इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा नहीं मिलती, ठेले पर ले जाई जाती हैं प्रसूताएं

Karan Pal SinghKaran Pal Singh   6 Jan 2017 8:28 PM GMT

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इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा नहीं मिलती, ठेले पर ले जाई जाती हैं प्रसूताएंठेले पर प्रसूता को ले जातीं आशा बहुएं।

दुद्धी (सोनभद्र)। प्रसव पीड़ा होने के बाद अपनी गर्भवती पत्नी को ठेले में लिटाकर अरुण कुमार प्राथमिक चिकित्सा केंद्र ले जाने को मजबूर हुए। अरुण कुमार (28 वर्ष) बताते हैं, ‘सरकारी एंबुलेंस को फोन किए हुए दो घंटे से ज्यादा हो गए फिर भी एंबुलेंस नहीं आई। पत्नी को पेट में दर्द अधिक होने लगा फिर मैंने पत्नी को ठेले पर लिटाकर आशा बहू निर्मला देवी के साथ दुद्धी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया जो कि हमारे घर से लगभग दो किलोमीटर दूर है। शुक्र है कि प्रसव सुरक्षित हुआ।’

जिला मुख्यालय से लगभग 150 किमी दूर दक्षिण दिशा में दुद्धी ब्लॉक के घनौरा गाँव की आशा निर्मला देवी (31 वर्ष) बताती हैं, ‘गाँव से गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए 108 और 102 एम्बुलेंस के द्वारा दुद्धी ब्लॉक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाया जाता है। कई बार ऐसा भी हुआ है कि गाँव में गर्भवतियों की आकस्मिक स्थिति में एम्बुलेंस नहीं मिल पाने के कारण ठेले से गर्भवती महिलाओं को लाया गया है क्योंकि यहां यातायात के साधन नहीं हैं।’

एक लाख पचास हजार जनसंख्या पर सिर्फ चार एम्बुलेंस

सोनभद्र जिले के दुद्धी ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ. उमेश प्रसाद पांडे बताते हैं, ‘दुद्धी ब्लॉक में 160 आशा बहुएं कार्यरत हैं। इस ब्लॉक के लिए 108 एम्बुलेंस सेवा की दो गाड़ी, 102 एम्बुलेंस सेवा की दो गाड़ी उपलब्ध है। पूरे ब्लॉक की लगभग एक लाख पचास हजार जनसंख्या पर सिर्फ चार एम्बुलेंस हैं। कभी-कभी एम्बुलेंस व्यस्त होने की वजह से कहीं-कहीं नहीं पहुंच पाती है।’

एक या दो दिन पहले एम्बुलेंस को कॉल करना पड़ता है

जाबर गाँव की आशा बहु कौशल्या देवी (32 वर्ष) बताती हैं, ‘दुद्धी ब्लॉक के गाँवों में आने-जाने के साधन नहीं हैं क्योंकि यहां अधिकतर पहाड़ी क्षेत्र है। हम लोगों को प्रसूताओं को लाने के लिए एक या दो दिन पहले ही एम्बुलेंस सेवा को फोन करके बताना पड़ता है। इमरजेंसी होने पर या तो बैलगाड़ी या फिर ठेला का ही सहारा होता है।’

भारत सरकार ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए आशा बहू नियुक्त करने की शुरुआत की थी। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक मौजूदा समय में भारत में 24 लाख आशा कार्यकत्रियां हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश में कुल 1,40,094 आशा कार्यकत्री हैं, जो कि पूरे देश में सबसे अधिक है।

आमतौर पर एम्बुलेन्स समय पर मिल जाती है, लेकिन कभी-कभी एम्बुलेन्स समय पर न मिलने से परेशानी होती है और जच्चा-बच्चा दोनो को खतरा होने की सम्भावना बढ़ जाती है। आनन-फानन में जो भी साधन मिलता है उसी से गर्भवती को अस्पताल पहुंचाया जाता है।
आशा बहू ललिता, कडीया गाँव

55 जिलों में ही है एम्बुलेंस सेवा

प्रदेश में 108 एम्बुलेंस सेवा और 102 एम्बुलेंस सेवा का संचालन करने वाली संस्था जीवीके ईएमआरआई के मुख्य परिचालन अधिकारी संजय खोसला बताते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में 108 एम्बुलेंस सेवा के लिए 1,488 और 102 एम्बुलेंस सेवा के लिए 2,268 वाहन इस्तेमाल किए जा रहे हैं। अभी यह प्रणाली प्रदेश के 55 जिलों में लागू है। जल्द ही इसे सभी 75 जिलों में लागू कर दिया जाएगा।’

फार्म भरने के लिए जाते हैं रुपए

महोखर गाँव की आशा करता देवी (38 वर्ष) बताती हैं, ‘अस्पताल में प्रसव कराने आई महिला का फार्म भरा जाता है जो सरकार की तरफ से नि:शुल्क है पर स्टाफ द्वारा 200 से 300 रुपए की मांग की जाती है। पैसे की मांग पूरी न करने पर रजिस्टर में साइन नहीं कराया जाता है। तब सबसे ज्यादा परेशानी होती है।’

"This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org)."

   

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