जलकर मरने वाली महिलाओं में भारत पड़ोसी मुल्कों से आगे 

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जलकर मरने वाली महिलाओं में भारत पड़ोसी मुल्कों से आगे दूसरे देशों की तुलना में भारतीय महिलाओं को आग से ज्यादा खतरा है।

देवानिक साहा

लखनऊ। दूसरे देशों की तुलना में भारतीय महिलाओं को आग से ज्यादा खतरा है। किसी अन्य देश की तुलना में 15 से 50 वर्ष के बीच की भारतीय महिलाओं की आग से मौत होने की संभावना ज्यादा होती है। यह जानकारी वाशिंगटन स्थित शोध संगठन ‘इन्स्टटूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड एवोल्यूशन’ द्वारा वैश्विक रोग के आंकड़ों पर किए गए एक विश्लेषण में सामने आई है। यह शोध संगठन संयुक्त राज्य अमेिरका विश्वविद्यालय से भी संबंधित है।

आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तानी महिलाओं की तुलना में 18 गुना और चीनी महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं की आग संबंधित मौत होने की संभावना 38 गुना ज्यादा होती है।

सभी महिलएं खुद को जला डालने के लिए ही खुद आग के हवाले नहीं करती हैं। कई केवल अपने पति को डराने या धमकी (जैसे उन्हें शाराब की लत छोड़ने या गलत आदत छुड़ाने के लिए ) देने के लिए ये कदम उठाती हैं। आग के कारण मिली चोटों का महिलाओं और पुरुषों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
रश्मि सिंह, पीसीवीसी कार्यक्रम की निदेशक (इंडियास्पेंड को दिए गए एक ईमेल साक्षात्कार में बताया)

वर्ष 2015 में 17,700 की मौत आग से जलने से हुई

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा वर्ष 2015 में आकस्मिक मृत्यु पर जारी किए गए आंकड़ों में भारतीय महिलाओं के लिए आग से संबंधित मौतों का एक ब्यौरा मिलता है। एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015 में कम से कम 17,700 भारतीयों की मौत आग से संबंधित दुर्घटनाओं में हुई है, यानी हर रोज 48 मौतें हुई हैं। इनमें से 10,925 करीब 62 फीसदी महिलाएं हैं।

स्थान के अनुसार आग संबंधित मौतें

हालांकि, वर्ष 2011 की तुलना में वर्ष 2015 में आग संबंधित दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों में 33 फीसदी गिरावट हुई है। वर्ष 2011 में 26,343 मौतें आग के कारण हुईं, जबकि वर्ष 2015 में ये आंकड़े गिर कर 17,700 हुए। वर्ष 2015 में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा आग से संबंधित मौतें हुई हैं। यह संख्या 3,377 के आस-पास है। इसी वर्ष 2,125 के आंकड़ों के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर और 2,010 की मौतों के साथ गुजरात तीसरे स्थान पर रहा।

आग से होने वाली मौतों में से 42 फीसदी आवासीय भवनों में

आग संबंधित दुर्घटना से होने वाली 17,700 मौतों में से 7,445, लगभग 42 फीसदी आवासीय इमारतों और घरों में हुए हैं। किसी भी अन्य राज्य की तुलना में गुजरात में आवासीय भवनों में सबसे अधिक आग से संबंधित मौतों की सूचना मिली है। ऐसी करीब 1,475 घटनाएं दर्ज की गई है। इनमें से 70 फीसदी या 1,028 महिलाओं से जुड़ी हैं।

आग से हुई मौतों से महिलाओं का रिश्ता

मुंबई के ‘सेंटर फॉर एन्क्वाइअरी इनटू हेल्थ एंड अलाइड थीम्स’ और ‘टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान’ द्वारा वर्ष 2016 में आयोजित एक अध्ययन, “बस्टिंग द किचन एक्सिडेंट मिथ: द केस ऑफ बर्न इन्जरीज इन इंडिया” के अनुसार, किसी सहयोगी, ससुराल या स्वंय द्वारा पहुंचाई गई कई आग से संबंधित चोटें अक्सर मौत की ओर बढ़ जाती हैं।

अध्ययन में महिलाओं में जलने से पहुंचे 22 चोटों के मामले का विश्लेषण किया गया है, जिसमें से 15 मामले दुर्घटना के रूप में सूचित किए गए थे। जबकि बाकी अन्य स्वंय या दूसरे द्वारा पहुंचाए गए चोट थे। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि 22 में से 19 महिलाएं, एक ही समय में, घरेलू हिंसा का सामना कर रही थी। ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्राइम प्रीवेंशन एंड विक्टिम केयर’ (पीसीवीसी), कार्यक्रम की निदेशक, रश्मि सिंह वर्ष 2016 में ‘द न्यूज मिनट’ की एक कॉलम में लिखती हैं, “वित्तीय और सामाजिक समर्थन की कमी से काफी असुरक्षा उत्पन्न होती है और आग से जली पीड़िता को हमेशा पति या घर को खोने का डर रहता है। यही कारण है कि वे वास्तविक घटना का खुलासा नहीं करती हैं।” महिलाओं की तुलना में भारतीय पुरुषों के आत्महत्या करने की संभावना दोगुनी होती है लेकिन आत्महत्या करने के तरीकों में, आत्मदाह ही केवल एक ऐसा तरीका है, जो पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक अपनाती हैं। इंडियास्पेंड के पिछले अध्ययन संकेत देते हैं कि महिलाओं द्वारा आत्मदाह करने का मुख्य कारण घर में मिट्टी के तेल की आसान पहुंच हो सकता है।

    

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