अपने गाँव में अश्व पालकों का सहारा बने शहनूर

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अपने गाँव में अश्व पालकों का सहारा बने शहनूरअपने गाँव में अश्वपालकों की मदद करते हैं मो. शहनूर।

स्वयं प्रोजेक्ट

शाहजहांपुर। जिले के सिकराहना गाँव में रहने वाले घोड़ा पालकों को अब कई किलोमीटर दूर जाकर पशुओं का इलाज नहीं कराना पड़ता क्योंकि उनके पशुओं का इलाज करने के लिए उनके गाँव के ही एक घोड़ा पालक मो. शहनूर (35 वर्ष) हैं, जो गाँव में रहकर पशुओं का इलाज कर देते हैं।

गाँव में ट्रेनिंग का उठाया लाभ

मो. शहनूर शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बंडा ब्लॉक के सिकराहना गाँव के रहने वाले हैं। शहनूर बताते हैं, "ब्रुक इंडिया संस्था की तरफ से गाँव में ट्रेनिंग दी गई थी। इस ट्रेनिंग में मैंने भी भाग लिया और घोड़ों की बीमारी, इलाज और टीकाकरण के बारे में विस्तार से हमें बताया गया। अब गाँव में किसी भी घोड़े को बीमारी होती है तो पहले मालिक मेरे पास आते हैं।"

घोड़ा पालकों की आमदनी का एक ही जरिया

शहनूर आगे बताते हैं कि “गाँव में घोड़ों को अगर कोई बीमारी हो जाए तो उनका इलाज करने के लिए तुरंत कोई डॉक्टर नहीं मिल पाता है। घोड़ा पालकों की आमदनी का एक ही जरिया होता है, जिस पर परिवार का पूरा पालन-पोषण रहता है। इसलिए ये काम अब मैं कर रहा हूं।” पिछले कई वर्षों से अश्व पालन को बढ़ावा देने के लिए 'ब्रुक्स इंडिया' नाम की संस्था कर रही है। इस संस्था द्वारा अश्व पालकों के समूह बनाकर उन्हें रोजगार सिखाते हैं। साथ ही पशुओं का प्राथमिक उपचार करने की भी ट्रेनिंग देते हैं।

अपने गाँव में अच्छा काम कर रहे हैं शहनूर

शाहजहांपुर जिले के प्रोजेक्ट मैनेजर मो. अबीदी बताते हैं, जिले में हमारे जो समूह बने हुए हैं, उनको पशुओं के प्राथमिक उपचार की ट्रेनिंग दी जाती है। इनमें से कुछ अश्व पालक जागरुक हो जाते हैं। उन्ही में से एक हैं मो. शहनूर। शहनूर अपने गाँव में अच्छा काम रहे हैं।

आंकड़ों की नजर में

वर्ष 2012 में जारी 19वीं ताज़ा पशुगणना के अनुसार, देश में 11.30 लाख घोड़े, खच्चर और गधे हैं, जिनसे लाखों परिवारों की जीविका चलती है।

समय पर मिल जाता है इलाज

सिकराहना गाँव में रहने वाले अशोक कुमार (40 वर्ष) बताते हैं, मेरे पास एक ही घोड़ा है, जिससे पूरे घर का खर्च चलता है। अगर घोड़े की तबीयत खराब हो जाती है तो समय पर इलाज मिल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं के इलाज के लिए काफी दूर जाना पड़ता है। ऐसे में शहनूर अपने गाँव में पशुओं का प्राथमिक उपचार करके अश्व मालिकों का सहारा बने हुए हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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