75 घरों वाले माधोपट्टी गांव में हैं 47 आईएएस और आईपीएस अधिकारी

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75 घरों वाले माधोपट्टी गांव में हैं 47 आईएएस और आईपीएस अधिकारी

माधोपट्टी (जौनपुर)। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 240 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में एक गांव के लगभग हर घर में एक आईएएस और आईपीएस है। कहा जाता है इस गांव में सिर्फ आईएएस और आईपीएस अफसर ही जन्म लेते हैं। पूरे जिले में इसे अफसरों वाला गांव कहते हैं। इस गांव में महज 75 घर हैं, लेकिन यहां के 47 आईएएस अधिकारी उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में सेवाएं दे रहे हैं। इतना ही नहीं माधोपट्टी की धरती पर पैदा हुए बच्चे, इसरो, भाभा, मनीला और विश्व बैंक तक में अधिकारी हैं। सिरकोनी विकास खण्ड का यह गांव देश के दूसरे गांव के लिए रोल मॉडल है।

गांव के युवकों में प्रतियोगी परिक्षाओं में आने की होड़ अंग्रेजों के जमाने से ही शुरू हो गई थी। 1914 में गांव के युवक मुस्तफा हुसैन पीसीएस में चयनित हुए थे। इसके बाद 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की 13वीं रैंक में चयन हुआ। इन्दू प्रकाश के चयन के बाद गांव के युवाओं में आईएएस-पीसीएस के लिए होड़ मच गई। इन्दू प्रकाश सिंह फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत रहे।

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इंदू प्रकाश के बाद गाँव के ही चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर नया कीर्तिमान बनाया। वर्ष 1955 में देश की सर्वक्षेष्ठ परीक्षा पास करने के बाद विनय सिंह आगे चलकर बिहार के प्रमुख सचिव बने। तो वर्ष 1964 में इनके दो सगे भाई छत्रपाल सिंह और अजय सिंह एक साथ आईएएस के लिए चुने गए।

विनय सिंह भाई चौथे भाई शशिकांत सिंह 1968 आईएएस अधिकारी बने। इनके परिवार में आईएएस बनने का सिलसिला यहीं नहीं थमा। 2002 में शशिकांत के बेटे यशस्वी न केवल आईएएस बने बल्कि इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल की। इस परिवार का रिकॉर्ड आज तक कायम है।

अफसरों वाला गांव कहने पर यहां के लोग गदगद हो जाते है। माधोपट्टी के डॉ. सजल सिंह बताते हैं, "ब्रिटिश हुकूमत में मुर्तजा हुसैन के कमिश्नर बनने के बाद गांव के युवाओं को प्रेरणास्त्रोत मिल गया। उन्होंने गांव में जो शिक्षा की अलख जगाई वो आज पूरे देश में नजर आती है।"

जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित माधोपुर पट्टी गांव में एक बड़ा सा प्रवेश द्वार गांव के खास होने की पहचान कराता है। करीब 800 की आबादी वाले राजपूतों के इस गांव में अक्सर लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ियां नजर आती हैं। बड़े-बड़े पदों पर पहुंचने के बाद भी ये अधिकारी अपना गांव नहीं भूले हैं।

युवकों के साथ यहां की बेटिओं और बहुओं ने भी गांव का मान बढ़ाया है। आशा सिंह 1980 में, उषा सिंह 1982 में, कुवंर चंद्रमौल सिंह 1983 में और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983 में, अमिताभ बेटे इन्दू प्रकाश सिंह 1994 आईपीएएस बने तो उनकी पत्नी सरिता सिंह ने 1994 में आईपीएस चुनीं गईं।

पीसीएस अधिकारियों की है फौज

पीसीएस अधिकारियों का तो यहां पूरी फौज है। इस गांव के राममूर्ति सिंह विद्याप्रकाश सिंह,प्रेमचंद्र सिंह, महेन्द्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह और उनकी पत्नी पारूल सिंह, रीतू सिंह, अशोक कुमार प्रजापति, प्रकाश सिंह, राजीव सिंह, संजीव सिंह, आनंद सिंह, विशाल सिंह और उनके भाई विकास सिंह, वेदप्रकाश सिंह, नीरज सिंह का नाम शामिल है। 2013 में गांव की बहू शिवानी सिंह ने पीसीएस परीक्षा पास करके गांव को सुर्खियों में बनाए रखा।

कई क्षेत्रों में चमकाया नाम

अफसर बनने के साथ दूसरे पेशों में गांव के युवक-युवतियां नाम रौशन कर रहे हैं। अमित पांडेय केवल 22 वर्ष के हैं लेकिन इनकी लिखी पांच किताबें 2015 में प्रकाशित हो चुकी हैं। इस गांव के अन्मजेय सिंह विश्व बैंक मनीला में, डॉक्टर निरू सिंह लालेन्द्र प्रताप सिंह वैज्ञानिक के रूप भाभा इंस्टीट्यूट तो ज्ञानू मिश्रा राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान इसरो में सेवाएं दे रहे हैं। यहीं जन्में देवनाथ सिंह गुजरात में वरिष्ठ अधिकारी हैं।

रिपोर्टर - अमित कुमार मौर्य

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