ये है झारखंड का पहला आदर्श नशामुक्त गांव, विकास के लिए ग्रामीणों ने मिलकर बनाए नियम

गांव के लोगों ने नियम बनाएं हैं, जिसमें लिखा है कि श्रमदान, नशामुक्त, खुले में शौचमुक्त, चराई बंदी और कुल्हाड़ी बंदी। जो भी व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करेगा उसे किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलेगा।

Neetu SinghNeetu Singh   29 Jun 2018 8:40 AM GMT

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ये है झारखंड का पहला आदर्श नशामुक्त गांव, विकास के लिए ग्रामीणों ने मिलकर बनाए नियम

ओरमांझी (रांची)। आरा-केरम गांव झारखंड राज्य का पहला ऐसा गांव है जो पूरी तरह से नशामुक्त गांव है। गांव को आदर्श बनाने और नशामुक्त करने के लिए सरकार के किसी अधिकारी ने नहीं बल्कि गांव के लोगों ने मिलकर विकास की गाथा लिखी है। इस गांव को देखकर मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य में 1000 गांव इस गांव की तर्ज पर बनेंगे।

गांव में प्रवेश करने पर गांव की गलियाँ स्वच्छ दिखेंगी, कई घरों की दीवारें रंग-बिरंगी दिखेंगी। कुछ-कुछ दूरी पर बांस से बने देसी तरीके के कूड़ेदान रखें हैं जिसमें हर कोई कूड़ा डालता है। दीवारों पर नशामुक्त और प्रेरक बातें लिखी हैं। एक जगह कई सारे बोर्ड लगे हैं जिसमें सरकारी योजनाओं का लाभ पाने वाले व्यक्तियों का पूरा ब्यौरा है जिससे गांव में योजनाओं को लेकर पारदर्शिता रहे। एक बोर्ड में नव जागृति समिति आरा, केरम गांव के लोगों ने खुद के कुछ नियम बनाए हैं। जिसमें लिखा है कि श्रमदान, नशामुक्त, खुले में शौचमुक्त, चराई बंदी और कुल्हाड़ी बंदी। जो भी व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करेगा उसे किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इन नियमों का पालन गांव में हर कोई करता है। नशामुक्त होने पर गांव को एक लाख रुपए सरकार की तरफ से प्रोत्साहन राशि दी गयी है।


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रांची जिला मुख्यालय से लगभग 27 किलोमीटर दूर ओरमांझी ब्लॉक के टुंडाहुली पंचायत के दो गांव आरा और केरम में 110 घर हैं जिसमें लगभग 800 लोग रहते हैं। गाँव में मनरेगा की मेड सीमा देवी (23 वर्ष) बताती हैं, "एक साल पहले तक हमारे गांव के लोगों के दिन की शुरुआत कच्ची शराब से होती थी। सुबह से शाम तक हड़िया या कच्ची शराब पीकर नशे में पड़े रहते थे, महिलाएं भी पीने लगी थी। लकड़ी बेचकर और मजदूरी करके जितना कमाते उतना नशे में खर्च कर देते, गांव के हालात बहुत खराब थे।" उन्होंने खुश होकर कहा, "इस नशे को खत्म करने के लिए समूह की दीदी और गांव के कुछ समझदार लोगों ने बैठक की। एक साल लगातार इन लोगों को समझाने के बाद गांव को नशामुक्त बना पाया है। हड़िया बनाने वाले हर घर के बर्तनों को इकट्ठा करके उन्हें बेच दिया और उस पैसे को गांव के विकास के लिए रखा है।"

सीमा देवी सखी मंडल की के एक सदस्य हैं। यहां कुल आठ स्वयं सहायता समूह चलते हैं जिसमें 98 महिलाएं शामिल हैं। ये समूह आजीविका मिशन के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के तत्वाधान में बनाए गये हैं। ये महिलाएं सामूहिक बचत तो करती ही हैं साथ ही गांव के विकास में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। आठ समूह की महिलाओं ने न केवल नशाबंदी में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया बल्कि गांव को स्वच्छ रखने के लिए हर दिन झाड़ू भी लगाती हैं। हर समूह की महिलाओं ने बांस के दो-दो कूड़ेदान बनाए जिससे पूरा गांव स्वच्छ दिखे।


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नवम्बर 2017 में मुख्यमंत्री भी इस गांव का भ्रमण कर चुके हैं। उन्होंने कहा था, "आरा-केरम गांव ने झारखण्ड में आदर्श ग्राम के रूप में अपनी पहचान बनायी है। गांव के लोगों से मिलकर खुशी हुई और ये जानकर अच्छा लगा कि नशा मुक्त होने के साथ ही इनकी सोच भी बदल गई है। हमारा लक्ष्य है 2019 तक इस गांव में एक भी BPL परिवार न रहें। इसी गांव के आधार पर 1000 गांवों को आदर्श ग्राम बनाया जायेगा।"

टुंडाहुली पंचायत में नौ गांव हैं जिसमें आरा और केरम दो गांव नशामुक्त हुए हैं। केरम गांव गांव के ग्राम प्रधान रामेश्वर बेड़िया ने बताया, "हमारे गांव में एकजुटता हमेशा से थी, सिर्फ नशा की वजह से पूरे गांव का माहौल खराब था, महिला-पुरुष दोनों शराब पीते थे। अगस्त 2016 में मनरेगा के आयुक्त जी गांव में आए और उन्होंने नशामुक्त करने की बात कही।"

गांव में नशे की वजह से परेशान तो हर कोई था लेकिन सब इसके आदी हो चुके थे। बच्चों का खानपान, पढ़ाई-लिखाई पर किसी का ध्यान नहीं था। महिलाएं घर में कच्ची शराब बनाती थीं और धीरे-धीरे वो भी नशे की लती हो गयी थीं। ग्राम प्रधान ने कहा, "नशाबंदी के लिए कुछ समझदार लोग आगे आए और धीरे-धीरे कुछ लोगों ने शराब पीना छोड़ा। ये संख्या लगातार बढ़ती गयी, नवम्बर 2017 में राज्य का पहला नशामुक्त गांव बना। मुख्यमंत्री से लेकर कई बड़े अधिकारी आए, नशामुक्त होने की वजह से मुख्यमंत्री जी ने एक लाख रुपए गांव के विकास में दिए हैं।"

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