'सांसदों के बच्चे क्रीमी लेयर में शामिल हों, विधायकों के नहीं'

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सांसदों के बच्चे क्रीमी लेयर में शामिल हों, विधायकों के नहींगाँव कनेक्शन

लखनऊ। "सांसदों के बच्चों को क्रीमी लेयर में माना जाना चाहिए जबकि विधानसभा और विधानपरिषद के सदस्यों के बच्चों को क्रीमी लेयर से बाहर माना जाए। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने 26 अक्टूबर 2015 को जारी अपनी रिपोर्ट में ये अनुशंसा की है।"

राज्य सभा में 10 दिसम्बर गुरुवार को क्रीमी लेयर के विषय पर उठे सवाल का लिखित जवाब देते हुए केन्द्रीय सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण राज्य मंत्री किशन पाल गुर्जर ने यह बात कही। गुर्जर का लिखित उत्तर, भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी किया गया।

‘क्रीमी लेयर’ शब्द का इस्तेमाल भारतीय राजनीति में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के तुलनात्मक रूप से सक्षम और सम्पन्न लोगों के लिए किया जाता है, जो ओबीसी को सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं और रियायतों के अधिकारी नहीं होते।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा “वो व्यक्ति जो राज्य/केन्द्रीय मंत्रियों, सांसदों जैसे संवैधानिक पदों पर हों, उन्हें क्रीमी लेयर में आना चाहिए”। 

अपनी इस रिपोर्ट में आयोग ने यह भी कहा कि क्लास-1 के अधिकारी चाहे वह केन्द्र के हों या राज्य के, बच्चों को आरक्षण लाभ के दायरे से बाहर निकाल देना चाहिए। यह विचार नहीं किया जाना चाहिए कि वह सीधी भर्ती से है या प्रोन्नति से आया है। वर्तमान में केवल सीधी भर्ती से आए अधिकारी ही क्रीमी लेयर माने जाते हैं।

आयोग का तर्क है कि कोई भी प्रथम श्रेणी अधिकारी उसी समय उच्च सामाजिक स्तर हासिल कर लेता है जब वह क्लास वन अधिकारी बनता है तो दूसरी ओर प्रोन्नत हुए अधिकारी को सीधी भर्ती से नियुक्त हुए अधिकारी से ज्यादा वेतन मिलता है।

 

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