बजट विशेष : खेती को बड़ी कंपनियों को सौंपने की कवायद शुरू

Devinder SharmaDevinder Sharma   4 Feb 2017 1:16 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
बजट विशेष : खेती को बड़ी कंपनियों को सौंपने की कवायद शुरूआम बजट 2017 पर देविंदर शर्मा का विशेष लेख गाँव कनेक्शन में।

हरित क्रांति के पथ से साफ तौर पर दूरी बनाते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में सरकार की मंशा की ओर इशारा कर दिया जो कि है देश की खेती को अद्योगिक खेती में बदलना।

जब अरुण जेटली ने अनुबंध के तहत खेती यानि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एक आदर्श कानून बनाकर राज्यों के साथ साझा करने की बात कही और उसके तुरंत बाद खेती के बाज़ार में कई बड़े बदलावों का ऐलान किया तो इससे साफ हो गया था कि सरकार अब खेती को उद्योगों के हाथ में देना चाहती है। बाज़ार के इन बड़े बदलावों में प्रमुख था फल और सब्ज़ियों जैसे सड़ने वाले उत्पादों को कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) की सूचि से बाहर करना। इसे राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद (एनसीडीसी) की उस योजना के साथ जोड़कर सोचिए जिसमें एनसीडीसी ने 2022 तक खेती में लगी 58 प्रतिशत जनसंख्या को घटाकर 38 फीसदी करने का सोचा है। मंशा साफ हो जाती है कि सरकार अब खेती को उद्योगों के हाथों में क्यों सौंपना चाहती है।

अब इसे इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एमएएम) के नेटवर्क को मज़बूत करने पर सरकार द्वारा दिये जा रहे ज़ोर के साथ जोड़कर देखिए। वित्त मंत्री के अनुसार कृषि उत्पादन व जिंसों की खरीद-फरोख्त के लिए ई-एमएएम को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। किसान की आय को दोगुना करने के लिए मण्डियों को बहुत ज़रूरी बताया जा रहा है इसलिए हर अधिकृत मण्डी को सुविधाएं जुटाने के लिए 75 लाख रुपए दिये जा रहे हैं। देश के बड़े उद्योगों के दो संगठन फेडरेशन आफ इंडियन चेम्बर एंड कॉमर्स (फिक्की) व कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) इस बजट के मांग करते रहे हैं।

वित्त मंत्री अरुण जेटली मौजूदा सरकार के लिए तीन साल लगातार बजट पेश कर चुके हैं लेकिन किसानों की आय अगले पांच साल में दोगुनी करने के दावे को दोहराने के अलावा मुझे उनके मुंह से ऐसा करने की कोई ठोस कार्ययोजना नहीं सुनाई पड़ी।

पिछले साल की तरह ही इस साल भी उन्होंने अपना यही वादा दोहरा दिया बिना उस किसान त्रासदी का कोई ज़िक्र किये जिसमें देश का किसान धंसा हुआ है। कुछ हफ्ते पहले ही राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने अपने उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों में कहा था कि साल 2015 में 12,602 किसानों व कृषक मजदूरों ने आत्महत्या कर ली, जो कि 2014 के मुकाबले तीन प्रतिशत ज्यादा थीं।

देश की खेती, जो लगातार दो सूखों की त्रासदी झेल चुकी थी और उठने की कोशिश कर रही थी उसे नोटबंदी की बुरी मार पड़ी, कृषि आय को गहरा धक्का लगा। "इस साल किसानों ने धैर्य का उदाहरण दिया और कृषि विकास की दर 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है," अरुण जेटली ने बस इतना कहकर देश में व्याप्त कृषि त्रासदी को बजट भाषण में नज़रअंदाज़ कर दिया। खेती के विकास की दर अगर 4.1 प्रतिशत पहुंचने वाली है तो उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ अच्छे मानसून को जाता है, सरकारी नीतियों को नहीं।

इस सब के साथ ही साथ वित्त मंत्री ने ये घोषणा भी की कि इस वित्तीय वर्ष किसान को कर्ज उपलब्ध कराने के लिए सरकार 10 लाख करोड़ रुपए की व्यवस्था करेगी। "हम इस बात को निश्चित करेंगे कि पूर्वोत्तर भारत के दूरस्थ इलाकों तक भी खेती में सहायता के लिए कृषि ऋण उपलब्ध हो सके"। हालांकि एक बात जो ज्यादा लोग नहीं जानते हैं वो यह कि ज्यादातर ऋण कृषि कंपनियों द्वारा ही ले लिया जाता है।

