सरकारी फार्म बंद होने से पांच हजार परिवार भुखमरी के शिकार

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सरकारी फार्म बंद होने से पांच हजार परिवार भुखमरी के शिकारकभी यह मैदान पांच हजार परिवारों की रोजी-रोटी का साधन हुआ करता था, लेकिन वन विभाग ने इस फार्म में चल रहे कृषि कार्य में अवरोध उत्पन्न शुरू कर दिया।

प्रशांत श्रीवास्तव, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बहराइच। तस्वीर में दिख रहा हजारों एकड़ में फैला यह मैदान कोई फुटबॉल स्टेडियम नहीं है। कभी यह मैदान पांच हजार परिवारों की रोजी-रोटी का साधन हुआ करता था, लेकिन वन विभाग ने कानूनी दांव-पेच खेलकर इन परिवारों को भूखमरी और पलायन के रास्ते पर ला दिया है।

जिला मुख्यालय से 110 किमी पश्चिम मिहींपुरवा ब्लॉक का बिछिया और कर्तनिया घाट का जंगली इलाका और इसके बीच हजारों एकड़ में फैले दो मैदान। वर्ष 1973-74 में देश में खाद्यान्नों की कमी के गम्भीर संकट और क्षेत्रीय लोगों की आजीविका के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी ने भारतीय राज्य फार्म निगम लिमिटेड को इस क्षेत्र में 9622.50 एकड़ वन भूमि उपलब्ध कराई थी, जिसे ‘सेंट्रल स्टेट फार्म और बुलगिहा स्टेट फार्म’ के नाम से पहचान मिली। चूंकि यह वन भूमि कृषियोग्य नहीं थी, अतः निगम द्वारा काफी धनराशि व्यय करके भूमि को कृषि योग्य बनाया गया।

इस फार्म में काम करने वाले कैलाश नगर निवासी द्वारिका (38 वर्ष) बताते हैं, “यहां आम, लीची, अमरूद तथा अन्य विभिन्न प्रकार के फलों का उत्पादन करके देश तथा विदेश में भेजा जाता था। इसके अतिरिक्त फार्म में धान, गेहूं, सोयाबीन, मक्का, राजमा, मूंग, मसूर, सरसों, मटर, लाही इत्यादि फसलों के उन्नतशील किस्म के बीज उत्पादित किये जाते थे।” कैलाश नगर निवासी गीता प्रसाद (40 वर्ष) बताते हैं, “यहां कैलाश नगर, नौबस्ती, भवानीपुर, बिछिया, आंबा, वर्दिया समेत 50 गाँवों के हजारों लोग इस फार्म में कृषि कार्य और चौकीदारी का काम करते थे, जिससे तकरीबन 5,000 परिवारों का पेट पलता था।

लेकिन वन विभाग ने इस फार्म में चल रहे कृषि कार्य में अवरोध उत्पन्न शुरू कर दिया, जिससे फार्म द्वारा फरवरी, 1998 में एक याचिका उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश की लखनऊ बैंच में दायर की गई, जहां से स्थायी रूप से एक स्थगन आदेश उच्च न्यायालय द्वारा प्रदान किया गया। इसके बाद वन विभाग द्वारा अखबारों में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित करके जनता को रोका जाने लगा कि वे फार्म से कोई भी लेनदेन न करें।

वन विभाग द्वारा सैण्ट्रल स्टेट फार्म के उत्पादों की खरीद-फरोख्त तथा नीलामी पर भी रोक लगा दी गई। इससे निगम में कृषि कार्यों में बाधा होने लगी। वन विभाग के इस रवैये से राज्य फार्म निगन ने परेशान होकर फार्म को वर्ष 2010 में बंद करना का फैसला लिया, जिससे हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए और दिल्ली-मुम्बई जैसे बड़े शहरों में कमाने चले गए और ये पलायन का सिलसिला आज भी जारी है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

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