'रघुबीरा' में दिखा अवध के लोक नृत्यों का रंग

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रघुबीरा में दिखा अवध के लोक नृत्यों का रंगgaon connection, गाँव कनेक्शन

दिवेंद्र सिंह 

लखनऊ। शहर के राममनोहर लोहिया पार्क में संस्कृति विभाग की ओर से साझी विरासत की मासिक सांस्कृतिक श्रृंखला के तहत 'रघुबीरा' कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

दो दिनों के कार्यक्रम के आखिरी दिन इलाहाबाद के कलाकारों ने लोक नृत्य ढेंढिया और अवध का पारंपरिक होली नृत्य पेश किया। वाराणसी से आए कलाकारों ने रामलीला के कई प्रसंगों का मंचन किया। खुले मंच पर हो रहे कार्यक्रमों को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में दर्शक पहुंचे।

अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक वाईपी सिंह ने बताया, ''संस्कृति विभाग ने जून में ही लोक कलाओं की श्रृंखला की शुरुआत की है, जिसमें हर महीने लोक कला की कई विधाओं का मंचन किया जाता है।" वो आगे बताते हैं, ''अब जनता लोक कलाओं को भूलती जा रही है, ऐसे कार्यक्रमों के मंचन से लोगों की लोक कलाओं में दिलचस्पी बनी रहेगी। अपने दोस्तों के साथ कार्यक्रम देखने आए लखनऊ के रहने वाले के के यादव कहते हैं, ''पॉम्पलेट के जरिए कार्यक्रम की जानकारी मिली, रायबरेली का रहने वाला हूं लेकिन बीस साल से भी ज्यादा समय से लखनऊ में ही रह रहा हूं। ऐसे कार्यक्रमों से अपने गाँव की रामलीला की याद आ जाती है।"

इलाहाबाद के कलाकारों बांधा समा

कार्यक्रम की शुरुआत में इलाहाबाद से आयी बीना सिंह और उनकी सहयोगियों ने ढेंढिया लोक नृत्य पेश किया। उसके बाद उन्हीं कलाकारों ने मंच पर अबीर और गुलाल से होली खेलते हुए ब्रज की होली को दिखाया। कलाकारों ने अवध की पारम्परिक होली पेश कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कन्हैया के संग गोपियों ने जमकर होली खेली। 'रंग डालूं तेरे अंग' गीत पर नृत्य कर रहे कान्हा पर गोपियां गुलाल उड़ा रही थीं।

इलाहाबाद के लीडर रोड की रहने वाली बीना सिंह लोक नृत्य सिखाने का संस्थान चलाती हैं। ढेंढिय़ा लोक नृत्य के बारे में बीना सिंह बताती हैं, ''14 वर्षों बाद जब श्रीराम अयोध्या वापस लौटे तो अयोध्या की महिलाओं ने सिर पर मिट्टी के घड़े में दिये रखकर ढेंढिय़ा नृत्य किया था, तभी से इस नृत्य की शुरुआत हुई।"

काशी की रामलीला का भी आयोजन

काशी से आए श्री 108 मौनीबाबा रामलीला कमेटी के 40 कलाकारों ने रामलीला का मंचन किया। मंचपर लक्ष्मण शक्ति, विजय दशमी और भरत मिलाप दिखाया गया। रामलीला में 10 साल के बच्चे से लेकर 60 साल के बुर्जुग कलाकार थे। काशी की प्रसिद्ध रामलीला मंचन में मुखौटों का इस्तेमाल किया जाता है।

रामलीला कमेटी की अध्यक्ष डॉ पूनम शर्मा बताती हैं, ''हमारी रामलीला कमेटी दो सौ साल से भी अधिक समय से रामलीला का मंचन कर रही है। अयोध्या शोध संस्थान के साथ ही हमने अभी चित्रकूट में भी रामलीला का मंचन किया था।"

 

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