किसान पराली से बना रहे हैं जैविक खाद

Diti BajpaiDiti Bajpai   16 Jan 2017 2:16 PM GMT

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किसान पराली से बना रहे हैं जैविक खादअपने खेत में किसान जबरपाल सिंह।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बरेली। धान, गेहूं और गन्ना की कटाई के बाद दूसरी फसल की बुवाई के लिए ज्यादातर किसान खेतों में पराली जला देते हैं, लेकिन किसान जबरपाल सिंह (40 वर्ष) ने एक ऐसा विकल्प अपनाया है, जिसमें पराली को जलाए बिना ही 15 से 20 दिन के अंदर खेत में दूसरी फसल की बुवाई के लिए तैयार कर सकते हैं।

बरेली जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर मीरगंज तहसील के करनपुर गाँव में जबरपाल सिंह गन्ने की खेती करते हैं। इस विधि को जबरपाल सिंह ही नहीं बल्कि मीरगंज क्षेत्र के कई किसान अपना रहे हैं।

“फसल की कटाई के बाद खेत में पहले हैरो से जुताई करते हैं फिर उसमें यूरिया और पानी का घोल मिलाकर खेत में डालते हैं। डंठलों को जलाने के लिए ऐजेक्टोवेंटर कल्चर और फास्टफीटा कल्चर को खेत में डालते हैं। 15-20 दिन के बाद खेत दूसरी बुवाई के लिए तैयार हो जाता है और पराली को जलाने की जरुरत नहीं पड़ती।” ऐसा बताते हैं, जबरपाल सिंह।

बरेली जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर मीरगंज तहसील के करनपुर गाँव में जबरपाल सिंह गन्ने की खेती करते हैं। मीरगंज क्षेत्र के निवासी अनस खान (39वर्ष) ने गन्ना की फसल की कटाई की है। अनस बताते हैं, “इस विधि को अपनाने में कोई खर्चा भी नहीं आता है और खाद की लागत भी आधी हो जाती है। क्षेत्र के कई किसान इसको अपना रहे है और इससे किसानों को फायदा भी है।”

अमरीका की कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी एक अध्ययन के बाद कहा था कि ‘‘एक टन पराली जलाने पर हवा में 3 किलो कार्बन कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1500 किलो कार्बन डाईऑक्साइड, 200 किलो राख और 2 किलो सल्फर डाईआक्सॉइड फैलते हैं। इससे वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मिथेन गैसों की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।

किसान हेल्प के डायरेक्टर डॉ राधाकांत बताते हैं,“ जल्दी बुवाई के लिए किसान पराली को जला देते है, जिससे खेतों में मौजूद भूमिगत ‘कृषि मित्र कीट’ और अन्य सूक्ष्म मित्र जीव मर जाते हैं और शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ जाने के कारण फसलों को तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं।”

मजदूरों के अभाव के चलते जला देते है पराली

लगातार घट रही गाँवों में गाय, बैल और पालतू जानवारों की संख्या और बढ़ती महंगाई भी एक सबसे बड़ी वजह खेत में अवशेष जलाने का कारण माना जा रहा है। एक तरफ जहां सरकार की मनरेगा योजना ने बेरोजगारी को कम किया है वहीं आज खेतों में खड़ी फसलों की कटाई मजदूरों के अभाव के चलते अब लोग मशीनों से करते हैं। मशीनों से कटाई में धान और गेहूं की तो अलग हो जाती है लेकिन तना नहीं कट पाता है इसलिए बचे हुए अवशेषों को किसानों को खेत में ही जला देते है।

हाईकोर्ट के हैं सख्त आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बीडी अहमद व आरुणेश कुमार की बेंच ने पराली जलाने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के अधिकारों को निर्देश दिए थे कि खेतों में फसलों के अवशेष जलाने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाए क्योंकि जब जक पराली जलाने पर रोक नहीं लगेगी, तक तक दिल्ली और आसपास के इलाके में फैले प्रदूषण का स्तर कम नहीं होगा। कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी तल्खी से कहा था कि किसानों को वोट बैंक न समझिये, पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).


  

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