“भारत आना मेरा सपना था”

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“भारत आना मेरा सपना था”gaon connection

लेखिका: आसिया फिरदौस

मेंढर, पुंछ। भारत से मेरा दिल का रिश्ता है मैं यहां आकर पूर्वजो से मिलना चाहती थी, जब भारत आने के लिए वीजा बनवा रही थी तो पाकिस्तान के वीजा ऑफिस में मैंने कहा” अगर मेरा वीजा न बना तो मैं भाग कर भारत चली जाऊंगी, तुम देखते रहीयो”। ये वाक्य है पड़ोसी देश पाकिस्तान के जिला गुजरानवाला की तहसील अरफुकोई की रहने वाली नगीना अख्तर का, जिनके पिता हिंदुस्तान के सीमावर्ती जिले पुंछ से 1965 में पाकिस्तान चले गए थे। मगर बेटी की आँखों में सपना था दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को देखने का।

नगीना अख्तर के सिर से पिता का साया पहले ही उठ चुका था। नगीना की तमन्ना थी भारत में अपने रिश्तेदारो से मुलाकात करने की। अपने सपने को पूरा करने के लिए नगीना ने हर संभव प्रयास किया। इस बारे में नगीना कहती हैं “दुनिया में हजारों लड़कियों की तरह भारत आना मेरा ख्वाब था। 1965 में मेरे स्वर्गीय पिता यहाँ से पाकिस्तान जा बसे थे। वहां उनका न कोई अपना था न ही कोई सहारा, उन्होंने अपना जीवन बहुत कष्ट में बिताया।

जब वह वहां के स्थाई निवासी बन गए तब सरकार द्वारा उन्हें छोटा सा भूखंड मिला उन्होंने अपनी मेहनत से वहां घर बनाया और शादी की। जब मैं छोटी थी मेरी सहेलियां अपने दादा दादी की बातें सुनाती थीं एक दिन मैंने पिता से पूछा हमारे दादा दादी कहां हैं? तो पापा जी ने रोते हुए कहा, “बेटा वह हमसे बहुत दूर हैं हम उनसे मिल नहीं सकते।''

पापा हमेशा उन्हें याद करके रोया करते थे और कहते थे, “हाय मेरे भाई!'' पापा जी ने हमारी परवरिश इस तरह की कि किसी भी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने दी, मैं छोटी थी जब मेरे पापा जी का साया सिर से उठ गया मां के सिवा कोई नहीं था जो हमारा ख्याल रखता जब मैं पापा जी के लिए घबराती तो मेरे मन में यह विचार आता कि मेरे चाचा ताऊ मेरे पापा जी की तरह होगें? मैं एक बार उनसे जरूर मिलूंगी और इस तरह भारत आने का मेरा सपना शुरू हुआ, मुझे अपनों की कमी महसूस होने लगी और उनसे मिलने की चाहत तड़पाने लगी, इरादा बना लिया कि भारत ज़रूर जाऊँगी।

लेकिन मैंने जब भी अपनी इच्छा किसी को बताई तो सबने कहा कि भारत जाने का सपना मत देखो, मगर मैंने हिम्मत नहीं हारी अपने इरादे को मजबूत रखा एक दिन सोचा कि मेरे मामू मेरी मदद कर सकते हैं जब उनसे बात की तो बदले में उन्होने जोर से थप्पड़ मारा और कहा कि आज के बाद जुबान से यह शब्द नहीं निकालना। भारत बहुत दूर है वहाँ जाना तेरे लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। मैं रोती हुई घर वापस आई मगर अपने इरादे को कमजोर नहीं होने दिया।

