ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं: 8 साल का धर्मराज नानी को अस्पताल ले जा रहा है

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ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं: 8 साल का धर्मराज नानी को अस्पताल ले जा रहा हैअपनी नानी को ठेलिया पर ले जाता धर्मपाल, पीछे धक्का देती उसकी बहन, ये काम वो महीने में कई बार करता है। फोटो- महेंद्र पांडे

बसंत कुमार / स्वयं डेस्क

बाराबंकी। आठ साल धर्मराज के पैर पैडल तक पहुंच नहीं रहे थे। लेकिन वो जोर-जोर से पैडल मारते हुए साइकिल ठेलिया को खींचता जा रहा था। कड़ाके की सर्दी में भी पसीना आ रहा था लेकिन उसे और जल्दी थी क्योंकि उसे कमरदर्द से पीड़ित अपनी नानी को डॉक्टर तक पहुंचाना था। धर्मराज महीने में कई बार 10 किलोमीटर दूर ऐसे ही उन्हें दिखाने ले जाता है।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर टाई कलां गाँव की रहने वाली बुजुर्ग जशोदा को पिछले दिनों आवारा कुत्तों ने दौड़ा दिया था, जिसके बाद वो गिर गयीं और उनकी कमर टूट गया थी। कमर दर्द से कराह रही जशोदा देवां स्थित सरकारी अस्पताल गई लेकिन वहां उनका दर्द कम नहीं हुई। अब वो निजी डॉक्टर को दिखाने को मज़बूर हैं।

लचर ग्रामीण सेवाओं की वजह भी है। अमेरिका जैसे विकसित देश में चिकित्सा सेवाओं पर देश की कुल जीडीपी का 17 फीसदी हिस्सा खर्च होता है जबकि भारत में महज 4 फीसदी है।

खेतों के बीच बने रास्ते पर ठेलिया पर बैठी मिलीं जशोदा बताती हैं, “मैं देवां अस्पताल गई थी, डॉक्टर ने ये तो कहा कि एक्सरे होना है लेकिन वहां सुविधा नहीं थी तो अब मेरे नानी और नातिन दूसरे डॉक्टर (निजी डॉक्टर) के यहां ले जाते हैं।”

कमर टूट गई है। सरकारी अस्पताल में एक्सरे नहीं हुआ। तो निजी डॉक्टर को दिखाती हूं। बेटे मजदूरी करते हैं अगर उनके साथ गई तो शाम को घर के लिए रोटी कहां से आएगी इसलिए नाती के साथ ठेलिया से आती-जाती हूं।
जशोदा, पीड़ित मरीज

टाई कलां गाँव के आसपास कोई सरकारी अस्पताल नहीं है। गाँव के एक तरफ तिंदोला गाँव में और दूसरी देवां में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। टाई कलां गाँव से दोनों की दूरी आठ किलोमीटर है। लेकिन दोनों जगह हड्डी रोग विशेषज्ञ न होने के चलते वो मैनहार में निजी क्लीनिक चलाने वाले डॉ. ओपी शर्मा को दिखाती हैं।

“ठेलिया पर मरीज देखकर हैरान न हों, यहां न गर्भवती महिलाएं तक साइकिल और ठेले से इलाज़ करानी आती हैं। कई ग्रामीणों के पास तो दवा और फीस तक के पैसे नहीं होते।
डॉ. ओपी शर्मा, निजी चिकित्सक, बाराबंकी

डॉक्टर शर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया, “ठेलिया पर मरीज देखकर हैरान न हों, यहां न तो इतनी सुविधाएं हैं और ना ही लोगों के पास इतने पैसे की शहर से इलाज करा सकें। इस इलाके में तो गर्भवती महिलाएं तक साइकिल और ठेले से इलाज़ करानी आती हैं।” वो आगे बताते हैं, कई ग्रामीणों के पास तो दवा और फीस तक के पैसे नहीं होते। दिन भर में अगर दस मरीज़ आते हैं तो पांच तो हमें हमारा फीस भी नहीं देते हैं।”

जशोदा जैसे तमाम उदाहरण यूपी और देश के दूसरे हिस्सों में मिल जाएंगे। फोटो- महेंद्र

दर्द से कराहते हुए वो जशोदा बताती हैं कि मेरे तीन बेटे हैं। तीनों मजदूरी करते हैं। वो मुझे अस्पताल छोड़ने आयेंगे तो रात में घर पर चूल्हा नहीं जलेगा। इसी कारण मैं ठेले पर आती जाती हूँ। मुझे अपने घर से अस्पताल आने में एक से दो घंटे लगते हैं।” जशोदा को ये भी नहीं पता की इमरजेंसी में सरकारी एंबुलेंस की सुविधाएं ली जा सकती हैं।

102 और 108 इमरजेंसी एंबुलेंस सुविधाएं हैं। अगर महिला को ज्यादा दिक्कत है तो सरकारी अस्पातल में भर्ती हो जाए। अगर वहां कोई दिक्कत हो विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
शिवकांत ओझा, चिकित्सा मंत्री, उत्तर प्रदेश

इस बारे में बात करने पर प्रदेश के चिकित्सा मंत्री शिवकांत ओझा ने कहा, “102 और 108 इमरजेंसी एंबुलेंस सुविधाएं हैं। अगर महिला को ज्यादा दिक्कत है तो सरकारी अस्पातल में भर्ती हो जाए। अगर वहां कोई दिक्कत हो विभागीय कार्रवाई की जाएगी।”

ये भी पढ़ें : इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा नहीं मिलती, ठेले पर ले जाई जाती हैं प्रसूताएं

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

अखिलेश यादव बाराबंकी देवां चिकित्सा सेवा पीएचसी और सीएचसी जेपी नड्डा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं 

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