कचरा और सीवेज पर रोक ज़रूरी, तभी स्वच्छ होगी गंगा
भास्कर त्रिपाठी 13 Feb 2016 5:30 AM GMT
नई दिल्ली। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने अगले तीन साल में गंगा नदी को निर्मल-अविरल बनाने के लिए कई क्षेत्रों में एक साथ काम शुरू करने के उद्देश्य से सात अन्य केंद्रीय मंत्रालयों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सरकार इसे इतिहास में पहली बार उठाया गया सबसे बड़ा कदम बता रही है।
लेकिन गंगा को साफ करने के लिए ग्रामीण सहभागिता के नाम पर हुए इस विशाल गठबंधन के समारोह में उद्योगों और उनके प्रदूषण को रोकने के लिए ज़रूरी सख्ती का जि़क्र बस नाम मात्र हुआ।
पांच राज्यों से होकर गुज़रने वाली, देश की 25 फीसदी भूभाग में फैली गंगा नदी में रोज़ाना उत्तराखण्ड में 44 करोड़ लीटर, उत्तर प्रदेश में 327 करोड़ लीटर, बिहार में 40 करोड़ लीटर और पश्चिम बंगाल में 178 करोड़ लीटर सीवेज और उद्योगों का प्रदूषित पानी गिरता है।
''उद्योगों द्वारा किए जाने वाले प्रदूषण के खिलाफ कड़ाई हो, इसके अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें तो राज्य का लगभग हर उद्योग मानकों से ज्यादा प्रदूषित जल छोड़ रहा है। अब समय है कि कड़ी कार्रवाई हो, उससे कम कुछ भी नहीं चलेगा," सुनीता नारायण, महानिदेशक, सेंटर फॉर साइंस एण्ड एनवायरमेंट (सीएसई) ने गाँव कनेक्शन से कहा। सीएसई देश की सबसे प्रतिष्ठित पर्यावरण के लिए काम करने वाल संस्थाओं में से एक है।
उद्योगों से आने वाले प्रदूषित पानी की इस विशाल समस्या से निपटने में आज तक केंद्र व राज्य सरकारें भी नाकाम रही हैं, जिसके चलते उन्हें राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) से फटकारें सुननी पड़ रही हैं। एनजीटी ने राज्यों को गंगा को प्रदूषित करने वाले उद्योगों के बारे में सख्ती न बरतने को लेकर अपना पक्ष स्पष्ट करने का आदेश दिया है। फरवरी एक को ही प्राधिकरण का हंटर उत्तर प्रदेश सरकार पर चला जो, लगातार टैनरियों और अन्य उद्योगों को लेकर एनजीटी के आदेश की अवहेलना कर रही है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार 764 उद्योग मुख्य गंगा और उसकी दो सहायक नदियों-काली और रामगंगा से 112.3 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन इस्तेमाल के लिए लेते थे, और वापस केवल पांच करोड़ लीटर प्रतिदिन ही नदी में छोड़ते थे। इनमें से 90 फीसदी उद्योग उत्तर प्रदेश में पडऩे वाले गंगा के प्रवाह पर स्थित हैं।
सीएसई ने गंगा और उसे स्वच्छ बनाने के लिए किन कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए इस विषय पर पूरा एक्शन प्लान बनाकर केंद्र सरकार को सौंपा है। इसके हिसाब से गंगा के प्रवाह को बढ़ाना सभी उपायों में सबसे अहम है।
''दरअसल उद्योगों में पल्प और पेपर उद्योग सबसे ज्यादा प्रदूषित जल उत्पादित करते हैं, टैनरियों की संख्या ज़्यादा है लेकिन उनके द्वारा उत्पन्न प्रदूषित जल तुलनात्मक रूप से कम मात्रा में है। लेकिन समस्या यह है कि यह प्रदूषित जल गंगा के जिस प्रवाह क्षेत्र में पड़ता है वहांं प्रवाह प्रतिशत और नदी की खुद को साफ करने की क्षमता बहुत कम है," नारायण ने कहा। उन्होंने एक्शन प्लान का जि़क्र करते हुए कहा कि राज्यों को अपने तटीय क्षेत्रों से नदी को पानी उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे प्रवाह बढ़े और नदी खुद को साफ कर पाए। नदी की सफाई के लिए केंद्र द्वारा दिया जाने वाला फण्ड भी इसी पर निर्भर हो कि किस राज्य ने नदी को कितना अतिरिक्त पानी दिया।
''जल संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण एक्ट 1974 के तहत कड़े नियम हैं लेकिन उद्योग दशकों से खुलेआम नियमों की अवहेलना कर रहे हैं। इनसे निकलने वाले विषैले पानी के गंगा में मिलने से, पानी पर आश्रित लाखों लोग तमाम बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। ज़रूरत नियमों की नहीं, नियमों का सख्ती से पालन करवाने की है," गंगा को साफ रखने के अभियान से जुड़े गंगा एक्शन परिवार के संस्थापक व परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने गाँव कनेक्शन को बताया।
