बदलते मौसम से फसलों पर बढ़ा कीट व रोग का खतरा

Sudha PalSudha Pal   14 March 2017 1:06 PM GMT

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बदलते मौसम से फसलों पर बढ़ा कीट व रोग का खतराबारिश से खेतों में तैयार होने वाली फसलों में रोग लगने की संभावना बढ़ गई है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पिछले तीन दिनों से मौसम के बदलते मिजाज़ से किसानों को बड़ा नुकसान हुआ है। कहीं खेतों में खड़ी फसलें गिरीं तो कहीं बारिश से खेतों में काटकर रखी गई फसल खराब हो गई। बारिश से खेतों में तैयार होने वाली फसलों में रोग लगने की संभावना बढ़ गई है।

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“मैंने अभी हाल ही में किसानों से बातचीत की तो पता लगा कि इस समय सब्जी की फसलों में काफी दिक्कत आ रही है। वहां फसलों में माहू और सफेद मक्खी लगी हुई हैं। सरसों में भी कीड़े लग रहे हैं।” ये कहना है मलिहाबाद के रहमानखेड़ा स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) के पौध सुरक्षा विभाग के अधिकारी डॉ. बालाजी राजकुमार का जिन्होंने मलिहाबाद के गाँवों की फसल का मुआयना किया।

उन्होंने बताया कि मौसम में आए बदलाव से किसान परेशान हैं। शाम को ठंडा और दोपहर को निकलने वाली धूप की वजह से तापमान में उतार-चढ़ाव लगातार बना हुआ है। बारिश के साथ चल रही तेज हवा से तो किसानों को नुकसान हुआ लेकिन इसके बाद भी इसका असर फसलों पर पड़ सकता है। संस्थान के पौध सुरक्षा विभाग के सहकारी अधिकारी विनय सिंह बताते हैं, “कीट और बीमारी लगने की संभावना उस समय सबसे ज्यादा होती है जब बारिश के बाद तेज धूप निकल आए। उस समय पौधों में फंगल इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है। तापमान, आर्द्रता और पौधों के विकास पर ही कीट या बीमारी का लगना निर्भर करता है।” उन्होंने बताया कि पौधों के नए पत्तों पर भी रोग का असर दिख सकता है। खेतों में खड़ी फसल गिरने के बाद किसान चिंता में हैं। सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर रेवसा ब्लॉक के सिकोहा गाँव के श्वेतांक त्रिपाठी का कहना है, “गेहूं और सरसों की खेती करने वाले किसानों को परेशानी हो सकती है। फसल खराब तो हो गई है अब डर है कि बालियों में कोई दिक्कत न आ जाए।”

इन रोगों और कीटों की चपेट में आ सकती हैं फसलें

सफेद मक्खी कीट

वयस्क कीट सफेद रंग के होते हैं। ये कीट पौधों की पत्तियों का रस चूस लेते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं। ये कीट सभी सब्जियों में लगती है।

फलीभेदक कीट

गेहूं, चना और मसूर की फसलों के लिए यह कीट घातक होता है। ये कीट फलियों में छेद बनाकर दानों को खाता रहता है।

पीला मोजैक वायरस

यह रोग सफेद मक्खी की वजह से फैलता है। इसमें पत्तियां पीली हो जाती हैं। यह वायरस हवा के साथ तेजी से फैलता है। यह रोग जायद की फसलों में लग सकता है।

पाउड्री मिल्ड्यू रोग

इस समय आम की फसल में भुनगा रोग के साथ यह रोग लग सकता है। सरसों के साथ रबी की सब्जियां भी इस रोग से प्रभावित हो सकती हैं। इसमें फसल पर सफेद रंग का पाउडर बनने लगता है।

पत्ती धब्बा रोग

मुख्य रूप से गेहूं की तैयार हो रही फसल में इस रोग के लगने की संभावना इस समय बढ़ गई है। इस रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के भूरे धब्बे बन जाते हैं। इससे पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं। इसकी वजह से फल भी प्रभावित होते हैं। संक्रमित फल पीले पड़ जाते हैं और पकने से पहले ही गिर जाते हैं। यह रोग सब्जी की फसलों में भी लग सकता है।

कटुआ

यह कीट चना, मटर, मसूर, गेहूं, सरसों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह बुवाई के कुछ समय बाद से ही नुकसान पहुंचाने की प्रकिया शुरू कर देता है। यह कीट गहरे भूरे रंग की चिकनी होती है। कीट का संडिया गिडार रात के समय तनों को काट देती है।

गेरुआ रोग

गेहूं में गेरुआ रोग का प्रकोप उसकी बालियों पर पड़ता है। बालियों में दानों का विकास सही से नहीं हो पाता है। इसके साथ ही पत्तियां सफेद गेरुई रंग की हो जाती हैं। मसूर में भी यह रोग लग सकता है।

मोयला

सरसों के साथ धनिया, जीरा और पहले से बोई गईं भिंडी जैसी सब्जी की जायद फसलों में इस रोग के लगने की संभावना है। यह रोग भी तीन तरह का होता है- काला कतई, हरा और जैतूना। ये कीट फसल का रस चूसकर उसे खोखला कर देते हैं। इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक काला कतई होता है।

इस तरह खेतों में लगी फसलों का करें बचाव

  • चना और मसूर में फलीभेदक कीट के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए बैसिलस थूरिनजिएन्सिस यानी बीटी नामक दो लीटर दवा को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • इसके साथ ही क्यूनॉलफ़ॉस 25 प्रति ईसी या प्रोफेनोफास 50 प्रति ईसी सवा एक लीटर मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर से छिड़काव कर देना भी इसके निस्तारण के लिए फायदेमंद है। रस चूसने वाले कीटों से फसल को सुरक्षित रखने के लिए थायोमेक्थोसम या डाइमिथोएट का छिड़काव करें।
  • झुलसा रोग से बचाने के लिए फसल पर क्लोरोथेलोनिल और डायथेन का छिडक़ाव किया जाना चाहिए।
  • पीला मौजेक वायरस से पूरी फसल को बचाने के लिए संक्रमित पौधों को उखाड़कर गड्ढों में गाड़ देना चाहिए। कटुआ की रोकथाम के लिए पांच फीसदी एल्ड्रॉन हैप्टाक्लोर या क्लोरोडोन 15 से 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए या फिर 0.02 फीसदी एल्ड्रीन के घोल का लगबग 1000 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करना चाहिए। मोयला रोग के लिए मिथाइल पैराथिऑन (2 फीसदी), यामैलाथिऑन (5 फीसदी) या कार्बेरिल (5 फीसदी) एक लीटर कार्बोरिल, प्रति हेक्टर की दर से पानी में मिलाकर किसान फसल पर छिड़काव कर नुकसान से बचा सकते हैं।

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