नोबल फाउंडेशन के साथ भारत की सबसे गहन वार्ता

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नोबल फाउंडेशन के साथ भारत की सबसे गहन वार्ताभारतीय मूल के कुल 15 लोग ही अभी तक इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीत पाए हैं।

पल्लव बाग्ला

अहमदाबाद (भाषा)। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक नोबल पुरस्कार में भारतीय विजेताओं की संख्या बहुत कम है। वर्ष 1901 से अब तक इस पुरस्कार को जीत चुके 870 लोगों में महज चार भारतीय नागरिकों के नाम हैं।

दूसरे देशों की यात्रा करने वाला हर छठा व्यक्ति भले ही भारत से है, लेकिन 1.3 अरब नागरिकों वाले इस देश में से नोबल पुरस्कार जीतने वालों का प्रतिशत महज 0.45 है। भारतीय मूल के कुल 15 लोग ही अभी तक इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीत पाए हैं।

स्थिति में सुधार की उम्मीद में भारत ने नोबल फाउंडेशन के साथ अब तक की सबसे गहन वार्ता शुरु की है। इस दिशा में बढ़ते हुए युवा पीढ़ी को यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि इसका अर्थ क्या है और नोबल पुरस्कार जीतने वाले लोगों का जीवन किस तरह से बदल गया।

गांधीनगर में आयोजित भव्य समारोह वाइब्रेंट गुजरात में भारत ने विज्ञान के क्षेत्र के नौ नोबेल विजेताओं को आमंत्रित किया ताकि वे बड़ी संख्या में यहां आए लोगों से बात कर सकें। यह कदम इस उम्मीद में उठाया गया कि उनकी बातचीत से युवा भारतीयों को विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने की प्रेरणा मिलेगी और वे देश के लिए पुरस्कार जीतकर लाने की दिशा में भी प्रेरित होंगे।

अहमदाबाद की साइंस सिटी में नोबल फाउंडेशन द्वारा आयोजित विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी महत्वाकांक्षाएं रखने वाले युवाओं को अपना एक खास मंत्र बताया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रति मोदी का झुकाव सर्वविदित है।

लगभग 5000 युवाओं को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ‘‘प्रेरित होइए और साहसी बनिए। जो आप हैं, वह रहिए और नकल मत कीजिए। हमारे सम्मानित मेहमान (नोबल विजेता) इसी तरह सफल हुए और आपको उनसे यह सीखना चाहिए।'' मोदी ने कहा, ‘‘पुरस्कार विजेता विज्ञान के शिखरों का प्रतिनिधित्व करते हैं और आपको उनसे सीख लेनी चाहिए। लेकिन याद रखना कि शिखर बडी पर्वत श्रृंखलाओं में होते हैं और अलग नहीं खडे होते।''

जैवप्रौद्योगिकी विभाग और नोबल फाउंडेशन ने पांच साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत यह स्वीडिश संगठन भारत में दर्जन भर नोबल विजेताओं को बड़े आयोजनों में व्याख्यान देने और छात्रों से मिलने के लिए लेकर आएगा। इसके साथ-साथ पुरस्कार जीतने वाले कार्य को दर्शाने के लिए ‘विचार, जिन्होंने बदल दी दुनिया' नामक प्रदर्शनी भी आयोजित की जाया करेगी। सभी को उम्मीद है कि कम से कम कुछ युवा तो विज्ञान में जुनूनी करियर बनाने के लिए प्रेरित होंगे।

भारत को पिछली बार विज्ञान में नोबल वर्ष 1930 में मिला था। यह पुरस्कार सी वी रमन को मिला था। उन्हें भौतिकी का नोबल रमन प्रभाव की खोज के लिए दिया गया था। उसके बाद से भारतीय वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार नहीं मिल पाया है। ऐसा नहीं है कि भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने अच्छा काम नहीं किया है। वैज्ञानिक प्रकाशनों की संख्या के मामले में भारत को आज छठा सबसे बड़ा पावरहाउस माना जाता है, लेकिन यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भारतीय वैज्ञानिकों से दूर ही रहा है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि इसके पीछे की वजह उनका अश्वेत होना है।

साइंस सिटी के 100 हेक्टेयर के इलाके में अगले पांच सप्ताह तक के लिए लगी अस्थायी नोबल प्रदर्शनी में बहुत से लोग आ सकते हैं और वहां लगे नोबल स्वर्ण पदक एवं विल्फे्रड नोबल के निजी एवं मौलिक कृतियों को देख भी सकते हैं लेकिन इन दर्शकों को शायद कई भारतीयों की ओर से किए गए योगदान के बारे में ज्यादा जानकारी न मिल पाए।

वर्ष 1913 में साहित्य का नोबल जीतने वाले रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़ा एक छोटा वीडियो क्लिप ही है। इस प्रदर्शनी में सी वी रमन का कोई जिक्र नहीं है। यह स्थिति तब है, जबकि उनकी खोज का इस्तेमाल आज दुनिया के लगभग हर हवाईअड्डे पर बमों और विस्फोटकों का पता लगाने के लिए किया जाता है।

वर्ष 1998 में अर्थशास्त्र के लिए नोबल जीतने वाले अमर्त्य सेन का किसी भी पैनल पर कोई जिक्र नहीं था। यहां दिलचस्प बात यह है कि विश्व की सबसे युवा नोबल विजेता यानी पाकिस्तान की मलाला यूसुफजेई के नाम पर यहां पूरा एक पैनल था। हालांकि इस पैनल में इस बात का जिक्र तक नहीं था कि उसने वर्ष 2014 में यह शांति पुरस्कार भारत के मशहूर बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ जीता था।

इस तरह की चूक अप्रिय है और उम्मीद की जाती है कि अगले चार साल तक प्रदर्शनी में भारत का एक विशेष खंड होगा। यह स्थानीय आदर्शों की तरह होगा, जिससे लोग ज्यादा जुड़ाव महसूस कर सकते हैं।

      

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