अयोध्या फिर चर्चा में है, पढ़िए और सुनिए क्या चाहते हैं अयोध्या के लोग 

Manish MishraManish Mishra   24 Nov 2018 10:45 AM GMT

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फैजाबाद/लखनऊ। राम की नगरी अयोध्या फिर चर्चा में है। विवादित बाबरी विध्वंस की 25वीं बरसी और सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के चलते अयोध्या की चर्चा ने जोर पकड़ा है। एक पक्ष मंदिर की बात कर रहा है तो दूसरा मस्जिद पर अड़ा है।

गांव कनेक्शन ने पिछले दिनों एक विशेष सीरीज में ये समझने की कोशिश की थी, कि आखिर अयोध्या के आम लोग क्या चाहते हैं, क्या चाहते हैं मंदिरों के इस शहर में रहने वाले सरयू के करीब रहने वाले ये लोग। कोर्ट, सियासत और आरोप प्रत्यारोप के बीच एक बारगी ऐसा लगता है जैसे यहां के लोग इस सियासत से आगे निकल चुके हैं।

विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र के घोषित होने से पहले ही 'गाँव कनेक्शन' ने अयोध्या के लोगों से जानने की कोशिश की थी कि उनका राममंदिर बनवाने के लिए किए गए वादे और इससे जुड़ी राजनीति का नजरिया क्या है?

हर पार्टी चाहती है कि राम मंदिर का मुद्दा बस बना रहे। मंदिर कोई बनावाना ही नहीं चाहता। एक बार मसला हल हो गया तो वोट बैंक खत्म हो जाएगा," आगे कहते हैं, "हम जानते हैं कि अब फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है। कोई कैसे मंदिर बनवा सकता है?"
बैजनाथ यादव (50 वर्ष), दुकानदार, हनुमानगढ़ी, अयोध्या

अयोध्या में हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ने पर दाईं ओर पूजा की सामग्री की दुकान पर ग्राहक के इंतजार में बैठे बैजनाथ यादव (50 वर्ष) ने कहा, "हर पार्टी चाहती है कि राम मंदिर का मुद्दा बस बना रहे। मंदिर कोई बनावाना ही नहीं चाहता। एक बार मसला हल हो गया तो वोट बैंक खत्म हो जाएगा," आगे कहते हैं, "हम जानते हैं कि अब फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है। कोई कैसे मंदिर बनवा सकता है?"

हनुमानगढ़ इलाके का कभी व्यस्त रहने वाला बाजार अब कुछ ऐसा नजर आता है।


राम मंदिर बनवाने की बात भारतीय जनता पार्टी हर चुनावी घोषणा पत्र में उठाती रही है। भाजपा ने वर्ष 2014 में भी लोकसभा चुनावों में अपने घोषणा पत्र में कहा था कि संविधान के दायरे में रहते हुए राम मंदिर निर्माण की सभी संभावनाओं को खोजा जाएगा। वर्ष 2012 के चुनावों से पहले भी भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में लिखा था, "भाजपा राम मंदिर मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने के लिए बचनबद्ध है।"

मंदिर-मस्जिद विवाद से यहां का विकास रुका हुआ है। यहां कोई लड़ना नहीं चाहता, बाहरी आकर हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाने की कोशिश करते हैं।
बाबू खां, अध्यक्ष, मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी, अयोध्या


अयोध्या में न तो कोई बड़ी फैक्ट्री है न ही कोई बड़ा संस्थान कि युवा वहां काम कर सकें। उसे पढ़ाई करके या तो पलायन करना होता है, या दुकान खोलकर प्रसाद या पूजन सामग्री को बेचना। "अगर अयोध्या में बाहर के लोग न आएं तो कमाई नहीं होती। सबसे ज्यादा कमाई मेलों में होती है। नेताओं ने राम मंदिर का मुद्दा बनाकर अयोध्या का विकास नहीं किया," एक दुकान पर बैठे जयनारायण मिश्रा (37 वर्ष) बताते हैं।

जानिए कब से शुरु हुआ अयोध्या विवाद.. देखिए वीडियो


अयोध्या में दर्जी की दुकान चलाने वाले और अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष बाबू खां कहते हैं, "मंदिर-मस्जिद विवाद से यहां का विकास रुका हुआ है। यहां कोई लड़ना नहीं चाहता, बाहरी आकर हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाने की कोशिश करते हैं," वह आगे कहते हैं, "हमारे ज्यादातर ग्राहक तो हिन्दू भाई हैं, उनसे लड़कर हम धंधा कैसे कर पाएंगे।"


बाबू खां रामलला के कपड़े भी सिलते हैं और महंत ज्ञानदास समेत कई अन्य महंतों के भी कुर्ते वो आज भी सिलते आ रहे हैं। वहीं, वरिष्ठ सपा नेता और पार्टी प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी भाजपा के घोषणा पत्र के बारे में कहा, "इनका कोई घोषणा पत्र नहीं है, सिर्फ जनता को गुमराह करना चाहते हैं। यह छिपा हुआ सांप्रदायिकता का घोषणा पत्र है।"


अपनी दुकान के बाहर गंदगी को दिखाते हुए बाबू खां कहते हैं, "मंदिर-मस्जिद विवाद ने यहां का विकास रोक दिया है। हमारी एक बार दुकान भी लूटी जा चुकी है। यहां के लोगों को रोजी-रोटी चाहिए, मंदिर या मस्जिद नहीं।"

          

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