बदलाव की कहानियां गढ़ रहीं स्वयं सहायता समूह की महिलाएं

झारखण्ड की महिलाएं आज सखी मंडल से जुड़कर बदलाव की कहानियाँ गढ़ रहीं हैं। जब इनके हाथ में माइक आता है तो हजारों की भीड़ में ये आत्मविश्वास के साथ बेबाकी से अपनी उपलब्धियां गिना रही होती हैं। वहीं हजारों महिलाएं इन्हें अपना रोल माडल मानने लगती हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   3 Nov 2018 9:01 AM GMT

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बदलाव की कहानियां गढ़ रहीं स्वयं सहायता समूह की महिलाएं

रांची (झारखंड)। घरों की चाहरदीवारी और मजदूरी करने तक सीमित रहने वाली झारखण्ड की महिलाएं आज सखी मंडल से जुड़कर बदलाव की कहानियाँ गढ़ रहीं हैं। जब इनके हाथ में माइक आता है तो हजारों की भीड़ में ये आत्मविश्वास के साथ बेबाकी से अपनी उपलब्धियां गिना रही होती हैं। वहीं हजारों महिलाएं इन्हें अपना रोल माडल मानने लगती हैं।

अति संवेदनशील माने जाने वाले खूंटी जिले की रहने वाली आदिवासी महिला सोनामती उरांव (35 वर्ष) तीन साल पहले तक दिहाड़ी मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही थी। स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद आज ये इमली के उत्पादक समूह की देखरेख कर रही हैं। एक कार्यक्रम के दौरान दुबली पतली दिखने वाली सोनामती जब माइक पकड़कर अपने सखी मंडल की ताकत बता रही थीं तो हर कोई इनका मुरीद हो गया था।

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सोनामती झारखंड की पहली महिला नहीं जो मजदूरी छोड़कर आज सफल उद्यमी बनी हो बल्कि इनकी तरह देशभर में चल रही दीन दयाल अंत्योदय योजना के तहत केवल झारखंड राज्य में 15,733 गांवो में करीब 1,32,531 सखी मंडलों का गठन कर उन्हें आजीविका के साधनो से जोड़ा गया है। जिसमें से सोनामती एक हैं।


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झारखंड के सुदूर गाँव की ग्रामीण महिलाएं स्वयं सहायता समूह में बचत करने तक ही सीमित नहीं हैं अब ये लीक से हटकर कई तरह के काम भी कर रही हैं। कोई महिला रानी मिस्त्री बनी है तो कोई जन वितरण प्रणाली को सम्भाल रही हैं। इनमें से कोई पशु सखी है तो कोई आजीविका कृषक मित्र है। कुछ बैंक दीदी हैं तो कुछ सफल उद्यमी हैं। जो महिलाएं कल तक जंगल से लकड़ी बीनकर और मजदूरी करके अपना गुजारा करती थीं आज वो सफल उद्यमी बन गईं हैं।

एक कार्यक्रम में पहुंचे मुख्यमंत्री रघुवर दास और केन्द्रीय ग्रामीण विकास, पंचायतीराज स्वच्छता एवं पेयजल मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने सोनामती की कहानी सुनकर न केवल उन्हें प्रोत्साहन राशि में दो लाख रुपए की चेक दी बल्कि उन्हें झारखंड की महिलाओं के लिए मिसाल भी बताया। सोनामती उरांव की तरह इस कार्यक्रम में देश के 10 राज्यों से स्वयं सहायता समूह से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं ने जब अपने संघर्ष से लेकर सफलता तक की कहानी बताई तो हर कोई इनका मुरीद हो गया। सोमवती की तरह झारखंड में सात लाख से ज्यादा परिवारों की आजीविका को सशक्त किया गया है।

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देश भर में सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रोत्साहित करना था। वर्ष 2011-12 के मुताबिक भारत में लगभग 61 लाख स्वयं सहायता समूह है, जिसमें लाखों की संख्या में महिलाएं जुड़ी हैं। वहीं झारखंड के 24 जिलों के 217 ब्लॉक में 19 लाख से ज्यादा गरीब परिवारों को सखी मंडल से जोड़ा गया। झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के अनुसार इनके बचत खाते में 96 करोड़ 35 लाख रुपए जमा है। राज्य में 1 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह है। दीन दयाल अंत्योदय योजना के तहत राज्य में 70,321 सखी मंडलों को बैंक ऋण उपलब्ध कराया गया। जिससे ये ग्रामीण महिलाएं खुद का व्यवसाय शुरू कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें।

