दो कमरों में ओस्टर मशरूम उगाकर 1000-1200 रुपये रोज कमाते हैं सोनभद्र के कई किसान

Karan Pal SinghKaran Pal Singh   4 Feb 2017 9:58 PM GMT

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दो कमरों में ओस्टर मशरूम उगाकर 1000-1200 रुपये रोज कमाते हैं सोनभद्र के कई किसानओस्टर मशरूम के लिए भूसे की बनीं पिंडिया। फोटो: करन पाल सिंह

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

सोनभद्र। मशरूम की खेती देश में बहुत तेजी से बढ़ रही है क्योंकि ये छोटे-बड़े किसानों के लिए आय का बेजोड़ साधन साबित हो रही है। कम जगह में अधिक से अधिक फायदा देने वाली यह खेती सोनभद्र जैसे आदिवासी क्षेत्रों में प्रतिदिन लोकप्रिय होती जा रही है। कुछ संस्थाएं मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीणों को नि:शुल्क प्रशिक्षण भी दे रही हैं।

जिले के राबर्ट्सगंज ब्लॉक में इलाहाबाद ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान ‘ओस्टर मशरूम’ की खेती करने के लिए ग्रामीणों को एक महीने का नि:शुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है। जिसमें 200 से ज्यादा आदिवासी महिलाएं और पुरुष प्रशिक्षण ले रहे हैं। जो लोग प्रशिक्षण ले चुके हैं वो अपने घर और खेत में मशरूम की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं।

मैंने अपने घर के दो कमरों में ओस्टर मशरूम की खेती शुरू कर दी थी। आज मैं प्रतिदिन 10 से 12 किलो मशरूम 100 से 120 रुपए प्रति किलो के भाव से बेचता हूं। जिससे काफी अच्छा मुनाफा हो जाता है।
अभिराम तोमर (28 वर्ष), किसान सोनभद्र

ट्रेनर मनोज पटेल (30 वर्ष) बताते हैं, “प्रशिक्षण में हम ग्रामीणों को ओस्टर मशरूम की एक महीने की ट्रेनिंग देते हैं। ओस्टर मशरूम के बीज रांची से मंगाए गए थे। ये मशरूम गेहूं के भूसे में तैयार किए जाते हैं। इसके उत्पादन के लिए लोगों के पास जमीन होना आवश्यक नहीं है। ग्रामीण अपने घरों में इसे उगा सकते हैं। ओस्टर मशरूम का बाजार भाव काफी अच्छा है।”

10/10 के कमरे में लगभग छह केजी बीज बोया जा सकता है। बीजाई के 15 दिन बाद बीज में अंकुर आने लगता है। उसके बाद प्रतिदिन स्प्रे पंप से पानी देना चाहिए।
डॉ. निरवंत सिंह, मशरूम विशेषज्ञ, बागवानी विभाग

इलाहाबाद ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक रवि रंजन कुमार बताते हैं, “संस्थान से ट्रेनिंग करके निकलने वाले ग्रामीण अपने घरों और खेतों में ओस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं। इस मशरूम की खेती में न के बराबर लागत आती है। ओस्टर मशरूम के बीज हम रांची से मंगाते है और किसानों को बांटते हैं।”

मशरूम की पांच प्रजातियां

मशरूम एक तरह की फफूंद होती है, जो खाने में काफी स्वादिष्ट होता है। इसकी चार प्रजातियां होती हैं, जिन्हें खाने में इस्तेमाल किया जाता है। जैसे- ओस्टर मशरूम, सफेद बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, दूधिया मशरूम और पुआल मशरूम होते हैं।

पोषक तत्व से भरपूर

मशरूम में 47 प्रतिशत प्रोटीन के साथ अमीनो अम्ल, फॉलिक एसिड और भरपूर फाइबर होता है। साथ ही आयरन की प्रचुर मात्रा होती है।

ऐसे करें ओस्टर मशरूम की खेती

सोनभद्र। गेहूं के भूसे को 12 घंटे तक पानी में भिगाया जाता है। उसके बाद भूसे में कीटनाशक, फफूंदनाशक दवा (बावेस्टीन, फार्मोलिन) मिलाकर रखा जाता है। फिर भूसे को डलिया में डालकर पानी निचोड़ दिया जाता है। इसके बाद भूसे को हल्की घूप में रख देते हैं जिससे उसमें नमी बरकरार रहे। इसके बाद 16/24 की पाॅलीथीन को लेकर उसके नीचे के भाग को बांध देते हैं। फिर एक पाॅलीथीन में एक इंच भूसे को उसमें फैला देते हैं फिर एक लेयर में ओस्टर मशरूम के बीच फैला देते हैं।

ऐसे ही एक पाॅलीथीन में पांच लेयर बनाई जाती है। पाॅलीथीन को ऊपर से कस के बांध देते हैं। हवा जाने के लिए उसमें 15 से 20 छेद कर देते हैं। पाॅलीथीन को 10 से 12 दिन जमीन से ऊपर कमरे में रखते हैं और फिर पाॅलीथीन को हटा देते हैं। जब भूसा पूरी तरह से सफेद हो जाता है तब बांस या लकड़ी के सहारे उनको जमीन से ऊपर छांव में रखते हैं। जब भी नमी की मात्रा कम हो तो स्प्रे से पानी का छिड़काव करते हैं। पांच से सात दिन बाद अंकुरण होने लगता है है फिर 10 से 15 दिन में मशरूम तैयार होने लगता हैं। मशरूम को घुमा कर तोड़ लिया जाता है। एक बंडल में दो से तीन किलो मशरूम तैयार होते हैं। इसकी खेती सितंबर से लेकर मार्च तक होती है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

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