इन गाँवों में लोग नहीं उपयोग कर पाते इंटरनेट, आता ही नहीं है नेटवर्क

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इन गाँवों में लोग नहीं उपयोग कर पाते इंटरनेट, आता ही नहीं है नेटवर्कआज, जब लगभग देश के लाखों लोग 4G इंटरनेट उपयोग कर रहे हैं, वहीं यह गाँव ऐसा है जहाँ एक प्राइवेट कंपनी के नेटवर्क के सिवाय और कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं है।

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: हर्षित कुशवाहा

गोण्डा देवरिया (सीतापुर)। जहां सारा विश्व हर काम ऑनलाइन करने की होड़ में लग गया है और इसमें भारत भी पीछे नहीं है। मगर आज भी कुछ ऐसे गाँव हैं, जहाँ तमाम असुविधाएँ आज भी अपना मुँह फैलाएं खड़ी हैं। आज, जब लगभग देश के लाखों लोग 4G इंटरनेट उपयोग कर रहे हैं, वहीं यह गाँव ऐसा है जहाँ एक प्राइवेट कंपनी के नेटवर्क के सिवाय और कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं है।

नेटवर्क ही नहीं, सिम बेकार पड़े

सीतापुर जनपद से 84 किमी की दूरी पर स्थित गांव गोंडा देवरिया और उसके आस-पास के गाँव बरूई बरूआ, कुशवाहा नगर, मझिगवाँ, रघुवापुर आदि गाँवों में इस कंपनी से 2G के सिवाय कोई मोबाइल नेटवर्क उपस्थित नहीं है। मेक इन इंडिया के तहत पूरे देश में धूम मचा रहे Jio 4G का सिम तो यहाँ तमाम लोगों के पास है, पर नेटवर्क न होने की वजह से बेकार पड़े हुए हैं।

क्या कहते हैं गाँव के लोग

नितेश सिंह (17 वर्षीय छात्र) बताते हैं, ''हमने jio का नाम सुना तो हम 4G मोबाइल खरीद लाए ताकि हम भी इंटरनेट से देश-दुनिया से जुड़ सकें, पर यहां jio सिम में कभी नेटवर्क ही नहीं आया। ऐसे में हमारे गाजरी क्षेत्र के लिए यह एक शर्मनाक बात ही है।" वहीं, कुशवाहा नगर के निवासी रवि चंद्र, जो पढ़ाई करने के लिए लखनऊ रहते हैं, बताते हैं कि ''हम छुट्टियों में जब भी घर आते हैं, हमें फोन ऑफ ही रखना पड़ता है क्योंकि यहां नेटवर्क ही नहीं आता है।''

कैसे मिलाए कंधे से कंधा?

ऐसा माना जा रहा है कि गाँव भी पुरानी रूढ़िवादिताओं की जंजीरों से मुक्त होकर आज के नवीनतम युग में कन्धे से कन्धा मिला रहे हैं, पर सभी सुविधाएँ समय से गाँवों में भी पहुंचे, इस तथ्य पर कहीं न कहीं अनदेखी हो रही है। बता दें कि उल्लेखित गाँवों में अन्य किसी भी कंपनी का नेटवर्क नहीं आता है। वहीं, बरूई बरूआ निवासी प्रदीप कुमार मौर्य कहते हैं कि गाँव से बाहर निकलने पर कभी-कभार नेटवर्क आ भी जाता है और वो भी स्पीड अच्छी नहीं होती। जो नेटवर्क कंपनी का आता है, वे भी कुछ ही कंपनी हैं। मगर गाँव के बाहर।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

  

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