उत्तर प्रदेश में उगेंगे थाईलैण्ड के बेर

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उत्तर प्रदेश में उगेंगे थाईलैण्ड के बेरअमरूद की तरह दिखने वाले ये चमकदार आकार से बड़े एप्पल बेर। फाेटो: गाँव कनेक्शन

रिपोर्टर- सुधा पाल

लखनऊ। अगर राह चलते आपको अमरूद जैसा कोई फल दिखता है तो उसे अमरूद ना समझिए, वह बेर हो सकता है। यह विशेष बेर एप्प्ल बेर है। अमरूद की तरह दिखने वाले ये चमकदार और सामान्य बेर के आकार से बड़े ये बेर बाजारों में ग्राहकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। अब जल्द ही सामान्य बेरों के मुकाबले बेहतर गुणवत्ता और उत्पादन वाले इन बेरों की खेती राज्य के किसान भी कर पाएंगे।

30 ग्राम से लेकर 120 ग्राम के वजन वाले ये एप्पल बेर किस्म थाइलैंड की देन हैं। लगभग 10 साल पहले इसे भारत में लाया गया। यह हाइब्रिड पेड़ है। ये फल प्रमुख रूप से गुजरात में पाया जाता है। इसका कारण यह है कि इस विशेष बेर की खेती के लिए उचित जलवायु और मिट्टी गुजरात के क्षेत्रों में ही पाई जाती है। बेर की इस खेती के लिए पथरीली जमीन की जरूरत होती है। इसके साथ ही इसके उत्पादन के लिए मिट्टी का पीएच मान सात से नीचे होना चाहिए। जितना रोग प्रतिरोधक क्षमता एक सेब में होता है उतना ही गुणकारी तत्व इस बेर में मौजूद है।

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र के पौध अधीक्षक संदीप प्रभाकर बताते हैं “चूंकि ये बेर आकार में देसी बेरों से बड़े होते हैं इसलिए लोग इन्हें पसंद तो करते हैं लेकिन दाम अधिक होने से कम लोग खरीदाते हैं।” संदीप आगे बताते हैं “बेरों की अन्य किस्मों की कीमत बाजारों में एप्पल बेरों से आधी है। जहां इस समय बाजारों में एप्पल बेर लगभग 120 रुपए प्रति किलो की कीमत से बिक रहे हैं वहीं अन्य बेर लगभग 50 रुपए तक की कीमत के बिक रहे हैं। इसके अतिरिक्त किसानों के लिए भी उत्पादन को देखते हुए इसकी खेती से काफी मुनाफा है।”

देश के हर राज्य तक इन बेरों को किसान तक आसानी से पहुंचाया जा सके, इस उद्देश्य से सरकार की तरफ से यह पहल की गई थी। इससे किसान अन्य पारंपरिक फलों के साथ इन बेरों को भी अपने खेतों में शामिल करके अच्छी कमाई कर सकें। सहारनपुर में एप्पल बेर के लगभग 200 पौधे और झांसी में लगभग 300 पौधे लगाए गए थे। तीन साल पहले लगाए गए इन पौधों में इस समय फल तैायार होने वाले हैं।

प्रदेश में मिट्टी का सुधार करके किसान इसकी खेती कर सकते हैं। इसकी खेती को बढ़वा देने के लिए प्रदेश में शुरुआत कर दी गई है। इससे किसानों को आसानी से बीज उपलब्ध हो सकेंगे। धीरे-धीरे इनका प्रचार प्रसार किया जा रहा है।
संदीप प्रभाकर, पौध अधीक्षक (उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उ.प्र.)

हाइब्रिड बेरों के बीज पर सब्सिडी

इसके साथ ही देसी बेरों के मुकाबले इन बेरों का उत्पादन दोगुना होता है। किसानों के लिए सरकार की तरफ से इन हाइब्रिड बेरों के बीज पर सब्सिडी प्रदान की जाती है। तीन साल में किसानों को 50 फीसदी सब्सिडी दी जाती है जिसकी राशि उनके बैंक के खातों में डीबीटी (डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर) के माध्यम से आ जाती है।”

दो साल में आने लगते हैं फल

संदीप प्रभाकर बताते हैं “लगभग एक एकड़ में 700 पौधे इस प्रजाति के लगाए जा सकते हैं। पौधों को लगाने के बाद लगभग दो साल में फल आना शुरू हो जाते हैं। जिसके बाद प्रति पेड़ से किसान साल दर साल ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं। पहली फसल से लगभग एक क्विंटल तक, दूसरी फसल से पांच क्विंटल तक उत्पादन निकाला जा सकता है। इसी तरह पहली फसल के बाद आने वाली फसलों में यह बढ़ोतरी होती रहती है।”

    

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