नोटबंदी का असर: किसी किसान की खाली पड़ी रही जमीन, किसी ने उगाई सस्ती फसल 

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नोटबंदी का असर: किसी किसान की खाली पड़ी रही जमीन, किसी ने उगाई सस्ती फसल सीतापुर जिले के हरगाँव में पैसे निकालने के लिए बैंक के बाहर लगी लंबी कतार, बंद रहा एटीएम।

रिपोर्ट: बसंत कुमार

स्वयं प्रोजेक्ट

सीतापुर। "जब नोटबंदी हुई तब गेहूं बोने का समय था। मेरे पास 35 बीघा खेतिहर भूमि है। नोटबंदी की वजह से मजबूरन मुझे गेहूं की जगह अरहर की खेती करनी पड़ी। गेहूं बोने में ज्यादा खर्च आता है। जहां मैं पहले चार बीघा में ही अरहर-मसूर की खेती करता था, वहीं इस बार मैंने 10 बीघा भूमि में अरहर की खेती की है।" यह कहना है जिले के अहमदपुर जट गाँव के रहने वाले विष्णु कुमार का। यह समस्या गाँव के विष्णु की ही अकेले नहीं है, नोटबंदी की वजह से कई किसानों को न सिर्फ अपनी फसल बदलनी पड़ी, बल्कि खेत बिना बोये छोड़ना पड़ा। गाँव कनेक्शन ने जब सीतापुर के गाँवों में नोटबंदी की वजह से उनके खेती में हुए असर में बारे में जाना तो किसानों ने अपना दर्द बयां किया।

पैसे नहीं थे, छह बीघा जमीन खाली पड़ी रही

अहमदपुर जट गाँव के किसान महेंद्र।

अहमदपुर जट गाँव के ही रहने वाले महेंद्र बताते हैं कि नोटबंदी के कारण मेरी 6 बीघा ज़मीन खाली रह गई। हमारे पास पैसे थे नहीं, कि हम खेती करें। अभी भी यहां बैंकों के बाहर सुबह से लोग कतार में लग जाते हैं। नोटबंदी की वजह से हमने खेती तो की, मगर हमारी छह बीघा जमीन खाली रह गई और पैसे न होने की वजह से हम उस पर कुछ भी बो नहीं पाए।

20 दिन से पहले आया पैसा, मगर अब तक निकाल नहीं पाया

गाँव मगुवा चौबेपुर के किसान संत राम।

सीतापुर जनपद के गाँव मगुवा चौबेपुर के रहने वाले 75 वर्षीय किसान संत राम गन्ना का पैसा निकालने के लिए बरई जलालपुर के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक के बाहर कतार में रुपये निकालने के लिए खड़े थे। उन्होंने बताया कि नोटबंदी के कारण चार बीघा खेत बिना बोये छोड़ना पड़ा। पैसे ही नहीं थे। अभी भी गन्ना का पैसा 20 दिन पहले खाते में आ गया है, लेकिन हमें मिल नहीं रहा है। गाँव के बैंकों में बहुत भीड़ है।

उधारी पर हुई इस बार पूरी खेती

अहमदपुर जट गाँव रफी अहमद बताते हैं कि इस बार की पूरी खेती उधारी पर हुई है। गेहूं बोने के समय पर ही सरकार द्वारा बड़े नोटों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। अब जो पैसे हमने रखे तो वो तो बैंको में जमा करा दिया। हमने तो अपना पैसा जमा करा दिया, लेकिन बैंकों से हमें पैसे मिले ही नहीं, जिसके बाद आसपास के लोगों की मदद से हमने खेती की। जिनकी जान पहचान थी, उनको तो दुकानदारों ने बकाया दे दिया, लेकिन जिनकी कोई जान-पहचान नहीं थी, उनका खेत खाली रह गया या उस पर अरहर वगैरह बोना पड़ा।

बाकी लोगों को गोली मार दो और पैसे ले जाओ

सीतापुर-लखनऊ हाइवे पर स्थित सीतापुर जनपद के बरई जलालपुर के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक के बाहर सैकड़ों की संख्या में लोग खड़े दिखे। बैंक के बाहर खड़े केसरिया गाँव के रहने वाले किसान दिनेश प्रताप सिंह बताते हैं कि 18 नवम्बर को एलआईसी का चेक लगाया, लेकिन अब तक एक भी रुपया नहीं मिला। 18 नवम्बर के बाद सप्ताह में पांच बार बैंक का चक्कर लगाता हूँ।दिनेश उदास होकर बताते हैं कि एक टाली गन्ना खेत में कटने के बाद रखा हुआ है। पैसे नहीं है कि उसे मिल भेजवा दूँ। वह आगे बताते हैं कि बैंक प्रबंधक कहते हैं कि बाकी लोगों को गोली मार दो और पैसे ले जाओ। अगर गोली मारने का दम होता तो हमारा ही पैसा नहीं निकलता। मेरा अकाउंट देख लीजिए, नोटबंदी के बाद एक भी रुपया नहीं निकाल पाया हूँ।

बोले, बैंक में पैसे नहीं

केसरिया गाँव के संजय कुमार।

केसरिया गाँव के ही रहने वाले संजय कुमार बताते हैं कि चार दिन से रोजाना सुबह-सुबह ठंड सहते हुए बैंक आता हूँ, लेकिन चारों दिन वापस लौटना पड़ा है। बैंक प्रबंधक कहते हैं, बैंक में पैसा नहीं आया है और हमें वापस भेज देते हैं।

अब भला कैसे कराऊं ऑपरेशन

बरई जलालपुर गाँव के राजीव।

बरई जलालपुर गाँव के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक के बाहर कतार में खड़े युवक राजीव बताते हैं कि मेरा हाथ टूटा हुआ है। उसका ऑपरेशन करवाना है। हाथ में काफ़ी दर्द होने के बावजूद बैंक में रोजाना कतार में लगता हूँ, लेकिन पैसा नहीं मिल पा रहा है। हम कतार में खड़े रहते हैं और बड़े लोग आकर पैसे लेकर चले जाते हैं। अब बताइये, अब भला कैसे कराऊं ऑपरेशन।

हम कोशिश कर रहे हैं, क्या कर सकते हैं?

बरई जलालपुर के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक के प्रबंधक धीरेन्द्र मिश्रा बताते हैं कि अभी बैंक से बैंक में पैसा ही कम आ रहा है तो हम क्या कर सकते हैं? जितना पैसा आता है, हम लोगों को बुलाकर बाँट देते हैं। आम लोगों के आरोप पर धीरेन्द मिश्रा बताते हैं कि लोगों को पैसा नहीं मिल पाता, ऐसे में वे नाराज़ हैं। हम कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऊपर से ही पैसा नहीं आता तो क्या कर सकते हैं।

50 दिन बाद भी कतार छोटी नहीं हुई

बरई जलालपुर में बने इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक हो या सीतापुर-लखीमपुर खीरी हाइवे पर स्थित हरगांव स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हो, शाह महौली में स्थित इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक या सिरैया कलां स्थित इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक, हरेक जगह 50 दिन बाद भी कतार में कोई कमी नहीं आई है। ज्यादातर एटीएम बंद पड़े हुए हैं। बैंकों में पैसे की किल्लत है। पैसा मिल जाए, इसके लिए लोग रात में ही बैंक पहुंच जाते हैं। कई जगह लोग अलाव जलाकर ठंड से बच रहे हैं तो कई जगह लोग ठण्ड से ठिठुरते हुए रात काटने को मजबूर हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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