“मत चूको चौहान”, अपने जुमले को सच्चाई में बदल दो

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“मत चूको चौहान”, अपने जुमले को सच्चाई में बदल दोgaonconnection

दुनिया के लोग स्तब्ध हैं कि इतने बड़े-बड़े नेता भी पनामा जैसे छोटे देशों की कम्पनियों में इतना पैसा लगाते हैं। पनामा पेपर लीक से पता चला, अमेरिका के पड़ोसी देश में बेशुमार कालाधन जमा किया गया था इसका अनुमान लगाना कठिन है। शायद कितने लोगों ने जमा किया इसका पता लग सके। जिन भारतीयों के नाम लिए जा रहे हैं उनमें से कुछ तो कांग्रेस के नज़दीकी हैं और कुछ मोदी के। कुछ का कहना है उन्होंने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया क्योंकि विदेश में कम्पनी बनाई नहीं खरीदी है, कुछ ने अपना नाम गलत ढंग से लिए जाने की बात कही है और कुछ का तर्क है कि वे एनआरआई हैं जिन पर भारतीय टैक्स के नियम लागू नहीं होते वगैरह वगैरह। 

मोदी ने विदेशी धन वापस लाने का वादा किया था और प्रत्येक भारतीय के हिस्से में 18 लाख आने वाला था। बाद में उसे जुम्ला कहा गया। इसी प्रकार बोफोर्स प्रकरण के जमाने का एक नारा याद आता है ‘‘राजीव गांधी होश में आओ, देश का पैसा देश में लाओ।” मोदी भाग्यशाली रहे हैं और शायद अब उनका जुमला सच्चाई में बदल जाए। अब भारत के 500 लोगों को देश का पैसा देश में लाने के लिए बाध्य करना है और मोदी सरकार के लिए सुनहरा मौका है। यही कह सकता हूं ‘‘मत चूको चौहान” जो पृथ्वीराज से कहा गया था।

अभी तक सुनते थे कि स्विटजरलैंड में काला धन जमा होता है, जर्मनी और दूसरे यूरोप के देशों में जमा होता है क्योंकि वहां धन सुरक्षित रहता है, किसी को पता नहीं चलता। बोफोर्स खरीद में दलाली का पैसा विदेशों में जमा हुआ था और उस बार भी द हिन्दू के एन राम ने छानबीन की थी। किसी लोटस कम्पनी के नाम से पैसा विदेश में जमा हुआ था। उन दिनों ये बड़ी बात थी क्योंकि तब विदेशी बैंकों में खाता खोलना ही वर्जित था। अब तो कहते हैं पनामा की कम्पनियों में भारत के ही 500 लोगों ने धन लगाया है और वह काला धन है। 

पनामा पेपर लीक अब तक का शायद सबसे बड़ा खुलासा है जिससे सारी दुनिया में उथल पुथल मच गई है। आइसलैंड के प्रधानमंत्री ने त्यागपत्र दे दिया है और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ ने जांच समिति बिठा दी है। भारत के अब तक आरोपित 500 लोगों में अमिताभ बच्चन और ऐश्वर्या राय के नाम भी बताए गए लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि पनामा में उनका कोई धन नहीं लगा है। इस खुलासे में चीन, रूस, इंग्लैंड के नेताओं के भी नाम हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने कड़ा रुख अपनाया है और वित्तमंत्री ने जांच समिति बिठा दी है।  

बोफोर्स दलाली के पैसे की खोज में पत्रकारों ने विदेशी बैंकों के दरवाजे खटखटाए थे। वहां पर एक ही लक्ष्य था दलाली में क्वात्रोची और राजीव गांधी की लिप्तता प्रमाणित करना। जब लोटस कम्पनी का नाम आया और लोटस के मायने कमल यानी राजीव बताया गया तो लगा खोज पूरी हो गई। बाद में किसी नतीजे पर जांच नहीं पहुंची। अब तो भानुमति का पिटारा ही खुल गया है, पता नहीं हमारे मीडिया के मौन का राज़ क्या है।

हमारा मीडिया विशेषकर टीवी जो बात-बात में ट्रायल आरम्भ कर देता है अब तक एक्शन मोड में नहीं आया है। जर्मनी के जिस खोजी पत्रकार ने खुलासा किया है उसकी सराहना होनी चाहिए और इंडियन एक्सप्रेस की भी प्रशंसा होनी चाहिए। भारत के जिन 500 लोगों के नामों की बात कही गई है उनका खुलासा जल्द से जल्द होना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री ने इसे गम्भीरता से लिया है यह काफी नहीं है। यही मौका है चुनावी वादा पूरा करने का। विदेशों में जमा धन को वापस लाने का कम से कम प्रयास करता हुआ दिखने का।

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