पिछले 30 सालों से 17 नहरों में पानी की जगह उड़ती है धूल

Kishan KumarKishan Kumar   24 March 2017 8:59 PM GMT

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पिछले 30 सालों से 17 नहरों में पानी की जगह उड़ती है धूलसूखी पड़ी नहरों से नहीं हो पा रही खेती।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

रायबरेली। “कभी ये इलाका धान की खेती के लिए मशहूर हुआ करता था लेकिन अब तो यहां के किसान धान की खेती भूल ही चुके हैं। अब तो सिर्फ वही किसान धान लगाने की हिम्मत कर सकता है, जिसके पास सिंचाई का खुद का साधन हो।” ये कहते हुए किसान नेता योगेन्द्र सिंह (48 वर्ष) आगे बताते हैं कि पिछले 30 सालों से यहां की नहरें सूखी पड़ी हैं।

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रायबरेली मुख्यालय से 25 किलोमीटर दक्षिण दिशा में स्थित लालगंज क्षेत्र के लगभग 17 नहरें ऐसी हैं, जिनमें पिछले 30 सालों से पानी नहीं आया है। स्थानीय निवासियों की मानें तो 25-30 साल तक की उम्र के किसी भी व्यक्ति ने इन नहरों में पानी नहीं देखा। सरेनी बाजार में सब्जी की दुकान करने वाले नन्द किशोर चौरसिया बताते हैं, “कभी इस इलाके में हर फसल पैदा होती थी। गांव-गांव तक फैली माइनर में लबालब पानी भरा रहता था लेकिन अब तो नहरों में धूल उड़ रही है।“

नन्द किशोर सरेनी के पास झामपुर गाँव के रहने वाले हैं। सब्जी उगाकर आसपास के बाजार में बेचते हैं। सिंचाई के लिए ट्यूबवेल लगवाया है। सरेनी से लेकर लालगंज तक सैकड़ों गांव के लिए खेती किसानी अब उनके बस की बात नहीं रह गई है जबतक उनके पास ट्यूबेल नहीं है। ऐसे में जिले के कई किसान खेती से मुंह मोड़ चुके हैं। उन्होंने अन्य व्यवसाय करना शुरू कर दिया है। जैसे हथिनासा ग्राम के कृपा शंकर जो अपना ढाई बीघा खेत बटाई पर देकर सरेनी बाजार में ही कपड़े की दुकान लगाते हैं।

इस संदर्भ में नहर विभाग के अधिकारी बताते हैं, “इन नहरों के टेल तक पानी देना सम्भव नहीं है। किसान स्वयं व्यवस्था करें।” 1977 से लेकर 1990 तक सरेनी, भोजपरु, पूरे पाण्डे, दौलतपुर से लेकर काल्ही खेड़ा, खजूर गांव तक हरियाली और खुशहाली थी। तब पुरवा और मौरावाँ की नहरों से यहां की नहरों को पानी मिलता था। तब सभी नहरों और अल्पिकाओं तक पानी पहुंचता था। अब 1990 के बाद से क्षेत्र में बिछा नहरों का संजाल सूखता गया और हरे भरे खेत बंजर में तब्दील होते गए।

क्षेत्रीय किसान राम बहादुर (52 वर्ष) कहते हैं, “पिछले कई वर्षों से यहां के किसान नहरों में पानी लाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। नहरों में पानी नहीं आता लेकिन नहरों के रख-रखाव में खर्च बराबर किया जा रहा है। विभागीय अधिकारियों की दौड़ भाग भी जारी है। पर नहरें सूखी पड़ी हैं।”

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