सिर्फ कागज़ों पर हो रहा पृथ्वी का संरक्षण हकीकत में नहीं

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सिर्फ कागज़ों पर हो रहा पृथ्वी का संरक्षण हकीकत में नहींgaoconnection. com

लखनऊ। विश्व पृथ्वी दिवस का आयोजन यूं तो हर साल 22 अप्रैल को किया जाता है लेकिन पृथ्वी के संरक्षण के लिए प्रयास पूरे वर्ष कागजों पर तो दिखाई देते हैं लेकिन हकीकत में नहीं।

पर्यावरण को संतुलित रखने और वायु को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हाल ही में प्रदेश सरकार ने जुलाई माह में छह करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है, वहीं इसके विपरीत राजमार्गों के चौड़ीकरण को लेकर आए दिन पेड़ों की कटान जारी है। करीब चार माह पूर्व उन्नाव शुक्लागंज मार्ग के चौड़ीकरण के लिए दस हजार वृक्षों पर आरा चलाया गया था। गाँव कनेक्शन ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

राजधानी की बात करें तो गोमती नगर में स्टेडियम बनाने में, रायबरेली रोड, कुर्सी रोड, मोहान रोड को चौड़ा करने के नाम पर हजारों पेड़ों को काटा गया था। इसके साथ ही आईटी सिटी और कैंसर इंस्टीट्यूट के नाम पर सुल्तानपुर रोड स्थित चकगंजरिया फार्म में लगे वर्षों पुराने चार हजार पेड़ों को काटा गया था। डीएफओ, अवध फॉरेस्ट डिवीजन श्रद्धा यादव बताती हैं, “वर्ष 2015 में विकास कार्यों और मार्गों के चौड़ीकरण के लिए करीब पांच हजार पेड़ हटाए गए थे। इस दौरान करीब 15 हजार पेड़ अन्य स्थानों पर लगाए गए है।” जब उनसे पूछा गया कि जहां से पेड़ हटाए गए क्या पेड़ वहीं लगाए गए हैं तो उन्होंने बताया कि वहां का कार्य पूरा हो जाने के बाद वहां और पेड़ लगाए जाएंगे। अगर अभी लगा दिए गए तो निर्माण कार्य की चपेट में आकर वो खराब हो जाएंगे।

बात अगर जल प्रदूषण की करें तो केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 तक प्रति व्यक्ति के लिए केवल 3,120 लीटर पानी ही बचेगा। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि 2001 की तुलना में 2016 में देश में प्रति व्यक्ति भूमिगत जल की उपलब्धि 5,120 लीटर रह गई है। वर्ष 1951 में भारत में प्रति व्यक्ति भूमिगत जल की उपलब्धता 14,180 लीटर थी। अब 1951 की तुलना में भूमिगत जल की उपलब्धता मात्र 35 फीसद ही रह गई है। 1991 में यह आधे पर पहुंच गई थी।

अनुमान के मुताबिक 2025 तक प्रति व्यक्ति के लिए प्रति दिन के हिसाब से 1951 की तुलना में केवल 25 फीसद भूमिगत जल ही शेष बचेगा। वहीं केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के आंकड़ों की माने तो वर्ष 2050 तक यह उपलब्धता घटकर 22 फीसद पर पहुंच जाएगी।

दो लाख हेक्टेयर भूमि अभी भी खराब

“साल 2005 में उत्तर प्रदेश में बारह लाख हेक्टेयर ऊसर भूमि थी, जिसमें से 2011 से जून 2016 तक एक लाख 17 हजार हेक्टेयर भूमि को ऊसर मुक्त करा के उपजाऊ बना लिया गया है।” उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम के जनरल मैनेजर डॉ. एके मिश्रा ने बताया। उन्होंने बताया कि अभी भी दो लाख हेक्टेयर ऊसर भूमि यूपी में है।

हरित क्रांति के बाद खेतों में कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग भी खेत को अनुपजाऊ बना रहा है, इस बारे में  केन्द्रीय मृदा लवणता संस्थान के निदेशक विनय कुमार मिश्रा बताते हैं, “खेती में कीटनाशक और रासायनिक खाद का ज्यादा प्रयोग भी खेत को अनुपजाऊ बना रहा है। मिट्टी में पाए जाने सूक्ष्म जीवाणु भी खत्म हो रहे हैं, इसके पीछे सबसे बड़ी वजह खेतों में अवशेष जलाना भी है। ये सूक्ष्म जीवाणु कार्बन पर ही जिन्दा रहते हैं, खेत को जलाने से कार्बन जल जाता है, जिससे वो भी खत्म हो जाते हैं।”

काटने के बाद लगाए जा रहे हैं पेड़

क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा) के उप निदेशक आलोक बताते हैं, “हमारे विभाग से किसी कारण से काटे गए पेड़ों की क्षतिपूर्ति के लिए पेड़ लगाया जाता है। साल 2011 से इसकी शुरुआत की गयी थी, तबसे हजारों हेक्टेयर में क्षतिपूर्ति की जा चुकी है।”

कैम्पा से मिले आंकड़ों के अनुसार 2011 से अभी तक क्षतिपूर्ति का क्षेत्रफल बढ़ रहा है। देश में नियम है कि जितना पेड़ काटा जाता है, उसका पांच गुना क्षतिपूर्ति की जाती है। 

2011 में 1,635.78 हेक्टेयर क्षेत्रफल और 91,609 पौधों का पौधारोपण किया गया था, वहीं साल 2015 में 2,364.67 हेक्टेयर क्षेत्रफल और 169425 पौधों का पौधारोपण किया गया है।

‘कम करें रासायनिक खाद का प्रयोग’

पर्यावरणविद् पंकज भूषण बताते हैं, “भूमि को ऊसर बनने से रोकने के रासायनिक खाद का कम प्रयोग करें, किसान फसल चक्र पर भी ध्यान दें इसका असर सीधे मिट्टी पर पड़ता है। पानी के दोहन पर भी ध्यान देना चाहिए।”गांधी जी के विचारों को अपनाएं तभी बचेगी धरती

गांधी जी के विचारों को अपनाएं तभी बचेगी धरती

लखनऊ। “महात्मा गांधी ने कहा था कि प्राकृतिक संसाधन हमारी जरूरत के लिए काफी हैं न कि लोभ के लिए। अगर धरती को बचाना है तो हमें गांधी जी के इस विचार को अपनाना होगा।” यह कहना है कि भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विभाग के फैकल्टी वेंकटेश दत्ता का।

 वेंकटेश कहते हैं कि सिर्फ एक दिन पृथ्वी दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा, हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन रोकना होगा। साथ ही उद्योगों और घरों से निकलने वाला कचरा प्राकृतिक संसाधनों के लिए नुकसानदेह है। ज्यादातर होने वाली लाइफस्टाइल बीमारी, कैंसर, इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह कहीं न कहीं ये कचरा ही है। 

वेंकटेश कहते हैं कि धरती को बचाना जरूरी है इसके लिए गांधी जी के विचार से नसीहत लेने की जरूरत है। हमें अपनी लक्जरी लाइफ जीने की आदत में कमी लानी होगी और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम करना होगा। इसमें सबसे जरूरी है जल। 

जल दोबारा संचित हो जाता है लेकिन उसकी क्वालिटी घटती जा रही है। नदियों में जल प्रदूषण बढ़ रहा है। पेड़ों को हम काटते जा रहे हैं और संचित जल को निकालते जा रहे हैं। इस पर नियंत्रण जरूरी है।

 रिपोर्टर टीम - अंकित मिश्रा, दिवेन्द्र सिंह, शेफाली श्रीवास्तव

 

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