नई दिल्ली में हुए एक दिवसीय स्वच्छ गंगा और ग्रामीण सहभागिता सम्मेलन में मंत्रालयों के बीच हुए समझौते के तहत एक जगह उद्यागों के प्रदूषण का जि़क्र ज़रूर आया। समझौते के तहत मानव संसाधन मंत्रालय देश की सभी सातों आईआईटी कॉलेजों का एक संगठन बनाएगी। इस संगठन की जिम्मेदारी टैनरियों, रासायनों, फार्मा और टेक्सटाइल उद्योगों से होने वाले चार तरह के औद्योगिक जल प्रदूषण को रोकने पर शोध करना है। यह संगठन ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) तकनीक का इन उद्योगों पर पायलट प्रोजेक्ट भी चलाएगा। जेडएलडी तकनीक जल शोधन और प्रबंधन की एक अति उन्नत तकनीक है जिसके तहत कोई भी उद्योग जो प्रदूषित जल उत्पादित करता है, उसी को शोधित करके पूरी तरह अपने प्रयोग में भी लेता है।
हालांकि स्वामी चिदानंद का मानना है कि गंगा पर चल रहे पावर प्रोजेक्ट भी नदी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। ''कुछ बड़ी बिजली परियोजनाएं नदी के प्रवाह को बुरी तरह प्रभावित करके उसकी पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर रही हैं। इससे तुरंत निपटना होगा। कुछ बांधों की वजह से भयंकर मात्रा में सिल्ट (गाद) बन रही है जो नदी का दम घोट रही है," स्वामी चिदानंद ने कहा।
मंत्रालय की भागीदारी
मंत्रालयों के बीच हुए समझौते के अनुसार केंद्रीय आयुष मंत्रालय गंगा किनारे के क्षेत्रों में औषधीय फसलों की खेती को बढ़ावा देगा, जिससे देश में इनका उत्पादन तो बढ़े ही, नदी की कटान भी रुकेगी। युवा व खेल मंत्रालय, खिलाडिय़ों के सानिध्य में युवाओं के समूह गठित करवाएगा। इस समूह का काम नदी की सफाई में मदद करने के साथ-साथ, पौधारोपण और गैरकानूनी रूप से प्रदूषण फैलाने वालों पर नजऱ रखना होगा।
शिपिंग, टूरिज्म, पेयजल और ग्राम्य विकास के मंत्रालयों ने भी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत ये सभी मंत्रालय नामामि गंगे अभियान के 21 विस्तृत कार्यक्रमों के तहत अपना सहयोग देंगे। गंगा को स्वच्छ व संरक्षित रखने के साथ-साथ उसके चौमुखी विकास के लिए बने नमामि गंगे अभियान को केंद्र सरकार ने 2015-20 यानि अगले पांच वर्षों के 20,000 करोड़ रुपए दिए हैं।
जल संसाधन मंत्रालय की जिम्मेदारी होगी नदी में गिरने वाले नालों और उद्योगों के अपशिष्टों को ट्रीट करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व एफ्ल्युएंट ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना करना। इसके लिए मंत्रालय राज्य सरकारों और नोडल एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा।
नई दिल्ली में एकत्रित हुए पांच राज्यों के 1200 से ज़्यादा ग्राम प्रधानों की उपस्थिति में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी समझौते में हस्ताक्षर किए। मंत्रालय की जिम्मेदारी होगी गंगा किनारे बसे 1667 गाँवों का विकास। पेय जल व स्वच्छता मंत्रालय इन गाँवों में शत-प्रतिशत शौचालयों का निर्माण करके इन्हें खुले में शौच से मुक्ति दिलाएगी।
मानव संसाधन मंत्रालय सभी गाँवों को साक्षर बनाएगा साथ ही नदी की स्वच्छता कैसे रखें और उसके महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करेगा।
समझौते के अनुसार टूरिज्म मंत्रालय का काम होगा गंगा किनारे ईको-टूरिज्म को विकसित करना। शिपिंग मंत्रालय की जिम्मेदारी देश की सबसे बड़ी नदी को बिना नुकसान पहुंचाए इसे आवागमन के लिए विकसित करना होगा।
पांच राज्यों से होकर गुज़रने वाली, देश की 25 फीसदी भूभाग में फैली गंगा नदी में रोज़ाना उत्तराखण्ड में 44 करोड़ लीटर, उत्तर प्रदेश में 327 करोड़ लीटर, बिहार में 40 करोड़ लीटर और पश्चिम बंगाल में 178 करोड़ लीटर सीवेज और उद्योगों का प्रदूषित पानी गिरता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार, 764 उद्योग मुख्य गंगा और उसकी दो सहायक नदियों-काली और रामगंगा से 112.3 करोड़ लीटर पानी रोज प्रयोग के लिए लेते थे। वापस सिर्फ पांच करोड़ लीटर प्रतिदिन नदी में छोड़ते थे। इनमें से 90 फीसदी उद्योग उत्तर प्रदेश में पडऩे वाले गंगा के प्रवाह पर स्थित हैं।
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