बड़ती महंगाई से कम हो रहे घोड़े और घुड़दौड़ प्रतियोगिता

Divendra SinghDivendra Singh   5 March 2017 4:02 PM GMT

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बड़ती महंगाई से कम हो रहे घोड़े और घुड़दौड़ प्रतियोगिताअब न घोड़े रहे और न ही इतनी घुड़दौड़ प्रतियोगिताएं होती हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

प्रतापगढ़। एक समय था जब जिले में कई लोगों के पास शानदार घोड़े थे, जो अपने जिले ही नहीं दूसरे जिलों की घुड़दौड़ प्रतियोगिताओं में भी जीतते थे, लेकिन अब न ये घोड़े रहे और न ही इतनी घुड़दौड़ प्रतियोगिताएं होती हैं। कुंडा तहसील के मोहद्दीपुर के रहने वाले रामसेवक यादव (40 वर्ष) के पास भी कभी दौड़ के लिए घोड़ा होता था, लेकिन अब वो शादियों में ही घोड़ा ले जाते हैं।

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वो बताते हैं, “अभी तीन महीने पहले ही ऊंचाहार से 60 हजार रुपए का घोड़ा खरीदकर लाया हूं। अब घोड़े इतने महंगे हो गए हैं कि अगर घुड़दौड़ में ले जाऊंगा तो उनके खाने पीने का भी खर्च नहीं निकल पाएगा।” सड़वा चंद्रिका ब्लॉक के छतरपुर शिवाला में पिछले कई वर्षों से नागपंचमी और महाशिवरात्रि में घुड़दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। हर बार प्रतियोगिता में यहां दर्जनों घोड़ा पालक अपने घोड़े लेकर आते थे। लेकिन इस बार कुछ ही घोड़े आए।

अब लोगों वो बात नहीं रह गई है, पहले जब घुड़दौड़ होती जिले से दूर-दूर तक लोग आते थे, इस बार तो बहुत कम लोग आए थे।”
हरनाम सिंह, प्रधान आयोजक

ब्रुक्स इंडिया के अनुसार प्रतापगढ़ जिले में लगभग 3000 घोड़े हैं, इनमें से 90 फीसदी घोड़े ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं, बाकि दस प्रतिशत घोड़े शादियों और घुड़दौड़ के अच्छी नस्ल के घोड़े हैं। वर्ष 2012 में जारी 19वीं ताज़ा पशुगणना के अनुसार, देश में 11.30 लाख घोड़े, खच्चर और गधे हैं, जिनसे लाखों परिवारों की जीविका चलती है।

कुशलगढ़ के हैदर अली (45 वर्ष) पिछले कई वर्षों घुड़सवारी कर रहे हैं। इनके घोड़े कई प्रतियोगिताओं में जीते हैं। वो बताते हैं, “इस समय बाजार में एक लाख से दस दस लाख तक घोड़े मिल जाएंगे। मैंने अपना घोड़ा तीन लाख में खरीदा था। एक दिन का खर्च हजार रुपए से अधिक खर्च हो जाते हैं।” वो आगे कहते हैं, “घुड़दौड़ में इनाम तो बस नाम का होता है। जितना इनाम मिलता है, उतने में तो एक दिन का भी खर्च नहीं चलता है।”अभी तीन महीने पहले ही ऊंचाहार से 60 हजार रुपए का घोड़ा खरीदकर लाया हूं। अब घोड़े इतने महंगे हो गए हैं कि अगर घुड़दौड़ में ले जाऊंगा तो उनके खाने पीने का भी खर्च नहीं निकल पाएगा।” रामसेवक यादव

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