यूपी में सिमट रही आंवले की खेती, प्रतापगढ़ में किसान काट रहे हैं बाग

Divendra SinghDivendra Singh   15 Jan 2017 8:13 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
यूपी में सिमट रही आंवले की खेती, प्रतापगढ़ में किसान काट रहे हैं बागप्रतापगढ़ में लगभग 12 हजार हेक्टेयर में आंवले की खेती होती है, जिसमें गिरावट आई है।

दिवेन्द्र सिंह, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

प्रतापगढ़। आंवला उत्पादन के लिए देश भर में मशहूर प्रतापगढ़ जिले के किसानों के लिए अब ये खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है, किसान बाग काटकर दूसरी फसलें ले रहे हैं।

प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 13 किमी. दूर दक्षिण दिशा में सदर ब्लॉक के राजगढ़ गाँव के किसान मुकेश सिंह (55 वर्ष) के पास दस बीघा आंवले के बाग थी, लेकिन अब सिर्फ दो बीघा आंवले की बाग बची है। मुकेश सिंह बताते हैं, "पहले लोगों के पास ज्यादा खेत थे तो लोग कुछ भी लगा देते थे, लेकिन अब मुनाफा नहीं होगा तो इतने ज्यादा खेत को आंवले में कैसे फंसा सकते हैं।"

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर, जौनपुर में आंवले की खेती होती है। इसमें से प्रतापगढ़ आंवला उत्पादन का केंद्र है। उद्यान विभाग के अनुसार, जिले में लगभग 12 हजार हेक्टेयर में आंवले की खेती होती है। इसमें पिछले कुछ वर्षों में कमी आयी है।

आंवले की घटती खेती में किसानों की भी गलती है, किसान एक बार आंवले की बाग लगा देते हैं, उसकी न के बराबर देखभाल करते हैं, इसलिए फल में गुणवत्ता भी नहीं आ पाती है।
रणविजय सिंह, जिला उद्यान अधिकारी, प्रतापगढ़

क्यों आ रही कमी?

प्रतापगढ़ के आंवले के उत्पादन एवं बिक्री में आ रही दिक्कतों में प्रमुख है बाज़ार का न होना। साथ ही, परिवहन और तकनीकी प्रशिक्षण की कमी व बिजली आपूर्ति की समस्या भी आंवला किसानों के लिए काफी गंभीर चुनौती है। वर्ष 1991 में प्रतापगढ़ जिले में आंवला विभाग बनाकर आंवला विकास अधिकारी का पद सृजित किया गया था, लेकिन वर्ष 2003 में यह पद समाप्त करके इसकी जिम्मेदारी उद्यान विभाग को सौंप दी गई।

उद्यान विभाग की संस्था, ‘जिला औद्योगिक संघ’ आंवला किसानों के लिए काम करती है। प्रतापगढ़ और आस-पास के ज़िलों में अब आंवला व्यापारियों के कम आने का कारण बताते हुए संघ के सचिव विनोद सिंह कहते हैं, "किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल पाता है, पहले जो बाग लाखों रुपए में बिक जाती थी अब हजार रुपए में बिकती है। इसके पीछे एक वजह ये भी है कि यहीं से आंवले की कलमें राजस्थान गयी थीं, वहां पर यहां से अच्छे फल आते हैं। इसलिए प्रतापगढ़ आने वाले व्यापारी उधर जाने लगे हैं।"

उत्तर प्रदेश के कुल आंवला उत्पादन में प्रतापगढ़ की कुल भागीदारी 80 फीसदी है। यहां हर साल आठ लाख कुंतल आंवले का उत्पादन होता है। वहीं, अब क्षेत्र के किसान आंवला के बजाए अन्य फसलों में अपनी संभावनाएं तलाशना शुरू कर चुके हैं। जिला मुख्यालय से लगभग पांच किमी उत्तर में सदर ब्लॉक के गोड़े गाँव के किसान ज्वाला सिंह (60 वर्ष) अपने क्षेत्र के बड़े किसानों में गिने जाते हैं। उनके पास 25 बीघा आंवले की बाग थी, लेकिन दो वर्ष पहले उन्होंने 18 बीघा बाग काटकर उसमें केला लगा दिया गया है।

पहले तो ठीक था लेकिन अब आंवला उत्पादकों को तमाम परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। मज़दूरी भी पहले से ज्य़ादा बढ़ गई है और आंवले का सही दाम भी नहीं मिलता। आंवले की खेती करके देख ली, अब केले की खेती कर रहा हूं, जिसमें अभी तो फायदा हो रहा है।
ज्वाला सिंह, किसान

क्या कहते हैं व्यापारी

जिले के संडवा चंद्रिका ब्लॉक के गड़वारा बाजार के निज़ामुद्दीन किसानों से आंवला खरीदकर बड़े व्यापारियों को बेचते हैं। लेकिन कुछ वर्षों से उन्हें यहां पर आंवले के सही दाम नहीं मिलता इसलिए राजस्थान के भिलवाड़ा जिले में आंवले का व्यापार करने लगे हैं। निजामुद्दीन बताते हैं, "आंवले का दाम दो-तीन रुपए से शुरु होकर पांच-छ रुपए तक ही मिलता है इतने पैसे में तो मजदूरी भी नहीं निकल पाती है। बड़े व्यापारी वही आंवला कंपनी को दस-बारह रुपए में बेचते हैं।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.