कार्यक्रम के दौरान इन महिलाओं के ज़ज्बे को सराहते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा, "देश में आर्थिक योगदान में सबसे बड़ा योगदान नारी शक्ति का है। सब्जी उगाने से लेकर बेचने तक के काम में महिलाएं सबसे आगे हैं। मुझे वर्ष 2020 तक एक ऐसा झारखंड बनाना है जहां एक भी गरीब परिवार न रहे और किसी को भी बीपीएल कार्ड बनाने की जरूरत न पड़े।"

उन्होंने आगे कहा, "मैं एक गरीब परिवार से हूँ, गरीबी को बहुत करीब से देखा और महसूस किया है। इसलिए मैं नहीं चाहता हमारे राज्य में कोई भी व्यक्ति गरीबी की पीड़ा से गुजरे। सखी मंडल से जुड़ी महिलाएं हमारी ताकत हैं, हर महिला आर्थिक रूप से सफल होकर आत्मनिर्भर बने इसके लिए हम तत्पर हैं।"

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खूंटी जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर कालामाटी गाँव की रहने वाली सोनामती ने आत्मविश्वास के साथ बताया, "सरकार ने मशीन दी है, पहले हमारे यहाँ इमली का कोई मोल नहीं था। अब इस मशीन से इमली का प्रोसेसिंग करके गाँव की महिलाएं इसके कई सामान बनाती हैं। एक महिला दिन के 400 रुपए कमा लेती हैं।"

उन्होंने अपना अनुभव साझा किया, "मायके में तो ठीक ठाक घर से थे पर शादी गरीब घर में हो गयी। यहाँ सब कोई ईंट गारा का काम करता था, मुझे भी मजदूरी करने जाना पड़ता था। तीन साल पहले स्वयं सहायता में हफ्ते के 10 रुपए बचत करना शुरू किए, कुछ दिनों बाद समूह की सक्रिय महिला बन गये। कुछ समय बाद 40 महिलाओं का उत्पादक समूह बना उसकी देखरेख करने लगे, महीने की अच्छी आमदनी हो जाती है।"



इस कार्यक्रम में सोनामती की तरह आंध्रप्रदेश की एक महिला पक्की रम्मा भी थीं जिसकी कहानी जानकार रघुवर दास शाबासी दे रहे थे। ये वो महिला थी जिसने अपनी जिन्दगी के 20 साल से ज्यादा सर पर मैला ढोने का काम किया था। मैला ढोना इनका पुश्तैनी काम था। ये अपने पुश्तैनी काम को छोड़कर नये काम की शुरुआत करना चाहती थीं। इन्होने 23 साल पहले स्वयं सहायता समूह में हफ्ते के 10 रुपए की बचत करना शुरू किया और आज ये अपनी मेहनत और लगन के दम पर हर किसी के लिए उदाहरण बन गईं। इन्होने समूह से 12 लाख रुपए लोन लेकर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई और 80 लाख की मालकिन बन गयी हैं।

देश की महिलाओं के रोल माडल बनी पक्की रम्मा (55 वर्ष) के चेहरे पर ये बताते हुए आज भी उदासी थी, "लोग दूर से पीने को पानी देते, हम चुल्लू बनाकर उसे पीते थे, हम किसी के घर नहीं जा सकते थे, कोई हमें छूता नहीं था, लोग दुत्कार कर बात करते थे, ये सब सुनकर बहुत बुरा लगता था।"



उन्होंने बताया, "जब-जब हमारे साथ भेदभाव और छुआछूत होता, तब-तब मैं यही सोचती थी कि अपने बच्चों को इसका सामना नहीं करने दूंगी। उन्हें अच्छी पढ़ाई कराउंगी, जिससे वो नौकरी कर सकें और सम्मान की जिंदगी जी सकें।" आज भी ये सब्जी और फल बेच कर हर महीने 45,000 रुपए कमाती हैं। इनका बेटा एमबीए है, बेटी टीचिंग की पढ़ाई कर रही है। अपनी मातृभाषा तेलुगु के अलावा इन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भी सीखी, और अब देश और विदेश में जाकर अपनी सफलता की कहानी सुनाती हैं। पक्की रम्मा मूल रूप से आंध्रप्रदेश के कर्नूल जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर हुसैनापुरम गाँव की रहने वाली हैं।

केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने झारखंड की महिलाओं की सराहना करते हुए कहा, "मुझे इन महिलाओं की ईमानदारी पर गर्व है जो लाखों रुपए समूह से कर्ज लेकर ब्याज सहित समय से वापस कर देती हैं। झारखंड से गरीबी को खत्म करने के लिए यहाँ की सरकार दिन रात काम कर रही है। अगर सखी मंडल की दीदियाँ ऐसे ही आगे बढ़ती रहीं तो वो दिन दूर नहीं होगा जब झारखंड गरीबी मुक्त होगा।"