घोषित 10 लाख करोड़ कृषि ऋण बजट में से लगभग 8 लाख करोड़ आगे चलकर किसानों के नाम पर बड़ी कृषि कंपनियों को ही जाएगा। मैंने वित्त मंत्रालय से कई बार ये आग्रह किया है कि कृषि ऋण के बजट को दो भागों में वर्गीकृत किया जाए ताकि ये भ्रम दूर हो सके कि सारा कृषि ऋण किसानों के लिए ही है।

ये सब मुझे दोबारा उसी बुनियादी सवाल पर वापस ले आता है कि सरकार किसानों की आय को पांच साल में कैसे दो गुना करेगी। ये ध्यान में रखते हुए कि साल 2016 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार देश के 17 राज्यों में किसान परिवारों की सालाना आय महज़ 20,000 रुपए है, मुझे लगा था कि 2017 के बजट में किसानों का राहत पहुंचाने के लिए अगर किसानों का कर्ज माफ नहीं कर रहे है तो कम से कम कृषि ऋण की ब्याज दर तो घटाई ही जानी चाहिए थी। लेकिन इसके इतर वित्त मंत्री ने केवल मध्यम वर्ग को ही टैक्स में राहत दी। विमुद्रीकरण से शायद सबसे ज्यादा किसान और खेतिहर मजदूर ही प्रभावित हुए थे लेकिन उनके लिए ये बजट भी हताशा भरा रहा।

साधारण तौर पर यही समझा जाता है कि सिंचाई का विस्तार करने और फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने से किसानों की आय बढ़ जाती है। ज्यादातर फसलों का बेहतर उत्पादन किसानों की आय को बढ़ाने का संकेत है मगर इसे और ज्यादा विस्तार से विचारने की आवश्यकता है। यह सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश करने के समान है जैसा कि अन्य क्षेत्रों में होता है। मगर जब भी सिंचाई व्यवस्था को विस्तार देने की बात की जाती है तो लघु सिंचाई विस्तार को भी बढ़ावा देने की जरूरत होती है। इसका अर्थ यह है कि आय की असुरक्षा से कृषि प्रभावित होती है।

यदि सिंचाई और उच्च उत्पादन अकेले ही कृषकों की आय को बढ़ाने में सक्षम हैं तो पंजाब में जो कि देश के लिए खाने की थाली के समान है, हाल ही में किसान आत्महत्या के मामले न बढ़ते। यह हाल तब है जब पंजाब में कुल 98 फीसदी क्षेत्र में सिंचाई की उचित व्यवस्था है।

साथ ही, फसलों की गुणवत्ता के मामले में भी यह प्रांत दुनिया में सबसे अच्छा है। यहां 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर गेहूं और 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर चावल का उत्पादन होता है। इन आंकड़ों के साथ पंजाब विश्व में सबसे ऊंचा दर्जा हासिल कर चुका है। इसके बावजूद पंजाब हर सप्ताह आत्महत्या का दर्द झेलता है।

ऐसे में किसानों की आय को दोगुना करना तो समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

फलों और सब्जियों को गैरसूचीबद्ध करना और खरीद के दामों में विघटन करने का सीधा अर्थ है खेती के ढांचे को उद्योगों के हिसाब से बनाया जा रहा है। फलों और सब्जियों को गैरसूचीबद्ध करने के बाद इस की भी आशंका बढ़ जाती है कि गेहूं और चावल भी अगले चरण में खरीद प्रकिया से बाहर कर दिए जाएंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को कई बार एपीएमसी द्वारा मंडी व्यवस्था के तंत्र को चलाने के लिए दबाव को झेलना पड़ा है। लेकिन, बाजारों का हाल काफी अच्छा होने के बाद भी मुझे इसका कोई कारण समझ में नहीं आता है कि 94 फीसदी ऐसे किसान जिन्हें खरीद दामों का लाभ नहीं मिल पाता है वे कुछ बेहतर क्यों नहीं कर पाते हैं।

शांता कुमार कमेटी के मुताबिक, मात्र छह फीसदी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिल पाता है। शेष बाजार पर निर्भर हैं। यदि बाजार इतने ही बढ़िया होते तो मुझे कोई कारण नहीं दिखता कि क्यों किसान एमएसपी को लागत के सापेक्ष 50 प्रतिशत ज्यादा करने की मांग कर रहे हैं, जिसकी सिफारिश राष्ट्रीय किसान आयोग भी करता है।

( लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके अपने विचार हैं)

ये भी पढ़ें

खेती किसानी के जानकार बोले, बजट में किसानों की आय दोगुनी करने की नहीं दिखी ठोस योजना

        

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.