शहर-गाँव में काम पड़ा ठप, कैसे जिएं मजदूर 

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शहर-गाँव में काम पड़ा ठप, कैसे जिएं मजदूर चौक बाजार पीपल तिराहा पर काम के लिए आए दिहाड़ी मजदूर।  

हरी नारायण शुक्ला, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

गोंडा। जिले में करीब एक लाख दिहाड़ी मजदूर ऐसे हैं, जिनके यहां दिन भर काम के बाद ही शाम को चूल्हा जलता है। इन मजबूरियों की वजह से मजदूरी के काम के लिए लोग शहर में दिहाड़ी के लिए रोटी बांध कर आते हैं, मगर अब इन मजदूरों को बैरंग लौटना पड़ रहा है। कारण, एक तरफ जहां नोटबंदी का असर अभी भी कायम है, वहीं आचार संहिता लगने की वजह से निर्माण कार्य लगभग बंद हैं।

दूसरी तरफ गाँव की मनरेगा में काम बंद पड़ा हुआ है और इसका सीधा असर 1054 गाँव में पड़ रहा है। इतना ही नहीं, पुरानी कार्ययोजना पर काम नहीं शुरू कराया जा सका। इसका असर यह है कि इससे मजदूर न शहर में, न ही गाँव में काम पा रहे हैं।

दिन मंगलवार, समय सुबह नौ बजे, स्थान गोंडा चौक बाजार तिराहा। यहां पर करीब 200 ग्रामीण मजदूर काम की तलाश में खड़े इंतजार कर रहे हैं। गाँव कनेक्शन के संवाददाता के पहुंचने पर सब दौड़ पड़े कि साहब कौन सा काम है। इस बीच एक आदमी छोटे काम के लिए आया, जो दो मजदूरों को ले गया और बाकी निराश उसे देखते रहे। यह दृश्य मजदूरों की बेबसी का है, जो घर से रोटी लेकर काम के लिए गाँव से शहर साइकिल चलाकर आये, लेकिन यहां पर उन्हें काम देने वाला कोई नहीं है। दो माह पहले यहां पर मजदूरों को पाने के लिए लोगों को सुबह जल्दी जाना पडता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब मजदूर दस बजे तक काम मिलने क लिए यहां खड़े रहते हैं।

सभी बीडीओ को मनरेगा की पुरानी परियोजना पर काम कराने के आदेश दिये गये हैं। आचार संहिता के चलते नई परियोजना पर काम नहीं शुरू कराया जा सकता है।
जयंत कुमार दीक्षित, सीडीओ

रूपईडीह ब्लॉक के भवनियापुर निवासी मजदूर राजेश बताते हैं, "शहर में निर्माण काम बंद होने से उन्हें काम नहीं मिलता। हम जैसे कई मजदूरों को कई दिन बैरंग लौटना पड़ा है। वहीं, गाँव में मनरेगा बंद है और मनरेगा से शहर में मजदूरी ज्यादा और नकद मिलती है।” दूसरी ओर, गंगापुर गाँव के सत्य प्रकाश और अंजनी, रानियाभारी के रामतीरथ, सालपुर के राजेश, ककरहा के पुत्तीलाल और विजय का कहना है कि ऐसी मंदी हमने कभी नहीं देखी।

गाँव में मनरेगा बंद और शहर में काम बंद होने से हम लोग कहां जाए।” वास्तव में मनरेगा की दिहाड़ी 174 रूपये और मिस्त्री की दिहाड़ी 282 रूपये है, जबकि बाजार में 250 दिहाड़ी मजदूर की और मिस्त्री का मेहताना 500 रूपये है। यही मजदूरी में इसी फासले के कारण इन्हें शहर बुलाता है।

मनरेगा की हकीकत यह है कि डीएम आशुतोष निरजंन ने मजदूर दिवस के दिन एक हजार 54 परियोजनाओं पर काम शुरू कराया, तब एक लाख मजदूर को तत्काल काम मिला। इसके बाद जुलाई में काम बंद हुआ तो दोबारा शुरू नहीं हो पाए। दो अक्टूबर को गाँव समृद्धि दिवस शुरू हुआ, लेकिन पक्का काम होने से कुल दस हजार को काम मिल पाया। वर्तमान में मनरेगा की हालत सबसे दयनीय है क्योंकि पुरानी परियोजनाओं पर काम कोई बीडीओ शुरू नहीं करना चाहता।

100 दिन काम की योजना की स्थिति

बभनजोत में कुल ग्राम पंचायत 66 और काम सिर्फ एक स्थान पर, बेलसर में ग्राम पंचायत 51, काम तीन स्थान में, छपिया में गाँव 81 काम एक स्थान में, कर्नलगंज में गाँव 65 काम दो स्थान में, हलधरमऊ में गाँव 61 काम एक स्थान में, इटियाथोक में 71 गाँव काम सात स्थान में, झंझरी में गाँव 75 में काम एक स्थान पर, कटराबाजार में गाँव 67 में काम शून्य, मनकापुर में गाँव 77 और काम एक स्थान पर, मुजेहना में गाँव 57 और काम एक गाँव में, नबावगंज में 61 गाँव और काम छह स्थान में, पडरीकृपाल में गाँव 49 और काम दो गाँव में, परसपुर में 68 गाँव में और काम एक स्थान पर, रूपईडीह में 89 गाँव में और काम एक स्थान में, तरबगंज में गाँव 54 और काम दो गाँव में, वजीरगंज में गाँव 52 और काम एक स्थान में हो रहा है। यह तस्वीर मनरेगा की है, जो मजदूरों की बेरोजगारी दिखा रही है। यह हाल 100 दिन काम की गारंटी योजना की है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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