रंग लाई ग्रामीणों की मेहनत, सीतापुर के 50 गांव घाघरा के कहर से बचे

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रंग लाई ग्रामीणों की मेहनत, सीतापुर के 50 गांव घाघरा के कहर से बचेबांध 

दिवेन्द्र सिंह

विकास सिंह तोमर- कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

लहरपुर (सीतापुर)। हर वर्ष घाघरा के कहर से सैकड़ों घर और हजारों एकड़ खेत बह जाते हैं। सीतापुर में भी घाघरा ने इस साल भी कहर ढाया लेकिन हमेशा से बाढ़ झेलने वाले करीब 50 गांव इस बार पूरे तरह सुरक्षित हैं। गांव के इन लोगों ने अपने को बचाने के लिए सरकार से लंबी लड़ाई लड़ी और अपनी मांगे मनवाने में कामयाब रहे।

सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूर लहरपुर तहसील के सोंसरी गाँव में हर वर्ष बाढ़ में सैकड़ों किसानों के घर खेत सब बह जाता था। हर बार दर्जनों गाँव इस कहर में बह जाते यही नहीं सैकड़ों लोगों के घर बाढ़ और कटान में समा जाते हैं। इससे हजारों लोग प्रभावित होते हैं। सोंसरी गाँव के विनय शुक्ला बताते हैं, "हर बार की बाढ़ में गाँव का कुछ हिस्सा नदी में बह जाता, खेत के खेत बह जा रहे थे। किसानों की सारी मेहनत बह जाती। लेकिन हम इसके लिए कुछ नहीं कर पा रहे थे।"

ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से बनवाया बांध

इससे बचने के लिए ग्रामीणों ने न जाने कितनी ही बार शासन-प्रशासन को पत्र लिखा। जब उनकी आवाज अधिकारियों और मंत्रियों तक नहीं पहुंची तो ग्रामीण धरने पर बैठ गए। गाँव के ही शिवालय मंदिर पर सोंसरी, बुछनापुर, खालेपुर, मुसियाना, महसी, सैतियापुर, मुगलपुर जैसे दर्जनों गाँवों के सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण धरने पर बैठ गए।

हम सभी कई दिनों तक धरने पर बैठे रहे, सब बारी-बारी से मंदिर पर बैठते रहे। कई दिनों तक अनशन चलता रहा। हमने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बाढ़ से बचाव के ठोस उपाय करने की मांग की।
विनय शुक्ला, सोंसरी गाँव

हर दिन गाँव के पचास लोग मुख्यमंत्री को पोस्ट कार्ड भेजने लगे। कई दिनों तक धरना चलने के बाद अधिकारियों के आश्वासन के बाद अनशन खत्म किया गया। "साल 2013 में अनशन के बाद भी ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन ही मिला, हम लोगों के मेहनत बर्बाद हो गयी। तब हम लोगों ने नदी में खड़े होकर प्रदर्शन किया।" गाँव के करुणा शंकर मिश्र कहते हैं।

बांध

लगभग चार साल तक चले किसानों का प्रदर्शन आखिर में रंग लाया। आखिर उनकी मेहनत रंग लायी। वहां पर नदी के वेग को कम करने के लिए तट पर स्टड बनाए जाने शुरु हो गए। सिंचाई विभाग के कर्मचारियों के साथ ही सैकड़ों ग्रामीणों ने दिन रात एक कर दिए। ये स्टड सोंसरी-खालेपुरवा तक तकरीबन दो किमी. के दायरे में बने हैं। साथ ही जीईओ बैग भी रखे गए हैं। इसके बाद न सिर्फ लोगों के घर सुरक्षित होंगे, बल्कि उनके खेत व फसलों का नुकसान भी कम होगा। निर्माण की जिम्मेदारी बाढ़ खंड पीलीभीत इकाई को सौंपी गई थी। इससे नदी के तट पर बसे तकरीबन 50 गाँवों को फायदा मिल रहा है। विनय शुक्ला बताते हैं, "ग्रामीणों की मेहनत रंग लायी है, इस बार हमारा गाँव पूरी तरह से सुरक्षित है। बाढ़ से कोई नुकसान नहीं हुआ।

बांध बनने से शारदा के तटीय क्षेत्र के सोंसरी, सेमरिया, बुढ़नापुर व खालेपुरवा में कटान का कहर थम गया है। चांदी, मूड़ी खेरा, बेलवा, मास्टर पुरवा, मुगलपुर समेत करीब 50 गाँवों में नदी इस बार अपना कहर नहीं ढा पायी।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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