स्कूल जाने की उम्र में लकड़ी बेच रहे बच्चे

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स्कूल जाने की उम्र में लकड़ी बेच रहे बच्चेसोनभद्र के दुद्धी विधानसभा क्षेत्र में प्राथमिक स्कूल के बच्चों का हाल

भीम कुमार

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

दुद्धी/सोनभद्र। बच्चों में शिक्षा की ललक जगाने के लिए जहां एक ओर सरकार कई योजनाएं चला रही हैं, वहीं स्कूल ड्रेस पहन कर लकड़ी काट कर बेचने को मजबूर इन बच्चों का भविष्य अधर में दिखाई पड़ता है।

सोनभद्र जिले के दुद्धी विधान सभा में इन दिनों आदिवासियों के नाम पर वोट की राजनीति में उलझे हुए नजर आ रहे हैं, पर इन छात्रों के ऊपर किसी दल के नेता पढ़ाई के लिए कोई टोह तक नही ले रहे हैं। जिस वक्त छात्रों को स्कूल में होना चाहिए, उस वक्त स्कूल की ड्रेस में यह छात्र-छात्राएं जंगलों से लकड़ी काटकर बाजार के होटलों में बेचने को मजबूर हैं।

इन छात्र-छात्राओं से जब पूछा गया तो वह बोले, "लकड़ी काटने के लिए हमें जंगलों में जाना पड़ता है। कई घंटे जंगल में बिताने के बाद लकड़ी को इकट्ठा करते हैं और बाद में उसे बाजार में लाकर बेचते हैं। पूरा दिन मेहनत करने के बाद हमें शाम तक सौ रुपये तक मिल जाते हैं।

दुद्धी क्षेत्र में गाँव के एक-दो बच्चे ही नहीं, बल्कि सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं जो जंगल से लकड़ी काटकर जीविकोपार्जन करने को मजबूर हैं। सरकार द्वारा बच्चों के हित के लिए चलाई जा रही योजनाओं का इस गाँव के बच्चों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। सुबह होते ही गाँव के बच्चे कई किलोमीटर का सफर पूरा करने के बाद जंगलों से लकड़ी काटकर लाते हैं और बेचने के लिए शहर तक का सफर पूरा करते हैं।

यहां के बच्चों की यह दिनचर्या बन चुकी है, जो करहिया, बहेराडोल, गड़दरवा समेत कई गाँव में रहने वाले आदिवासी परिवारों के बच्चों का हाल भी जैसे तैसे ही है। जंगलों से लकड़ी लाने वाले बच्चों को हर रोज बीस किलोमीटर से अधिक का सफर पूरा करना पड़ता है। यह बच्चे बताते हैं, “जब हमें काम से फुर्सत मिलती है तो ही हम स्कूल जा पाते हैं।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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