अधिक पानी की खपत और बीमारियों के कारण पान की खेती छोड़ रहे किसान

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अधिक पानी की खपत और बीमारियों के कारण पान की खेती छोड़ रहे किसानआंकड़ों के अनुसार सन 2000 में 800 करोड़ था भारत में पान का कारोबार।

सुशील सिंह, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

सुल्तानपुर। जिले के लंभुआ तहसील के बरूआ हरिहरपुर सूरजभान पट्टी ग्राम सभा में एक समय पान की खेती हुआ करती थी। लेकिन पान में रोगों के डर से अब किसानों ने इसकी खेती करना बंद कर दी है।

सूरजभान पट्टी ग्राम सभा में रहने वाले किसान हृदय नारायण चौरसिया (55 वर्ष) बताते हैं,’’ पान की खेती बरेजा में होती है, एक बरेजा (ढांचा) के निर्माण में एक लाख रुपए लग जाता है। महंगाई के समय इतना खर्च उठाना बहुत मुश्किल होता है और हमें इसके लिए हमें सरकारी मदद भी नहीं मिलती है।” वो आगे बताते हैं,

अब हम पान की खेती नहीं करते हैं। सूरजभान पट्टी ग्रामसभा में उगाए जाने वाले पान पहले बनारस के व्यापारी खुद पंचायत में आकर खरीदते थे पर इसकी खेती कम हो जाने से अब व्यापारी भी नहीं आते हैं।
हृदय नारायण चौरसिया, निवासी- सूरजभान पट्टी ग्राम सभा

भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, सन 2000 में भारत में पान का कारोबार करीब 800 करोड़ का था। पिछले दशकों में इस कारोबार में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की गिरावट आई है।

पान की खेती में मेहनत बहुत है और इसमें लगने वाले रोग के कारण फसल में अधिक नुकसान हो जाता है,जिससे बहुत घाटा झेलना पड़ता है।
संतराम (40 वर्ष), पंचायत के किसान

सुल्तानपुर जिले में तेज़ी से घट रही पान की खेती की मुख्य वजह बताते हुए कृषि विज्ञान केंद्र, सुल्तानपुर के वैज्ञानिक सुधांशु शेखर सिंह ने बताया कि बीत कुछ वर्षों में यहां के अधिकांश किसानों ने हमें पान की फसल पर फफूंदजनित स्केलरोशियम सेल्फसाई रोग लगने की शिकायत की है। पान की खेती घटने का यही एक मुख्य कारण माना जा रहा है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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