कर्नाटक में नया कानून, अब किसानों को उनकी फसलों का मिलेगा सही दाम

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कर्नाटक में नया कानून, अब किसानों को उनकी फसलों का मिलेगा सही दामभारतीय किसान

नयी दिल्ली। कर्नाटक में पिछले एक दशक से किसानों को उनकी फसलों का उचित समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है। किसानों से हर बार कम दामों में उनकी फसलें खरीदी ली जाती हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है जिस कारण आत्महत्या जैसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं। किसान बिचौलिए और थोक खरीदारों का शिकार हो रहे हैं। बिचौलिए किसानों से सस्ते दामों में फसल खरीदकर मुनाफा कमा लेते हैं। लेकिन प्रदेश में अब ये कहानी बंद होने वाली है।

पहली बार कर्नाटक एग्रीकल्चर प्राइसिंग कमीशन (कर्नाटक कृषि मूल्य निर्धारण आयोग) ने सभी फसलों के लिए लाभकारी मूल्य अधिकार अधिनियम के नाम से एक ऐसा प्रस्ताव पेश किया है जिसके तहत सरकारी कृषि आढ़तियों को ऐसे लोगों पर शुरुआती कार्रवाई के अधिकार दिए जाएंगे जो किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दर पर फसलों की खरीदारी करते हैं। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार कर्नाटक कृषि मूल्य निर्धारण आयोग के अध्यक्ष टीएन प्रकाश कामारेड्डी ने बताया कि सरकार द्वारा कृषि विभाग को नए कानूनी अधिकार देने से निश्चित रूप से किसानों की आय बढ़ेगी, उन्हें फसलों का सहीं दाम मिलेगा, इसकी गारंटी दी जा सकती है। नए प्रस्तावित कानून के तहत सरकार व्यापारियों पर शुरुआती एक्शन ले सकता है जिसमें माल जब्त करना, जेल की सजा और अर्थदंड जैसी कार्रवाई शामिल है।

प्रकाश आगे बताते हैं कि प्रस्ताव नेशनल लॉ स्कूल, बेंगलुरु भेज दिया गया है। पास होने से पहले विशेषज्ञों का एक पैनल इस पर विचार विमर्श करेगा। इस नए कानून से किसानों को उनकी फसलों का सही दाम मिलेगा। गन्ना किसान एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष कुर्बुर शांताकुमार ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ऐसे कानून की मांग काफी पहले से ही की जा रही थी। सरकार फसलों के लिए भले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर देती है, लेकिन व्यापारी सही दाम पर फसलें नहीं खरीदते, जबकि सरकारी एजेंसियां इस मामले में ठीक हैं।

व्यापारियों को पता था कि सरकार उनपर कोई कार्रवाई नहीं करेगी। कुर्बुर ने धान का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार ने इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 1500 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है लेकिन पूरे प्रदेश में किसान तय दर से कम में अपनी फसलें बेचने को मजबूर हैं। कई राइस मिलों ने किसानों ने 700 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल में धान की खारीदारी की। अब कानूनी रूप से केंद्र के पास न्यूनतम दर, किराया और गन्ना किसानों का पारिश्रमिक तय करने का अधिकार होगा, और अगर न्यूनतम दर से कम दाम में खरदारी की जाती है तो शुरुआती कार्रवाई भी की जा सकेगी।

      

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