अब गलंडर्स बीमारी से नहीं डरते बाल्हा गाँव के घोड़ापालक

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
अब गलंडर्स बीमारी से नहीं डरते बाल्हा गाँव के घोड़ापालकबाल्हा गाँव में 100 से ज्यादा हैं अश्वपालक। 

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: मोबिन अहमद

रायबरेली। जिले के हरचंदपुर ब्लॉक में आने वाला बाल्हा गाँव अश्वपालकों के गाँव के नाम से जाना जाता है। कुछ वर्षों पहले गाँव के अश्वपालक पशुओं में फैल रही गलंडर्स बीमारी से परेशान थे, लेकिन अब यहां के पशुपालकों ने पास के ही ग्रामीण विकास संस्थान से जुड़कर इस परेशानी का हल निकाल लिया है।

अब महीने में दो-तीन बार गाँव आती है टीम

रायबरेली जिला मुख्यालय से 25 किमी. उत्तर दिशा में बाल्हा गाँव के रहने वाले अश्वपालक मो. सलीम बताते हैं, ''गाँव में सभी घरों में घोड़े पाले जाते हैं और इन्हीं से हम सबकी रोज़ी-रोटी चलती है। पहले पशुओं के बीमार होने पर हम हरचंदपुर से डॉक्टर बुलाते थे या अपने पास से ही मरहम-पट्टी करते थे। लेकिन अब ग्रामीण विकास संस्थान की मदद से हमारे गाँव में ही घोड़ों के इलाज के लिए ब्रुक्स संस्था की टीम महीने में दो से तीन बार आती है, इससे पशुओं की जांच होती है और पशुओं में मुख्य बीमारी गलंडर्स व अन्य बीमारी नहीं होती है।''

पशु अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ती

बाल्हा गाँव में रहने वाले अश्वपालकों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस इलाके से पशु अस्पताल लगभग आठ किमी. है और अस्पताल की दूरी के कारण पशुओं का इलाज सही तरह से नहीं हो पाता है। गाँव के अश्वपालक आलम बताते हैं, ''ब्रुक्स संस्था से आने वाले लोगों की मदद से हमें अब पशु अस्पताल जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। संस्था की तरफ हमें भी घोड़ों के टीकाकरण की ट्रेनिंग मिलती है। इससे अब डॉक्टर मिले चाहे ना मिले, हम खुद अपने जानवरों का इलाज आसानी से कर लेते हैं। ग्रामीण विकास संस्थान और ब्रुक्स इंडिया के सहयोग से मौजूदा समय में क्षेत्र के 100 से ज़्यादा अश्वपालकों को मदद मिल रही है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.