जब घर वालों ने देखा कि मेरी हालत दिन प्रतिदिन खराब हो रही है तो डराते हुए कहा कि तेरी शादी करवा देंगे तो हिंदुस्तान जाने की बात तुम भूल जाओगी लेकिन मैंने रास्ता खोजा ताकि मैं भारत जा सकूं, हालांकि मुझे कई बार वीजा ऑफिस मे अधिकारियों की डांट-फटकार खानी पड़ी, बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े, वीजा बनना कठिन होता जा रहा था पर मैंने हिम्मत नहीं हारी खूब कोशिश की और दुबारा फार्म जमा करवाए वीजा वालों ने कहा कि जब आपका वीजा बन जाएगा हम आपको फोन पर सूचना देंगें, और एक दिन अचानक फोन आया कि आपका वीजा लग गया है, यकीन मानिए इतनी खुशी हुई कि खुशी के मारे किसी से बात न कर सकी औऱ न रात भर नींद आई।

इसी बीच मेरी बड़ी बहन ने फोन करके कहा कि तुम्हारी हिम्मत को सलाम तुम किस्मत वाली हो जो अपनों से मिलने हिंदुस्तान जा रही हो। लोगों ने मुझे डराया भी कि सीमा पर युद्ध हो रहा है, हालात ठीक नहीं हैं, जबकि कुछ लोगों ने कहा, “भारत में हिंदू रहते हैं वे तुझे मार देंगे” फिर भी अगली सुबह मैं और मेरा भाई दिल्ली की ओर रवाना हुए। रिश्तेदारों के लिए यह एक अजीब बात थी जब हम दिल्ली पहुंचे और वहां की रंगीन दुनिया देखी तो लगा कि हम किसी दूसरे देश में नहीं बल्कि किसी और दुनिया में आ गए हैं कुछ देर बाद हमें हमारे मेजबान सलीम भाई जान मिले उन्होंने हमें दिल्ली के प्रसिद्ध स्थानों की सैर करवाई दूसरे दिन अपने रिश्तेदारों के घर रवाना हुए जब वहां पहुंचे तो सभी रिश्तेदारो ने स्वागत किया लेकिन मिलने के बाद ऐसा माहौल बन गया मानो कोई शोक हो क्योंकि एक ओऱ मिलने की खुशी और दूसरी ओर पहली बार मिलने का गम भी था, वहाँ मेरा बहुत बड़ा परिवार है सब लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। 

आगे वो भारत के भाईचारा का वर्णन करते हुए कहती हैं “जब हम पुंछ शहर देखकर लौट रहे थे तो रास्ते में गाड़ियों की जाँच हो रही थी वहाँ एक सरदार जी थे जब उन्हें पता चला कि हम पाकिस्तान से हैं तो बहुत खुश हुए और कहा कि आप तो हमारे अतिथि हैं उन्होंने चाय पानी के लिए कहा, लेकिन हम जल्दी में थे। 

जब हम मेंढर पहुंचे तो श्रृंगार की एक दुकान पर गए जहाँ मुझे कंगन पसंद आया मैंने लेना चाहा दुकानदार हिंदू था जब उसे मालूम हुआ कि हम पाकिस्तान से हैं तो उन्होंने कहा “आप हमारे मेहमान हैं मैं आपसे पैसे नहीं लूँगा यह मेरी ओर तोहफा है। कश्मीर की सुंदरता देखकर मुझे ऐसा लगा कि मैं स्वर्ग में पहुँच गई हूँ। एक ओर कश्मीर की सुंदरता को देखकर मेरे दिल में खुशी हुई और दूसरी सीमा पर रहने वालों की कहानियां सुनकर चिंता भी हुई कि जो दुख, दर्द, पीड़ा सीमा के उस पार हैं वही इस पार भी हैं। हम दोनों देशों के लोगों को मिलकर शांति का रास्ता खोजना चाहिए।” नगीना अख्तर की हिम्मत औऱ दोनो देशों के लिए मुहब्बत हम सबके लिए एक मिसाल है।  

(लेखिका नगीना से पुंछ जिले में मिली थीं और वहीं उनसे खास बातचीत पर आधारित ये लेख है।)

साभार: (चरखा फिचर्स)

 

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