आचार संहिता के बहाने नकदी लेकर चलने वाले किसानों को परेशान कर रही पुलिस 

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आचार संहिता के बहाने नकदी लेकर चलने वाले किसानों को परेशान कर रही पुलिस किसानों के पास नकदी है लेकिन पुलिस चेकिंग के दौरान उसे ज़ब्त कर रही है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। आचार संहिता लागू होने के बाद पुलिस द्वारा नकदी की धरपकड़ से किसानों को खासा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। फसली सत्र होने के कारण किसानों के पास नकदी है लेकिन पुलिस चेकिंग के दौरान उसे ज़ब्त कर रही है। इस समस्या पर गाँव कनेक्शन से बात करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस ने आश्वासन दिया है कि ऐसा तरीका निकालेंगे जिससे किसानों को दिक्कत न हो।

इस बारे में अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था दलजीत सिंह चौधरी बताते हैँ, “इस समय हर जिले में चेकिंग अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में फ्लाइंग स्कॉट में मजिस्ट्रेट भी होते हैं। जनता को कितने पैसे लेकर चलना चाहिए ये एक गंभीर समस्या है। अभी तक ऐसा कोई नियम नहीं आया है कि प्रति व्यक्ति कितने पैसे लेकर सफर कर सकता है। मंगलवार को होने वाली मीटिंग में इस समस्या पर चर्चा करूंगा, जल्द ही मानक तैयार किए जाएंगे। आम आदमी और किसानों को आगे से परेशानी नहीं होगी।”

सब्जी बेचकर लौट रहे एक बड़े किसान किसान उमेश चंद्र पांडेय को पुलिस रोक लेती है और पूरी कार की तलाशी लेती है। उसके पास बेची गई सब्जी के एक लाख रुपए मिले तो सादी वर्दी में मौजूद अधिकारियों ने उससे अभद्रता करते हुए पूछा कि इस पैसे का हिसाब बताओ।

मामला सीतापुर का है। यहां के बड़े किसान उमेश चंद्र पांडेय जब अपनी पत्नी के साथ कार से सीतापुर से अपने गाँव औरंगाबाद जा रहे थे तब ये घटना उनके साथ हुई। सीतापुर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर औरंगाबाद के रहने वाले उमेश चंद्र पांडे (45 वर्ष) प्रशासन से सवाल (क्या इस देश में नोट रखने पर पाबन्दी है यदि नहीं तो फिर जांच के नाम पर किसानों को क्यों परेशान किया जा रहा है। क्या कोई एक लाख रुपए लेकर भी नहीं चल सकता?) करते हुए बताते हैँ, “सीतापुर से अपने गाँव औरंगाबाद अपनी कार से आ रहा था।

कार सीतापुर रोड के बरमी गाँव फारेस्ट आफिस के पास ही पहुंची थी कि एकदम से सात-आठ पुलिसकर्मियों ने कार रोक कर घेर लिया। बिना कुछ बताए कार की तलाशी लेने लगे।”

उमेश आगे बताते हैं, “जब तलाशी में उन्हें कुछ नहीं मिला तो एक अधिकारी ने मुझसे पूछा कि कैश है तुम्हारे पास। मैंने जवाब दिया कि हां, एक लाख रुपए हैं। इसके बाद अधिकारियों ने पैसे जब्त कर लिए और बड़ी अभद्र भाषा में बोले कि कहां से लाए इतना पैसा। मैंने बताया कि मैं एक किसान हूं ये पैसा आढ़त में बेची गई एक हफ्ते सब्जियों का है। फिर अधिकारियों से एक और सवाल आया कि इन पैसों तीन दिन के अंदर लिखित में हिसाब बताओ नहीं तो पैसा जब्त हो जाएगा।”

किसानों के खून पसीने की कमाई को इस तरह से जप्त करना एक तरह की प्रताड़ना है। हम लोग अपनी फसल और सब्जियों को नकदी में ही बेचते हैं क्योंकि मजदूरों और कई तरह से खर्चे भी होते हैं जो नकद पैसे देकर ही किए जाते हैँ
शिरीष त्रिवेदी (42 वर्ष), किसान, नरसिंघौली गाँव

शिरीष आगे बताते हैं, “अगर प्रशासन हमें बता दे की कितनी नकदी हम लोग लेकर चले तो उसी प्रकार से हम लोग कार्य करेंगे। इस तरह की कार्रवाई से हम लोग डरे हुए हैं।”

उमेश चंद्र पांडेय बताते हैँ, “मेरी पत्नी दिल की मरीज हैँ। सड़क पर इस तरह की कार्रवाई से वो भी काफी सहम गई। खुदा न खास्ता अगर कोई अनहोनी हो जाती तो बड़ी समस्या हो जाती। आचार संहिता के नाम पर ऐसी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। इस तरह की कार्रवाई से चार प्रतिशत लोगों को पकड़ने के लिए 96 प्रतिशत लोगों को परेशान किया जा रहा है।” उमेश चंद्र ने ही बताया की सोमवार को सीतापुर के एक पूर्व प्रधान के 75 हजार रुपए इसी तरह की कार्रवाई में जब्त किए गए थे।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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