बैंक खाते नहीं होने से आशा व प्रसूताओं के हाथ खाली

Diti BajpaiDiti Bajpai   6 Jan 2017 5:32 PM GMT

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बैंक खाते नहीं होने से आशा व प्रसूताओं के हाथ खालीजननी सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाली राशि न प्रसूता को मिलती है और न ही आशा को।

दिति बाजपेई/ स्वयं डेस्क

लखनऊ। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने जननी सुरक्षा योजना शुरू की थी, जिसमें प्रसूता के साथ उसे अस्पताल तक लाने के लिए आशा बहुओं को भी 600 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाती है। लेकिन आशाओं को ये 600 रुपए पाने के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते हैं।

प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 23 किमी दूर उत्तर दिशा में संडवा चंद्रिका ब्लॉक के कोल बझान गाँव की रमा के प्रसव के एक महीने से ज्यादा हो गए अब तक उन्हें जननी सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिला। संडवा चंद्रिका ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, किशुनगंज में 200 से ज्यादा महिलाओं को अभी योजना का लाभ नहीं मिल पाया। साथ ही यहां की आशा कार्यकत्रियों का आरोप है कि उनसे पैसे मांगे जाते हैं, तब जाकर उन्हें जननी सुरक्षा योजना के साथ ही दूसरी योजनाओं से मिलने वाला पैसा दिया जाता है।

प्रतापगढ़ जिले के मानधाता ब्लॉक के बाबापटटी गाँव की आशा बहू माधुरी सिंह बताती हैं, “हम लोग इतनी मेहनत करते हैं, फिर भी हमें समय पर पैसे नहीं मिलते गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव करवाया उनका भी पैसा नहीं मिल रहा है, वो हमसे कहती हैं कि आप की वजह से हमको पैसे नहीं मिल रहे हैं।”

भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 से 2015 के दौरान जननी सुरक्षा योजना के लिए 2380.11 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया। लेकिन जानकारी के अभाव में सरकार इस योजना में केवल 2196.56 करोड़ रुपए ही खर्च पाई।

मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रम उत्तर प्रदेश की महाप्रंबधक डॉ स्वप्ना दास बताती हैं, “बैंक खाता खुलवाने के लिए उनको गाँव के लोगों को सहायता करनी पड़ती है। ये उनका काम भी है, इसीलिए हम आशा को सम्मनित करते रहते हैं ताकि उनका हौसला बढ़ता रहे। अभी जननी सुरक्षा योजना के तहत 2016-17 में 125 करोड़ रुपए दिए गए है।”

खाता खुलवाने में आने वाली समस्याओं के बारे में रीता बताती हैं, “बैंक मे खाता खोलने के लिए पहचान की भी जरूरत पड़ती है कुछ का तो पहचान पत्र आसानी से मिल जाता है पर कुछ का हमें खुद बनवाने के लिए जाना होता है।”

शाहजहांपुर जिले के कम्युनिटी प्रोसेस प्रबंधक पुष्पराज गौतम ने बताया, जिले में 2150 आशा बहू है, जिनमें कुछ की यही समस्या है कि प्रसूता महिलाओं के बैंक खाता न होने से पैसा नहीं मिला है। गाँवों में कई ऐसे पिछड़े वर्ग है जिनका बैंक में खाता नहीं होता। बैंक को खाता खोलने के लिए दो पहचान पत्र चाहिए होते है, जिसके लिए भी आशा को दौड़ना पड़ता है। अभी भी 14 प्रतिशत भुगतान प्रसूता का बैंक खाता न होने के कारण रुका हुआ है।

पुष्पराज आगे बताते हैं, “यह भी नियम है कि पति के खाते में पैसा चला जाए लेकिन इससे प्रसूता को कोई लाभ नहीं मिलता है क्योंकि कई महिलाओं को उनके पति पैसा देते ही नहीं है।”

पिछले 15 दिन पहले रानी अवंती बाई महिला चिकित्सालय (डफरिन अस्पताल) में हुए कार्यक्रम में परिवार कल्याण की डीजी हेल्थ नीना गुप्ता ने कैबिनेट मंत्री से महिला अस्पतालों में ही बैंक खाता खुलवाने के लिए एक विशेष काउंटर बनवाने की मांग की। उन्होंने कहा कि सैकड़ों प्रसूताओं का बैंक में खाता नहीं होने से जेएसवाई का रुपया उन्हें नहीं मिल पाता है। अस्पताल से ही जीरो बैलेंस से खाता खुल जाएगा तो हर प्रसूता को जेएसवाई की योजना का आसानी से लाभ मिल सकेगा।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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