समुंदर में नहीं, तालाब में बन रहे हैं मोती
महाराष्ट्र के संजय गटाडे ने एलएलबी की पढ़ाई के बाद वकालत न करके खेती करने का ही फैसला किया। लेकिन पारंपरिक गेहूं, गन्ना की जगह मोतियों की खेती शुरू की।
Divendra Singh 30 July 2018 7:50 AM GMT

लखनऊ। आमतौर पर मोती खारे पानी के सीपियों में ही बनते हैँ, लेकिन महाराष्ट्र के एक किसान ने प्रयोग कर मीठे पानी में मोती की खेती करके लाखों की कमाई शुरू कर दी है।
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के पारडी गाँव में रहने वाले संजय गटाडे (३१ वर्ष) ने एलएलबी की पढ़ाई के बाद वकालत न करके खेती करने का ही फैसला किया। लेकिन पारंपरिक गेहूं, गन्ना की जगह मोतियों की खेती शुरू की।
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"हमारे गाँव के पास से ही बाणगंगा नदी बहती है, उसमें ढेर सारी सीपियां पड़ी रहती थीं, एक बार मैंने सीपी में मोती देखा तो गाँव के लोगों से पूछा कि ये मोती है, लेकिन कोई बता नहीं पाया। उसके बाद मैं जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र गया वहां भी सही जवाब नहीं मिला।" संजय गाताडे ने फोन पर बताया।
"इसके बाद मैंने प्रयास जारी रखे तो पता चला कि सीपी में कंकड़ जाने से वो मोती बन जाता है। कई साल तक कोशिश की, रेत का कंकड़ डाल के देखा, लेकिन दो तीन महीने में सीपी मर जाती थी। आखिर मैंने कई पदार्थों को मिलाकर ऐसा कंकड़ बना लिया, जिससे मोती बन सकता है, "संजय ने बताया।
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ग्यारह तरह के पदार्थों को मिलाकर बनने वाले इस कंकड़ को बनाया जाता है, जिससे पांच-छह महीनों में यह मोती बन जाता है। शुरुआती मुश्किलों ने निपटने के बाद संजय आज साल में 12-15 लाख रुपए कमाते हैं। दस गुणा दस के आकार के तालाब में एक बार में तीन 3000 सीपियां डाली जा सकती हैं, जिनमें 5-6 महीने में मोती बन जाता है। तीन 3000 सीपियों से 8000 मोती बन जाते हैं। एक मोती थोक के दाम में 3 से 5 सौ रुपए में, तो फुटकर में 1000 रुपए में बिकता है।
मोती बनाने के लागत के बारे में संजय बताते हैं, "मोती बनाने में कोई लागत नहीं आती, क्योंकि कंकड़ मैं खुद से ही बनाता हूं और मोतियों को खाने में गोबर के कंडे दिए जाते हैं।" संजय अब देवी-देवताओं के आकार में भी मोती बनाने लगे हैं, इसके लिए उसी आकार के कंकड़ डालने पड़ते हैं, इन मोतियों की कीमती साधारण मोती से ज्यादा होती है।
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