सैकड़ों गाँवों के झगड़े अब नहीं जाते थाने, नारी अदालत में होती है सुनवाई

Neetu SinghNeetu Singh   12 Feb 2017 1:20 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सैकड़ों गाँवों के झगड़े अब नहीं जाते थाने, नारी अदालत में होती है सुनवाईअब ग्रामीण महिलाओं को अपने ऊपर हो रहे शोषण के लिए पुलिस थाने के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

औरैया/लखनऊ। अब ग्रामीण महिलाओं को अपने ऊपर हो रहे शोषण के लिए पुलिस थाने के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं, सिर्फ घरेलू हिंसा ही नहीं, बल्कि जमीन संबंधी मसले, मजदूर-शोषण, बाल-विवाह, दहेज जैसे तमाम मसलों को नारी अदालत में सुलझाया जाता है।

नारी अदालत महिलाओं के द्वारा बनाया गया एक ऐसा मंच हैं, जिसमे 6-14 महिलाएं निर्णायक की भूमिका में रहती हैं। इन्हें कानून और जेंडर संबंधी सभी विषयों पर प्रशिक्षित किया जाता है। निष्पक्ष रूप से समस्या का समाधान होने के साथ ही समय और पैसे दोनों की बचत होती है। औरैया जिले की राजेश्वरी देवी (55 वर्ष) हर महीने की 29 तारीख को नारी अदालत का संचालन करती हैं। राजेश्वरी बताती हैं, “जब पहली बार घर से बाहर कदम रखा था तो पूरे गाँव में कानाफूसी होने लगी थी कि बहू अब तो कमाई करने लगी है।”

आज भी 20वीं सदी में जी रहे औरैया जिले में ये सिर्फ राजेश्वरी की ही बात नहीं, बल्कि प्रदेश की लाखों महिलाएं इसमें शामिल हैं। खुद से हार न मानने वाली इन महिलाओं ने आज 14 जिले के हजारों गाँव में अपनी खास पहचान बनाई हुई है। राजेश्वरी जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर हाइवे के दक्षिण दिशा में गोहना गाँव की रहने वाली हैं। महिला सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संस्था महिला सामाख्या की नारी अदालत सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।

प्रदेश के 14 जिलों में 36 नारी अदालत वर्तमान समय में काम कर रही हैं। वर्ष 1997 में नारी अदालत की शुरुआत की गयी थी। वर्ष 1997-2016 तक इन नारी अदालत में अब तक 53,400 मामले आए हैं। जिसमें बड़ी संख्या में मामले निपटाए गए हैं।
कहकशां परवीन, राज्य संदर्भ प्रतिनिधि, महिला सामाख्या।

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सम्बन्ध में वर्ष 2015 में जो मामले दर्ज हुए हैं, उनमें उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है। उत्तर प्रदेश में 35,527, महाराष्ट्र में 31,126, पश्चिम बंगाल में 33,218 मामले दर्ज हुए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले चार वर्षों से 2015 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है जिसमें पीड़ित महिलाओं द्वारा पति और रिश्तेदारों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं। इ

न आंकड़ों को काफी हद तक कम करने के लिए महिला सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संस्था महिला सामाख्या की नारी अदालत सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। नारी अदालत में प्रदेश के जितने भी जिलों में नारी अदालत चल रही है सभी जिलों की हर महीने की तारीखें निर्धारित होती हैं। आस-पास गाँव के लोगों के साथ ही दूसरे पास के जिलों के भी लोग अपने मामले लेकर आ जाते हैं।

राजेश्वरी ने बताया, “जनपद के सैकड़ों गाँव की महिलाएं नारी अदालत में छोड़-छुडौती, मारपीट, घरेलू हिंसा, नाली खड़ंजे के झगड़े, जमीन संबंधी विवाद लेकर आती हैं, पिछले कुछ वर्षों से यहाँ पर पुरुषों की भी सहभागिता बढ़ी हैं।

सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर पिसावां ब्लॉक में हर महीने नारी अदालत लगती हैं। नारी अदालत की अध्यक्ष नीबू खली (35 वर्ष) बताती हैं, ‘’महिलाओं के साथ कोई भी हिंसा या गलत काम होता है तो वो हमारे पास ही आती हैं, सीधे थाने नहीं जाती हैं, हम उनको हक दिलाते हैं।” नीबू खली पिसावां ब्लॉक से चार किलोमीटर दूर अलीपुर गाँव की रहने वाली हैं।

वहीं, नारी अदालत से जुड़ी मुडाखुर्द गाँव की सुषमा कुमारी (35 वर्ष) केवल पांचवी तक पढ़ी हुई हैं, लेकिन अपनी अदालत में आने वाले सभी मुद्दों में कौन-सी धारा लगेगी और कितनी सजा का प्रावधान है यह सभी बातें वो पूर्णतया जानती हैं। सुषमा बताती हैं, ‘’अदालत चलाने से पहले हमको पूरी शिक्षा दी गई थी, महिला सामाख्या की तरफ से हमे पढ़ाया भी गया, आज मैं खुद दूसरी महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के लिए लड़ाई लड़ती हूँ।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.