47 पुलिसवालों को 24 साल बाद उम्रकैद

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47 पुलिसवालों को 24 साल बाद उम्रकैदgaonconnection

लखनऊ। फर्जी एनकाउंटर में मारे गए 10 सिख युवकों के हत्यारोपी 47 पुलिसवालों को सीबीआई की विशेष अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई गई। अदालत ने फैसला सुनाते हुए एसएचओ/एसओ, एसआई और कांस्टेबल पर जुर्माना भी लगाया। 

कोर्ट ने एसएचओ/एसओ पर 11 लाख, एसआई पर आठ लाख और कांस्टेबल पर 2.75 लाख रुपए का जुर्माना लगाने के बाद इसमें से पीडि़त परिवारों को 14-14 लाख देने को भी कहा है। 

अदालत में सुनवाई के दौरान पीड़ित परिवार के सदस्य, सिख समुदाय के लोग मौजूद रहे। फैसले के बाद 19 दोषियों को जेल भेज दिया गया। 

पीलीभीत में 29 जून, 1991 को पुलिस ने बिहार में पटना साहिब और महाराष्ट्र गुरुद्वारा नादेड़ साहेब से परिवार संग दर्शन कर लौट रहे 11 सिख युवकों को चेकिंग के नाम पर बस से उतार कर अगवा कर लिया। इन युवकों को तीन थानों की पुलिस ने दिनभर घुमाने के बाद दो टोली में चार-चार सिख और एक में दो सिख रखे गए। इन सभी को तीन अलग-अलग थाना क्षेत्रों के जंगल में गोली मार दी गई।

इस फर्जी एनकाउंटर के पुलिस ने अगले दिन 10 खालिस्तान लिबरेशन आर्मी और खालिस्तान कमांडो फोर्स के आतंकियों को मार गिराने का दावा किया था। इन युवकों में नौ गुरदासपुर, बटाला और एक शाहजहांपुर और दो पीलीभीत के थे। इसमे 10 युवकों का शव बरामद हुआ था।

मृतकों के परिजनों और सिंख संगठनों ने मामले की उच्च स्तरीय मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई जांच शुरू हुई थी। जांच में 57 पुलिसकर्मी दोषी पाए गए थे। सीबीआई ने 178 गवाह बनाए, 207 दस्तावेज सबूत के लिए लगाए और पुलिसकर्मियों के हथियार, कारतूस और 101 दूसरी चीजें सबूत के तौर पर पेश कीं। करीब 25 वर्ष चली कानूनी लड़ाई में अदालत ने इन पुलिसकर्मियों को सिख युवकों को अगवा कर हत्या करने का दोषी पाया गया। इन आरोपियों में 10 आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है। 

त्यौहार के चलते कई मंडिया बंद रही। यूपी में ललितपुर मंडी दाल की सबसे बड़ी मंडी है, होली के पहले ही बंद हो गई थी और आठ दिन बंद रही। अब वहां करोबार शुरू हुआ है। इसके साथ ही मार्च क्लोजिंग के चलते भी कारोबारियों ने बड़े लेन-देन नहीं किए इसलिए सब मांग ज्यादा हुई और आपूर्ति कम, लिहाजा कीमतें बढ़ गई।”

भूषण ने बताया, “लेकिन हमें लगता है 15 अप्रैल के बाद मार्केट गिर सकती है। बाजार में अरहर और मसूर की नयी फसल आने वाली है। साथ ही सरकार ने महंगाई पर काबू पाने के लिए खाद्य पदार्थों की खरीद के लिए जो नौ हजार करोड़ का बजट रखा उससे नैफेड जैसी सरकारी संस्थाओं ने बड़े पैमाने पर दालों की बफर स्टॉक बनाया है इसलिए कीमतें कम होने की उम्मीद की जा सकती है।”

इस बारे में उत्तर प्रदेश मंडी परिषद के संयुक्त निदेशक, कृषि विपणन एवं कारोबार, दिनेश चंद्र बताते हैं कि मार्च और अप्रैल के बीच को ट्रांसजिशन पीरियड (पुरानी से नई फसलों के बदलाव का समय) कहा जाता है खेती और संबंधित कारोबार के लिए। मंडिया बंद होती हैं, खरीद-फरोख्त भी बड़े पैमाने पर नहीं होती। पुरानी फसलें खत्म हो रही होती हैं और नई के आने में वक्त होता है। इसलिए कई कुछ चीजें महंगी हो जाती हैं। मार्च के आखिर और अप्रैल के शुरूआत की कीमतों में ज्यादा फर्क नहीं आया है। आने वाले दिनों में रेट कम हो सकते हैं।

बड़ों को बचा ले गई सीबीआई

लखनऊ। पीलीभीत कांड के फैसले पर कोर्ट में पुिलस की कार्यशैली पर तल्ख टिप्पड़ी की है। कोर्ट ने पुिलस और जांच एजेंसियां की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट के फैसले और टिप्पड़ी से साफ है कि स्वयं के लाभ के लिए पुिलस किसी निर्दोष की हत्या कर सकती है और जांच एजेंसियां भी अपने अफसरों को बचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती हैं।

