जागरूकता का तामझाम, मतदान प्रतिशत बढ़ाने में रहा नाकाम

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जागरूकता का तामझाम, मतदान प्रतिशत बढ़ाने में रहा नाकामजिले में महीनों से चल रहे मतदाता जागरूकता अभियान भी मतदान के प्रतिशत पर कोई खास प्रभाव नहीं डाल सके।

श्रीवत्स अवस्थी, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

उन्नाव। जिले में महीनों से चल रहे मतदाता जागरूकता अभियान भी मतदान के प्रतिशत पर कोई खास प्रभाव नहीं डाल सके। बीते विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस बार के चुनाव में 0.61 प्रतिशत ही वृद्धि हो सकी। जोकि अब तक चली जागरूकता मुहिम के हिसाब से नाकाफी है। तमाम मतदाताओं को अपने मताधिकार से वंचित होना पड़ा। जिसकी वजह जिम्मेदारों का लापरवाह रवैया रहा।

मालूम हो कि आचार संहिता लागू होने के समय तत्कालीन जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह ने एक वार्ता के दौरान कहा था कि बीते चुनाव में मतदान के मामले में जिला फस्र्ट डिवीजन के आस पास था। इस बार हमारा प्रयास होगा कि हम डिक्टेंशन पाए। अधिक से अधिक मतदान कराने के लिए लक्ष्य लेकर जिला प्रशासन ने युद्ध स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए।

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कहीं पंतग उड़ाई गयी, कहीं कैंडल मार्च निकाला गया। शहर से लेकर गंगाघाट तक 16 किलोमीटर लम्बी मानव श्रृंखला बनायी गयी। जगह जगह मतदाता जागरूकता गोष्ठियां और रैलियां निकाली गयी। हर विभाग में मतदाता जागरूकता की मोहर लगायी गयी। इन मतदाता जागरूकता कार्यक्रमों को देख कर यही लग रहा था कि मतदान के दिनों वोटों की बरसात होगी। कयास लगाए जा रहे थे कि मतदान का प्रतिशत नहीं ज्यादा तो 60 का आंकड़ा पार करेगा। लेकिन 19 फरवरी को सम्पन्न हुए मतदान ने इन सारे प्रयासों और कायासों की हवा निकाल दी। बीती विधान सभा चुनाव में जिले का मतदान प्रतिशत 59.62 था जो बढ कर मात्र 60.23 ही पहुंचा। यानी कि इस बार के चुनाव में मात्र 0.6१ प्रतिशत की ही वृद्धि हुई। इतनी कोशिशों का यह अंजाम बताता है कि कहीं न कहीं प्रशासनिक तैयारियों में चूक जरूर हुई।

अकरमपुर के मिथलेश तिवारी बातते हैं, "कई जगहों पर मतदाता पर्ची हाथ में लेकर पहुंचे मतदाताओं को बिना मतदान किये ही बूथ से लौटना पड़ा। क्योंकि उनसे पहचान का अन्य प्रमाण मांगा गया जो वह मौके पर नहीं दिखा सके। यह तब हुआ जबकि आयोग के सख्त निर्देश थे कि फोटो युक्त मतदाता पर्ची ही मतदाता की पहचान का आधार है।"

यदि उसमें लगी फोटो पर संदेह हो तभी उससे अन्य वैकल्पिक पहचान पत्र मांगे जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अकरपुर के ही राजू गुप्ता ने बताया कि बूथ लेबल आफीसर ने अपने कर्तव्यों का सही से निर्वहन नहीं किया। मतदाता पर्ची घर घर पहुंचाने के आयोग के निर्देश धरे के धरे रह गये। शहर के इन्द्रा नगर निवासी चन्द्र शेखर बाजपेई ने बताया कि तमाम वोटर तो अपने पहचान पत्र और मतदाता पर्ची के साथ बूथ पर पहुंचे लेकिन उनके नाम ही सूची से गायब हो गये। यह कैसे हुआ यह प्रशासनिक मंथन का विषय है। बहरहाल इन जागरूकता अभियान के साथ प्रशासनिक अमला इन बिन्दुओं पर भी गंभीरता विचार करता तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि मतदान में पांच से दस फीसदी का इजाफा और हो सकता था।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

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