'कोई नारों से देशभक्त या देशद्रोही नहीं हो जाता'
गाँव कनेक्शन 29 July 2016 5:30 AM GMT

नई दिल्ली (भाषा)। राष्ट्रवाद महज़ झंडा फहराने, नारे लगाने या ‘भारत माता की जय' नहीं बोलने वालों को दंडित करने से साबित नहीं किया जा सकता बल्कि देश की जरुरतों को पूरा करने की बड़ी प्रतिबद्धता ही राष्ट्रवाद है। यह बात मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर ने कही।
उन्होंने अपनी नई किताब ‘ऑन नेशनलिज्म' में लिखा है कि नारे लगाना या झंडा फहराने से उन लोगों में विश्वास की कमी झलकती है जो नारा लगाने की मांग करते हैं। यह किताब तीन लेखकों का संग्रह है जिन्हें थापर, एजी नूरानी और संस्कृति विशेषज्ञ सदानंद मेनन ने लिखा है और इस संकलन को अलेफ बुक कंपनी ने प्रकाशित किया है।
थापर ने कहा, ‘‘राष्ट्रवाद अपने समाज को समझने और उस समाज के सदस्य के तौर पर अपनी पहचान से जुड़ा हुआ है।''
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रवाद देश की जरुरतों को पूरा करने की बड़ी प्रतिबद्धता से जुड़ा हुआ है न कि नारे लगाने से और वह भी नारे क्षेत्र विशेष से हों या उन लोगों द्वारा हों जिनकी सीमित स्वीकार्यता है।''
उन्होंने कहा, ‘‘हाल में कहा गया कि वास्तव में यह विडम्बना है कि जो भी भारतीय यह नारा लगाने से इंकार कर देता है उसे तुरंत देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है लेकिन जो भी भारतीय जानबूझकर कर नहीं चुकाता या काला धन विदेशों में जमा करता है उसे ऐसा घोषित नहीं किया जाता।''
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