झारखंड की महिलाओं के नाम होगी एक रुपए में रजिस्ट्री

झारखंड की सरकार दिन प्रतिदिन राज्य की महिलाओं को सबल बनाने की दिशा में अहम फैसले लेती रही है। इन अहम फसलों में एक फैसला यहाँ की महिलाओं के नाम मात्र एक रुपए में रजिस्ट्री होना शामिल रहा। महिलाओं के नाम अचल संपत्ति खरीदने पर निबंधन शुल्क औऱ स्टांप ड्यूटी में छूट मिलेगी। महिलाओं के नाम पर संपत्ति की रजिस्ट्री एक रुपए में करने वाला झारखंड देश का पहला राज्य बन गया है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा, "सरकार राज्य की महिलाओं को मालकिन बनाना चाहती है और इसी कारण देश में पहली बार झारखंड ने एक रुपए में महिलाओं के नाम पर सम्पति की रजिस्ट्री प्रारंभ की। वर्तमान में राज्य में 80 प्रतिशत रजिस्ट्री महिलाओं के नाम पर हो रही है, जिससे महिलाएं सपंत्ति की मालकिन बन रही हैं।"

ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड सरकार के प्रधान सचिव अविनाश कुमार ने सखी मंडल की महिलाओं का हौसला बढ़ाते हुए कहा, "राज्य की महिलाओं ने अपने बलबूते एक लाख 25 हजार से ज्यादा सखी मंडल के रूप में संगठित होकर अपनी शक्ति का परिचय दिया है। अभी हाल ही में दिल्ली में बेस्ट प्रैक्टिस वर्कशॉप में इनके काम को सराहा गया और दूसरे राज्यों को इसे अपनाने के लिए बोला गया। स्वच्छ भारत अभियान से जुड़कर इन महिलाओं ने बहुत कम समय में सवा लाख से ज्यादा शौचालय का निर्माण करके ये साबित कर दिया कि इनके लिए कुछ भी करना असम्भव नहीं।"



सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं को मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

सखी मंडल से जुड़ी सरस्वती देवी को जब महिला स्वावलंबन योजना के तहत मुख्यमंत्री ने उन्नत नस्ल की पांच बकरियां कृषि चौपाल में दी गईं तो इनकी खुशी ठिकाना नहीं रहा। सरस्वती देवी ने खुश होकर कहा, "अगर हम समूह से न जुड़े होते तो आज हमें ये बकरियां नहीं मिलती। समूह में जुड़ने के बाद पैसों को बचत करने की आदत हो गयी और घर बैठे सरकार की योजनाओं की जानकारी भी मिलने लगी।"

ग्रामीण विकास विभाग द्वारा आजीविका मिशन के तहत राज्य में सखी मंडल से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं को सरकार की योजनाओं का सीधे लाभ मिल रहा है। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के तहत हर गांव में सखी मंडल की महिलाएं हैं। सरकार की जब भी किसी योजना की शुरुआत होती है तो सबसे पहले समूह से जुड़ी जरूरतमंद महिला को इसका लाभ दिया जाता है।



सरस्वती देवी (25 वर्ष) रांची जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर कांके प्रखंड के गागी गांव की रहने वाली हैं। इनके पति को दोनों आंखों से दिखाई नहीं पड़ता है, सरस्वती देवी खुद ही खेती करके अपने पति और तीन बच्चों की देखरेख करती हैं। वर्ष 2016 में ये कुसुम महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़कर हप्ते में 20 रुपए की बचत करने लगीं। सखी मंडल की बहनों ने इन्हें महिला स्वावलंबन योजना के तहत चिन्हित किया। जिससे इन्हें मुख्यमंत्री के द्वारा पांच उन्नत किस्म की बकरियां मिली। जो इनके आजीविका का अब साधन होंगी।

सरस्वती देवी की तरह इस गांव में सखी मंडल से जुड़ी शिवानी देवी, सरिता कुमारी, मालो देवी को बकरी और चूजा देकर लाभान्वित किया गया। सरिता कुमारी (21) वर्ष ने अपने बाएं हाथ को दिखाते हुए कहा, "मेरा ये हाथ पूरी तरह से खराब है, खुद का खर्चा चलाने के लिए कोई रोजगार चाहिए था अगर आज समूह से न जुड़े होते तो हमारी तकलीफ के बारे में अधिकारीयों को नहीं पता चलता और हमे बकरी नहीं मिलती।" सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं का मानना है कि सखी मंडल से जुड़ने की वजह से ही उन्हें सरकार की योजनाओं का सीधे लाभ मिल पा रहा है।

        

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