अफवाह के चलते दस का सिक्का हुआ ‘खोटा’, लेने से इनकार करने वाले दुकानदारों पर चल सकता है देशद्रोह का मुकदमा 

Karan Pal SinghKaran Pal Singh   6 Oct 2016 11:28 AM GMT

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अफवाह के चलते दस का सिक्का हुआ ‘खोटा’, लेने से इनकार करने वाले दुकानदारों पर चल सकता है देशद्रोह का मुकदमा 10 रुपये का सिक्का। साभार

करन पाल सिंह / अरुण मिश्रा

बाराबंकी/लखनऊ। 10 रुपये के सिक्के को लेकर छोटे कस्बों में भ्रम बढ़ता जा रहा है। अफवाह के चलते कई छोटे दुकानदार सिक्का लेने में आनाकानी कर रहे हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियमों के मुताबिक यदि कोई राष्ट्रीय करेंसी को लेने से इंकार नहीं कर सकता है। पीलीभीत की एक कोर्ट ने जहां इस मामले में इनकार करने वालों पर केस चलाने का आदेश दिया है।

असली नकली की अफवाह के चलते बाजारों में इन दिनों जबरदस्त भ्रम की स्थिति है। दुकानदार से लेकर ग्रामीण तक सिक्के लेने से इंकार कर रहे हैं। इन सबके बीच छोटे दुकानदार जिनके पास काफी सिक्के जमा हैं काफी परेशान हैं। बाराबंकी जिले के विशुनपुर, इसरौली, फतेहपुर, बेलहरा सहित अन्य बाजारों में इन दिनों सिक्कों को लेकर भ्रम की स्थिति है।

विशुनपुर में मेडिकल स्टोर चलाने वाले इरशाद अंसारी बताते हैं, "मैं सामान लेने के लिए 15 सिक्के लिए कई0 दुकानों पर घूम आया हूं, लेकिन कोई सिक्के लेने को तैयार ही नहीं है।" दुकानदार गिरजाशंकर बताते हैं, "दुकान पर खुले पैसे वापस करने में ग्रामीण भ्रम के चलते दस का सिक्का लेने से मना कर देते हैं, जिससे दुकानदार भी काफी परेशान हैं।" यहीं के व्यापारी रवि जैन कहते हैं, "दस के सिक्कों को लेकर फैली अफवाह के चलते काफी सिक्के दुकान में पड़े हैं, जिससे पैसे वापसी में काफी दिक्कतें हो रही है।"

आर्यावर्त ग्रामीण बैंक के शाखा प्रबंधक, विशुनपुर राजेंद्र प्रसाद मित्रा बताते हैं, "दस के सिक्के का प्रचलन बन्द होने या असली नकली को लेकर फैली सिर्फ अफवाह है। क़ानूनी रूप से सभी सिक्के वैद्ध हैं। हम लोग स दस के सिक्के का लेन देन करते है।"

दस के सिक्के का प्रचलन बन्द होने या असली नकली को लेकर चर्चा सिर्फ अफवाह है। क़ानूनी रूप से सभी सिक्के वैद्ध हैं। हम लोग दस के सिक्के का लेन देन करते है।
राजेंद्र प्रसाद मिश्रा, शाखा प्रबंधक, आर्यावर्त ग्रामीण बैंक, विशुनपुर, बाराबंकी, यूपी

इस बारे में बात कहने पर लीड बैंक 'बैंक ऑफ बड़ौदा' के जीएम एचएस सोलंकी बताते हैं, "दस रुपये के सिक्के पर कोई रोक नहीं है। अगर कोई भी नोट या सिक्का बंद होता है तो आरबीआई उसे लेकर नोटिफिकेशन जारी करती है। उसके बाद सिक्का या नोट बैंक में बदलने की समय-सीमा तय की जाती है। यह महज एक कोरी अफवाह है।"

अरबीआई ने दी सफाई

आरबीआई ने इस विवाद पर कहा है कि 10 रुपये का सिक्का पूरी तरह वैद्ध है। ये बंद नहीं हुआ है और ना ही इसे बंद करने का आरबीआई का कोई इरादा है। 10 रुपये का सिक्का बंद होने के बारे में खबरें पूरी तरह निराधार और झूठी हैं। आरबीआई ने ये भी कहा था कि अगर कोई दस का सिक्का लेने से इंकार करता है तो वह सजा का हकदार है।

पीलीभीत जिला जज का आदेश

इन्हीं अफवाहों का संज्ञान लेते हुए पीलीभीत के जिला न्यायाधीश ने आदेश दिया है कि 'यदि कोई दस का सिक्का लेने से इंकार करता है तो उस पर देशद्रोह का केस चल सकता है।' जिला जज ने अपने फैसले में कहा कि '10 रुपए का सिक्का राष्ट्रीय करेंसी है। इसे लेने से इंकार करने का अधिकार किसी नागरिक के पास नहीं है। भारतीय सरकार सिक्के की कीमत अदा करने का वचन देती है।'

चलेगा देशद्रोह का मुकदमा

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियमों के मुताबिक यदि कोई राष्ट्रीय करेंसी को लेने से इंकार करता है तो वो आईपीसी की धारा-124अ (देशद्रोह) के तहत सजा का हकदार है। देश में 30 जून, 2011 के बाद एक, दो, तीन, पांच, दस, बीस व पच्चीस पैसे के सिक्के ही चलन से बाहर हैं। इसके अलावा पचास पैसे, एक, दो, पांच व दस रुपए के सिक्के अभी चलन में हैं।

आरबीआई ने भी दी सफाई

आरबीआई की तरफ से इस मामले में सफाई भी दी गई। बैंक ने साफ तौर पर कहा है कि दस के सिक्के ना तो बंद हो रहे हैं और ना ही नकली हैं। इसके बावजूद लोगों में दस के सिक्के को लेकर असमंजस बरकरार है। आरबीआई ने ये भी कहा था कि अगर कोई दस का सिक्का लेने से इंकार करता है तो वह सजा का हकदार है।

2010 से है चलन में

उल्लेखनीय है कि 10 रुपए का सिक्का साल 2010 से चलन में है। पिछले कुछ महीनों से फैल रही अफवाहों के चलते लोगों ने इसे लेने से इंकार करना शुरू कर दिया गया है। इसी के मद्देनजर पीलीभीत जिला जज ने आदेश दिए।

यह है असली और नकली की पहचान

-असली सिक्के में रुपए का साइन है। जबकि नकली में केवल 10 का अंक लिखा हुआ है।

-असली सिक्के में 10 पट्टी बनी हैं। जबकि नकली में 15 पट्टी बनी हुई हैं।

-सिक्के के दूसरी ओर असली में भारत और कठऊकअ अलग अलग लिखा है। जबकि नकली में एक साथ लिखा हुआ है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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