'धंधेबाज़ कर रहे बुंदेलखंड की धरती को बदनाम'

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धंधेबाज़ कर रहे बुंदेलखंड की धरती को बदनामगाँव कनेक्शन

बाँदा। बुंदेलखंड के लोग घास की रोटी खाते हैं। मीडिया और सोशल मीडिया पर हंगामा मचा है। तालबेहट से लखनऊ के कालीदास मार्ग और दिल्ली में संसद मार्ग तक चर्चा हो रही है। सरकार और अधिकारी हैरान हैं तो कुछ लोग बुंदेलखंड को दया की नजरों से देख रहे हैं। लेकिन, कुछ लोग इसे भुनाने में लगे हैं।

इस घास की रोटी का ताना-बाने झांसी में गत 27 अक्टूबर को रचा गया था। आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और स्वराज्य के संयोजक योगेन्द्र यादव एवं उरई (जालौन) की संस्था परमार्थ के संजय सिंह के मध्य हुए सूखे के सर्वे आकलन पर किया। इस सर्वे के बाद 25 नवम्बर को दिल्ली से प्रेसवार्ता कर योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने विज्ञप्ति ज़ारी करते हुए बुंदेलखंड में

अकाल की दस्तक के साथ सूखे की विषम स्थिति को रखते हुए ललितपुर, झांसी, तालबेहट, उरई की हरदोई ग्राम पंचायत में इस सर्वे के आंकड़े परोसे।

यह अलग बात है कि इस सर्वे में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों में सर्वे की बातें सार्वजनिक रूप में कही गई है। कमोवेश मैं खुद इस सर्वे की बुनियादी बैठक में झांसी में मौजूद था इसलिए यह दावे से कह सकता हूँ कि सर्वे चित्रकूट मंडल के चार जिलों में हुआ ही नहीं था।

सर्वे के आंकड़े आने के बाद नेशनल और स्थानीय मीडिया में आए दिन फिकारा के साथ घास की रोटी को परोसा जा रहा है। टीकमगढ़, तालबेहट के बाद अब यह घास की रोटी 19 दिसंबर को बांदा के नरैनी तहसील के नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) और घसराउट में भी खिला दी गई है।

उल्लेखनीय यह है कि अबकी बार यह घास की रोटी एनजीओ कंसलटेंट एवं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार सज्जाद हसन हर्ष मंदर ने खाई है। इस खबर से बिफरे अपर जिलाधिकारी बांदा 24 दिसम्बर को इस गाँव पहुंचे, जहां मोटे अनाज और छद्म घास का सच देखकर तमतमा गए। इस पर इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खूब हो हल्ला मचाया। उधर, नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) में इस बार घास की रोटी को चिंगारी में सेंकने का काम विद्याधाम समिति ने किया है।

नौगवां ग्राम पंचायत में घुसते ही संता पटेल, रमापति हैण्डपम्प में गेहूं धुलते मिलीं। तस्वीर लेने पर बोली, भैया फोटू खींचत हा, कुछ मिलय का हवे। (भइया क्या फोटो खींचते हो कुछ मिलेगा क्या) वही गहबरा मजरे के बाबू नरेश सिंह और नौगवां के जगन्नाथ सिंह ने घास की रोटी का सच पूछने पर कहा, ''साहब इहां कोऊ घास नाहीं खात है, कहे तफरी लेत हो।" पगडण्डी में चलते हुए रास्ते में रज्जू शेख गेहूं पिसाने ले जाते हुए मिले। पूछने पर बोले, ''घास खाने के दिन अभी नहीं आये हैं। हां, चारे की किल्लत है। घास जानवर खाते है इंसान नहीं।"

सुलखान का पुरवा अल्पसंख्यक बस्ती के करीब बीस घरों का टोला है। यहां से पांच किलोमीटर की दूरी पर चित्रकूट मंडल का प्रसिद्ध गुढ़ाकला गाँव है, जो निकले हुए हनुमान जी के मंदिर के चमत्कार के लिए चर्चित है। मंगलवार को यहां दस से पंद्रह कुंटल घी-वनस्पति के भंडार-लंगर और आम दिनों में मेले सा रहता है। यानी कोई गरीब या संत-फकीर भूखा नहीं रह सकता है। 

आस-पास के गाँवों में पेयजल के साधन सीमित हैं। सुलखान के पुरवा में अमूनन हर घर में हैण्डपम्प, तीन से दो मुर्रा भैंस और प्रत्येक परिवार में बकरी पशुधन के रूप में दिखलाई देती है। कुछ घरों में शौचालय भी हैं, खासकर उन घर में जहां हर्ष मंदर और सज्जाद हसन ने चिंगारी में सिंकी घास की रोटी खाई है।

घास की रोटी संस्था के संस्थापक राजभैया यादव की महिला विंग चिंगारी की कार्यकर्ता शकीला इनके पास पांच बकरी, तीन भैंस, दो जोड़ी बैल, हमारी टीम के पहुंचते ही अपनी घास की रोटी, बेर, सूखे महुआ और कैथे की बुकनू थाली में लेकर उपस्थित थीं। उन्होंने घास की रोटी के बारे में पूछने पर बताया, ''इस रोटी में मकुईए कैथे की पत्ती और आटा मिला है। हमने यही बताया था सबसे, अब वो लोग इसे घास समझे या कुछ और।"

गाँव से निकलते हुए खेत जोतते किसानों के ट्रैक्टर भी कैमरे में कैद हुए। खेत में बैठे नत्थू गर्ग ने कहा, ''आस-पास के चार मजरों में कोई घास नहीं खा रहा। अपनी सामाजिक दुकानदारी चमकाने को बुंदेलखंड में घास की रोटी सिकवा रहे है।"

उन्होंने माना भले ही इसी तरह से रिपोर्ट देने की मंशा बुंदेली किसानों सरकार से राहत दिलाने की हो, लेकिन इस तरह बदनाम तो बुंदेलखंड की मिट्टी ही हो रही है। इतने सारे लोगों से मिलने के बाद एक बात साफ  हुई कि किसानों की आत्महत्या और घाटे की खेती के बीच बुंदेलखंड में खबरों का बाजार तलाशा जा रहा है। स्थाई विकास के लिए हमारे जल संसाधन सहेजने के बजाय सोशल सेक्टर के अगुआ अब जिल्लत में अपनी आजीविका खोज रहे हैं जो सरकार के समानांतर एक नई मुसीबत खड़ी करने लगी है। मुझे डर है कि कहीं ये कथित भुखमरी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, फंडरों की मंडी न बन जाए।

(लेखक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

 

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