सियासी घरानों में टूटने पर नहीं जुड़ता प्रेम का धागा

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सियासी घरानों में टूटने पर नहीं जुड़ता प्रेम का धागाप्रतीकात्मक फोटो।

रिपोर्ट: वर्तिका मिश्रा

लखनऊ। सियासी घरानों की तकरार भारत में लंबे समय से बनी रही है। मध्य प्रदेश में राजघराने से लेकर देश के सबसे मजबूत गांधी परिवार ने भी इसका सामना किया। हाल ही में महाराष्ट्र की ठाकरे फैमिली भी इसी वजह से टूट गई थी। कुछ ऐसा ही अब यादव परिवार में हुआ है। मगर सियासी तकरारों का इतिहास है, यहां प्रेम का धागा जब एक बार टूटा तो उसकी गांठ दोबारा न खुल पाई। चाहे वह इंदिरा मेनका हो, उध्दव और राज हों या माधवराव और विजयाराजे सिंधिया हों। ये कभी एक न हो सके।

टकराव के दौर में तब आया था उफान

मध्य प्रदेश के राजघराने और सियासी महकमे में भी इस तरह की तकरार तब सामने आई थी जब विजया राजे, जनता पार्टी की बड़ी नेता थीं, मगर उनके बेटे माधव राव सिंधिया ने उनकी मुखालफ़त करते हुए कांग्रेस का रुख़ कर लिया था। जहां विजया राजे सिंधिया बीजेपी की उपाध्यक्ष थीं, वही माधवराव सिंधिया कांग्रेस में केंद्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मंत्री थे। तमाम टकराव के दौर में उफान तब आया था, जब माधवराव ने बीजेपी के खिलाफ कुछ तीखे शब्द कहे थे और बदले में बीजेपी के कार्यकताओं ने उनके दिल्ली स्थित आवास पर धावा बोल दिया था। इस घटनाक्रम से माधवराव सिंधिया की माँ व राजमाता विजया राजे व बहन एवं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी सकते में आ गयी थीं।

मां-बेटे पर लगते रहे इल्जाम

  • इस मौके पर अनेक वर्षों से चल रही चुप्पी को तोड़ते हुए विजया राजे सिंधिया ने माधवराव को फ़ोन किया और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के व्यवहार पर असहमति भी दर्ज की। जहां एक दशक तक माँ-बेटे में बातचीत का व्यवहार भी नहीं था, मगर इन सबके बावजूद टैक्स चोरी व अवैध संपत्ति के मामले में फंसने पर विजया राजे हमेशा माधवराव के पक्ष में ही बोलती दिखाई देती थीं। ऐसे में माँ-बेटे पर ये इल्जाम भी लगता रहा कि वे दोनों अलग-अलग पार्टियों के साथ रहते हुए राजपरिवार की संपत्ति को बचाए रखना चाहते हैं।
  • दिसम्बर 1979, माधवराव सिंधिया कांग्रेस में चले गए थे, जबकि उनकी माँ विजया राजे सिंधिया बीजेपी के साथ ही रहीं।
  • जनवरी 1980, माधवराव के स्टाफ ने आंग्रे और उनकी बेटी के खिलाफ केस दर्ज किया था।
  • जून 1981, राजमाता ने महल के संग्रहालय को सीज करा दिया था, माँ-बेटे पर कीमती सामानों के हेरा-फेरी के आरोप भी लगे।
  • मार्च 1982, राजमाता ने जयविलास महल को आरएसएस द्वारा चलाये जा रहे एक शिक्षण संस्थान को दान करने की घोषणा कर दी।
  • अप्रैल 1982, माधवराव के समर्थकों ने दरबार हॉल को कब्जे में ले लिया, और इसके बाद से राजघराने के ट्रस्ट की कानूनी लड़ाई शुरू हो गयी।
  • जुलाई 1982, आंग्रे की गिरफ्तारी, राजकीय संग्रहालय से एंटीक की चोरी के मामले में।
  • अगस्त 1984, राजमाता ने राजघराने की पूरी संपत्ति के बंटवारे के लिए अपील दायर की।
  • जनवरी 1990, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुक़दमा दर्ज कराया ताकि उनकी दादी और पिता संपत्ति में हस्तक्षेप न कर सकें।
  • मार्च 1990, बीजेपी सत्ता में आती है, पुलिस महल के ''करोड़ों के ज़मीन घोटाले'' के कागज़ सीज कर देती है। इस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं में गिने जाते हैं।

गांधी परिवार

23 जून 1980 की सुबह संजय गाँधी के छोटे बेटे अपनी पत्नी मेनका और 3 महीने 10 दिन के बेटे को छोड़ के इस दुनिया को अलविदा कह गए। संजय इंदिरा को जितने प्रिय थे, मेनका उतनी ही अप्रिय। और ये बात ज़ाहिर करने में इंदिरा ने संजय की मौत के बाद बहुत वक़्त भी नहीं लगाया। इंदिरा गाँधी चाहती थीं कि राजीव गांधी, संजय गांधी की जगह लें और कांग्रेस की कमान अपने हाथों में लें। इन्ही कारणों के चलते इंदिरा ओर मेनका के रिश्तों में खटास और भी बढ़ गयी।

  • मार्च 1983 में इंदिरा गांधी का घर छोड़ देने के बाद मेनका ने अपनी नयी राजनीतिक पार्टी बनाई थी ''राष्ट्रीय संजय मंच''। इस पार्टी ने आंध्र प्रदेश में विधान सभा चुनाव में 5 सीटों पर चुनाव लड़े, जिसमें वे 4 सीटें जीते भी।
  • 1988 में मेनका गांधी ने अपनी मुख्य विपक्षी पार्टी जनता दल में अपनी पार्टी का विलय कर दिया और उसकी जनरल सेक्रेट्री बन गयी।
  • 1996, 1998 में पीलीभीत से चुनाव लड़ते हुए मेनका सर्वाधिक मतों से विजयी रही थीं।
  • 2004 में मेनका गांधी भारतीय जनता पार्टी की सदस्य बन गयी, वे अब तक 6 बार पीलीभीत से चुनाव लड़ चुकी हैं, जिसमे से 5 बार वे विजयी रही हैं।

ठाकरे परिवार

बाल केशव ठाकरे, जिन्हें बाला साहेब ठाकरे के नाम से जाना जाता है, का जन्म 23 जनवरी 1926 को हुआ था। बाला साहेब ठाकरे एक अंग्रेजी दैनिक में पेशेवर कार्टूनिस्ट के तौर पर काम किया करते थे।

  • 1960 के आखिरी व 1970 के शुरूआती समय में बाल ठाकरे ने अनेक छोटी पार्टियों के साथ मिलकर राजनीति में उतरने की तैयारी की।
  • 1966 में बाल ठाकरे ने शिव सेना का निर्माण किया था, जो आगे चलकर अनेक राजनीतिक दलों के साथ मिलकर कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप से मगर सियासत के गलियारों में सुर्खियाँ बटोरने का काम करती रही।
  • 2006 में जब बाल ठाकरे ने खुद राजनीती से संन्यास की घोषणा की और अपने बेटे उद्धव को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तो उनके भतीजे ने पार्टी से अलग होकर नयी पार्टी ''महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना'' का गठन किया।

   

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