जूट को कैसे बनाएं कमाई का जरिया, झारखंड की इन महिलाओं से सीखिए

जूट को कमाई का जरिया कैसे बना सकते हैं अगर आपको ये सीखना है तो झारखंड की इन महिलाओं से मिलिए...सुदूर गाँव की ये महिलाएं जूट के धागों से जीवन का तानाबाना बुन रही हैं जो इनकी आजीविका का साधन है.

Neetu SinghNeetu Singh   18 Feb 2019 12:36 PM GMT

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पूर्वी सिंहभूम (झारखंड)। जूट के धागों को कैसे कमाई का जरिया बनाएं अगर आपको ये सीखना है तो झारखंड की इन हुनरमंद महिलाओं से मिलिए... जो जूट के धागे से सजावट का सामान बनाकर अपनी जिन्दगी का तानाबाना बुन रही हैं। महानगरों में रहने वाले लोगों को जूट से बने इको फ्रेंडली सामान खूब भा रहे हैं जो इनके रोजगार का जरिया बन गया है।

जूट के बुने आकर्षक हैंडबैग महानगरों की महिलाओं और छात्राओं की पसंद बनते जा रहे हैं। एक हैंडबैग को दिखाते हुए मोगली मुंडा (28 वर्ष) कहती हैं, "ये बैग बनाने में दो दिन लग जाता है। मेला में इसे साइज के हिसाब से 150-300 रुपए में बेचते हैं। अब अपने ही हाथों पर कई बार यकीन होता ही इसे हमने ही बनाया है।" मोगली की तरह रावताड़ा क्लस्टर की 20 महिलाएं वर्ष 2018 से एक साथ मिलकर ये काम कर रहीं हैं।


जूट और ताड़ के पत्तों से बना जो सजावट का सामान आप बड़े मेला या हाट में खरीदते हैं उसे कोई आर्टिस्ट नहीं बल्कि सखी मंडल से जुड़ी झारखंड की ये ग्रामीण महिलाएं बनाती हैं। पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ ब्लॉक के चतरो गाँव के एक चबूतरे पर हर दिन महिलाओं का एक समूह जूट और ताड़ के पत्तों से कई तरह का सामान बनाती हुई नजर आती हैं। इस सामान को वो आसपास के बाजार या सरस मेले में बेचती हैं। जो उनकी आमदनी का एक जरिया है। जूट ये बाजार से खरीदती हैं और उन धागों से सजावट के आलावा उपयोग करने वाला सामान भी बनाती हैं।

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अंतराष्ट्रीय बाजार से लेकर भारतीय महाद्वीप में जूट से बने सामानों की भारी मांग है। जूट से फैशनेबल कपड़े, चप्पल, सजावटी सामान और पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला परंपरागत बोरा बनाया जा रहा है। देश में आज भी जूट से विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करने वाले कारखानों में ढाई लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है। देश में जूट की खेती मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, ओड़िशा, मेघालय और त्रिपुरा में होती है। विश्व में कुल जूट उत्पादन का लगभग 49 प्रतिशत उत्पादन भारत में होता है। आज भी देश में लगभग 40 लाख किसान आठ लाख हेक्टेयर में जूट उपजा रहे हैं।


यही जूट अब ग्रामीण क्षेत्र की इन महिलाओं के रोजगार का माध्यम है। चतरो आजीविका महिला ग्राम संगठन की सचिव बुलूरानी मुंडा (28 वर्ष) जूट से बनी गुड़िया दिखाते हुए आत्मविश्वास से कहती हैं, "ये गुड़िया हमने ही बनाई पहले तो देखकर खुद पर भरोसा नहीं होता था। क्योंकि हमने इसके लिए ज्यादा दिनों की कोई ट्रेनिंग नहीं ली। रांची से एक दीदी आयीं थी उन्होंने ही बताया और फिर हम बनाने लगे।" वो आगे कहती हैं, "शुरुआत में बनाने में बहुत समय लगता था इतनी सफाई भी नहीं आती थी लेकिन अब बनाते-बनाते हाथ साफ़ हो गया है। सब दीदी मिलकर सारा सामान बनाती हैं। कोई दीदी अच्छा हैंडबैग बना लेती तो कोई बत्तख और कोई पैरदान बनाती है।"

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झारखंड में आपको जमीन का एक बड़ा हिस्सा खाली नजर आएगा। हजारों एकड़ जमीन पानी के आभाव में बरसात के बाद खाली पड़ी रहती है धालभूमगढ़ ब्लॉक उनमें से एक है। ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए जीविका चलाना आज भी चुनौती बना हुआ है। यहाँ के लोग या तो पलायन कर जाते हैं या फिर दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। ऐसे क्षेत्रों में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा सखी मंडल की महिलाओं को हुनरमंद बनाकर उन्हें गाँव में ही रोजगार मुहैया कराया जा रहा है। जिसमें से जूट का सामान बनाना भी एक है।


जमुना मुंडा (30 वर्ष) अपने हाथ में रंग बिरंगे ताड़ के पत्तों से बने गुलाब के फूल को दिखाते हुए कहती हैं, "ताड़ के पत्ते गाँव के आसपास से ही तोड़ लाते हैं। एक घंटे में 10-15 गुलाब के फूल बना लेते हैं। बाजार में एक फूल 10-15 रुपए में आसानी से बिक जाता है। कोई बनाती हैं कोई इनमें रंग भरती है।" उन्होंने आगे कहा, "अब यहाँ पानी की वजह से खेती नहीं हो पाती। रोज मजदूरी मिलेगी ये भी मुश्किल है। ये अपना काम है यहाँ रोज जितनी मेहनत करेंगे उतना हमारा सामान बनेगा। अभी तो शुरुआत है इसलिए ज्यादा फायदा नुकसान नहीं बता सकते लेकिन कुछ दिनों में इसका लाभ मिलेगा।"

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