वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से क्यों मिलना चाहते हैं 123 वर्ष के स्वामी शिवानंद

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अमल श्रीवास्तव, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

वाराणसी। बनारस के दुर्गाकुंड इलाके में रहने वाले 123 साल के स्वामी शिवानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बनने के साथ-साथ उनसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की है। स्वामी शिवानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हुए उन्हें जीत के लिए अग्रिम बधाई भी दी। स्वामी शिवानंद ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी से प्रेरित होकर पहली बार वोट डाला था।

स्वामी शिवानंद कहते हैं "इस जीवन में किसी राजनीतिज्ञ को और न ही किसी सोशल व्यक्ति को मोदी जैसा देखा है। मैं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना चाहता हूं, वे बहुत ईमानदार है।" वहीं स्वामी शिवानंद से जब पूछा गया कि क्या आप मोदीजी के प्रस्तावक बनना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि यह तो मेरे लिए अच्छी बात होगी।

26 अप्रैल को प्रधानमंत्री के नामांकन के मद्देनजर उन्‍होंने कोलकाता जाने का अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया है। स्‍वामी शिवानंद इन दिनों वाराणसी के दुर्गाकुंड इलाके में स्थित आश्रम में ठहरे हैं। भारतीय जनता पार्टी की इवेंट्स सेल की ओर से आश्रम में ही उनका सम्‍मान किया गया। देश के सिस्टम से नाराज होने के कारण वे मतदान नहीं करते थे।

पीएम के प्रस्तावक बनने की इच्छा

बाबा के शिष्य देवज्योति बताते हैं कि बाबा का जीवन बहुत साधारण है और वह उनकी सेवा में 30 साल से हैं। उन्होंने बताया कि बाबा को राजनीति से कोई लेना देना नहीं है और उन्हें याद भी नहीं कि 2014 के पहले उन्होंने कब मतदान किया। हां, 2014 में नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर उन्होंने मतदान जरूर किया जिसके वह साक्षी भी हैं।

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बता दें कि स्‍वामी शिवानंद ने 121 साल की उम्र में जब 2017 विधानसभा चुनाव में दुर्गाकुंड स्‍थित प्राथमिक पाठशाला के बूथ संख्या 385 पर वोट दिया तो लोगों ने उनके जज्बे को सलाम किया। स्वामी शिवानंद बताते हैं कि उनका जन्‍म 8 अगस्‍त 1896 को बांग्‍लादेश के श्रीहट्ट जिले में एक गरीब परिवार में हुआ था। मां-बाप भीख मांगकर घर चलाते थे, इसलिए कभी भी उनका पेट नहीं भरा।

गरीबी की ही वजह से उन्‍होंने उन्हें बाबा गुरुदेव को सौंप दिया गया। 1903 में जब वह अपने गांव श्रीहट्ट वापस गए तो पता चला कि भूख के कारण मां-बाप की भी मौत हो चुकी है। इसके बाद बाबा वापस आश्रम आ गए और 1907 में गुरुजी से दीक्षा ली। गुरुजी की मौत के बाद 1977 में वृंदावन चले गए। 1979 के बाद काशी आए और यहीं रहने लगे। कबीरनगर के एक आश्रम में बाबा कई साल से रह रहे हैं।​


  

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