इस कांड में सीबीआई की भी कार्यशैली पर सवाल उठे हैं। पीलीभीत कांड में सीबीआई ने सभी बड़े अफसरों को बचाने की बात सामने आई है। तीन थानों न्यूरिया, बिलसंडा और पूरन पुलिस ने दिन भर 11 सिख युवकों को रखा और बाद में उन्हें आंतकी बताते हुए मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया। युवकों को दिनभर घुमाने, तीन तीन थाना क्षेत्रों में ले जाने और हत्या करना और हत्या को मुठभेड़ में दिखाना साबित करता है कि पुलिस विभाग के जिला स्तर के कई महत्वपूर्ण शक्तियां भी काम भी काम कर रही थी, लेकिन सीबीआई ने उन्हें विवेचना से दूर रखा। 

कानून का हुआ दुरुप्रयोग

अदालत की सुनवाई में सामने आया कि इस मुठभेड़ में विधि का दुरुप्रयोग किया गया। दिखाए गए मुठभेड़ में युवकों के पास कोई घातक हथियार भी नहीं थे। पुलिस ने मुठभेड़ के दौरान जो हथियार दिखाए वे 12 बोर के तमंचे, 12 बोर की बंदूक थी। अगर बस में सवार दो सिख युवकों पर पंजाब के विभिन्न थानों में अपराधिक गितविधियों से सम्बंधित मुकदमें भी दर्ज थे, तो बस से उतार कर उन्हें गिरफ्तार कर कानून के हवाले किया जाना था। मगर पुलिस ने ऐसा नहीं किया। अदालत का मत है कि पुलिस ने विधि का दुरुप्रयोग किया। 

कई दोषी अब भी हैं सेवा में

हत्याकांड के सजा पाए 47 पुलिस कर्मियों में एक दर्जन से अधिक अब भी सेवा में हैं। इसमें हेड कांस्टेबल से एसआई का प्रमोशन पाए हरपाल सिंह की सेवाअवधि 20 दिन बची है। वहीं हेड कांस्टेबल रजिस्टर सिंह, दिनेश, बदन सिंह, राम चंदर सिंह,  नरायण दास, राशिद हुसैन, महावीर, कुंवरपाल, सुगम चंद्र, शमशेर अहमद, करन पाल कांस्टेबल,  सुभाष चंद्र और इंस्पेक्टर वीरपाल सिंह की सेवा अवधि बची है। 

न्याय मिलने पर खुशी से छलक आए आंसू

गुरदासपुर के थाना धालीवाल के मनीपुर गाँव के करनैल सिंह (85 वर्ष) के अदालत के आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाते ही पथराई आंखों से आंसू छलक आए। लोगों की जुबा से आरोपियों को सजा मिलने की जानकारी मिलते ही बोल पड़े रब ने इंसाफ कर दिया, लेकिन न्याय मिलने में 25 वर्ष लगने पर थोड़ा मायूस हुए। 

पिता का चेहरा नहीं देखा तो इंसाफ के लिए बेकरार रहे बेटा-बेटी

पिता की हत्या करने वाले पुलिस कर्मियों को कड़ी सजा मिले। इसकी खबर सुनने के लिए पल-पल दादा और माँ के पास पंजाब से फोन आते रहे। एनकाउंटर के दिन पति के साथ बस में सवार मृतक बलजीत सिंह की पत्नी बलविंदर सिंह को बेटा करमवीर सिंह फोन पर पल-पल फैसले की जानकारी ले रहा था। घटना के वक्त गर्भ में पल रहे करमवीर ने माँ के पास एंड्राॅयड फोन नहीं होने पर दूसरों को फोन के जरिए पिता के कातिलों को जेल जाते दिखाने की सिफारिश कर रहा था। ऐसा ही हाल हरमिंदर सिंह की बेटी मनप्रीत कौर था। घटना के समय बस में सवार माँ स्वर्णजीत सिंह के गर्भ में तीन माह की रही मनप्रीत भी पिता के कातिलों को जेल जाने की जानकारी अपने दादा अजेब सिंह से पूछ रही थी।

पीड़ितों को मिले सरकारी नौकरी और 50 लाख मुआवजा

पीड़ित परिवार ने प्रदेश और केंद्र सरकार से 50 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने की मांग की है। पंजाब में गुरदासपुर के थाना धालीवाल के गाँव सतकोहा अजेब सिंह ने सरकार से पीडि़त परिवार को 50 लाख रुपए मुआवजा और सरकारी नौकरी की मांग की है। वहीं बलविंदर सिंह ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “अगर दोषियों को फांसी की सजा मिलती तो, इंसाफ की देरी के बावजूद खुशी मिलती।”

रिपोर्टर - जसवंत सोनकर

 

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