लाभार्थी

उज्ज्वला योजना का लाभ पाने वाले कुछ लाभार्थी तो सिलेंडर को बचा-बचाकर खर्च कर रहे हैं। वैसे तो घर में चूल्हे पर रोटी बनती है, लेकिन जब रिश्तेदार आते हैं, तो चूल्हा और सिलेंडर निकाला जाता है। राजेश कुमार कहते हैं कि गैस जल्दी खत्म न हो जाए, इसलिए बचा-बचाकर इस्तेमाल करते हैं। त्योहार और रिश्तेदारों के आने पर ही गैस का प्रयोग करते हैं।

चूल्हे से घुट रहा दम

चूल्हे पर खाना बनाने से महिलाओं में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ रही हैं। जिला अस्पताल में आए दिन महिलाओं के सांस संबंधी जैसी बीमारियों के केस पहुंच रहे हैं।

 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.